अंबाला में नगर निगम चुनाव अब करीब 4 महीने दूर हैं। राजनीतिक हलचल अब खुलकर सामने आने लगी है। हरियाणा सरकार की ओर से हाल ही में जारी किया नया वार्ड निर्धारण नोटिफिकेशन सिर्फ प्रशासनिक औपचारिकता नहीं, बल्कि चुनावी शतरंज की पहली चाल है।
जिसमें एक ओर जनसंख्या में गिरावट, अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित वार्डों में कटौती और पिछड़े वर्ग की बढ़ती भागीदारी ने मौजूदा समीकरणों को हिला दिया है। वहीं, राजनीतिक दलों ने अपने पत्ते सिरे से बिछाने शुरू कर दिए हैं। 14 जनवरी 2026 तक ही मौजूदा सदन का कार्यकाल है।
नई सियासी गणित में उलटफेर के संकेत
नए नोटिफिकेशन के अनुसार नगर निगम की जनसंख्या अब 2.71 लाख रह गई है, जो कानूनी न्यूनतम सीमा (3 लाख) से करीब 29 हजार कम है। ये आंकड़ा न सिर्फ नगर निगम के अस्तित्व पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि प्रशासनिक तैयारी और जनगणना की पारदर्शिता पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है।
वार्ड परिसीमन की रणनीति का बन सकता है केंद्र
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इस बार का चुनाव असमान जातीय प्रतिनिधित्व और वार्ड परिसीमन की रणनीति का केंद्र बन सकता है। अनुसूचित जाति के 5 से घटकर 3 वार्ड हो गए हैं, जबकि पिछड़ा वर्ग- ए और बी को 3 वार्ड मिले हैं, इनमें से 2 महिलाओं के लिए आरक्षित हैं।
प्रशासन की भूमिका पर उठते सवाल
जब राज्य सरकार ने सफाई अभियानों और जनभागीदारी की बात करते हुए नगर निगम क्षेत्रों में विकास और जनकल्याण के दावे किए, तब वही निगम क्षेत्र जनसंख्या के हिसाब से कानूनी संकट में खड़ा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अगले 2 वर्षों में जनसंख्या 3 लाख से कम रहती है, तो निगम का दर्जा खुद कानूनी तौर पर रद्द हो सकता है।
जनता की नजर से राजनीति
निगम चुनाव अब सिर्फ चुनाव नहीं रह गया, बल्कि स्थानीय सत्ता का नियंत्रण बन चुका है। लोग यह भी देख रहे हैं कि किस वार्ड को क्यों आरक्षित किया गया, किस नेता की स्थिति कमजोर हुई, और कौनसा चेहरा अगले 2 साल में विकास का सपना बेचने मैदान में उतरेगा।
तीनों के इम्तिहान की घड़ी
अंबाला नगर निगम चुनाव का काउंटडाउन शुरू हो चुका है। परिसीमन, आरक्षण और जनसंख्या के इन आंकड़ों के बीच प्रशासन, राजनेता और जनता- तीनों के इम्तिहान की घड़ी आ चुकी है। अब देखना यह है कि सियासी चतुराई जनता के मुद्दों पर भारी पड़ती है या जन सरोकारों की आवाज कुर्सी की तकदीर तय करती है।