कानपुर वाले अखिलेश दुबे के करीबी DSP सस्पेंड:ऋषिकांत शुक्ला ने 100 करोड़ की अवैध संपत्ति बनाई; विजिलेंस के रडार पर भी

कानपुर के अखिलेश दुबे प्रकरण में मैनपुरी जिले के भोगांव में तैनात डीएसपी (सीओ) ऋषिकांत शुक्ला को सस्पेंड कर दिया गया है। उनके खिलाफ विजिलेंस जांच भी शुरू हो गई है। कानपुर पुलिस की एसआईटी जांच में शुक्ला के पास 100 करोड़ रुपए से अधिक की बेनामी संपत्ति होने का दावा किया गया है।

एसआईटी रिपोर्ट के मुताबिक, शुक्ला के नाम पर 12 संपत्तियों की बाजार कीमत लगभग 92 करोड़ रुपए बताई गई है। इसके अलावा तीन अन्य संपत्तियों के दस्तावेज उपलब्ध नहीं हो सके हैं, लेकिन वे शुक्ला के पैन नंबर से जुड़ी पाई गई हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि शुक्ला 1998 से 2009 तक यानी 11 साल कानपुर नगर में तैनात रहे। इस दौरान उनकी अखिलेश दुबे और उनके गिरोह से करीबी बताई गई है। दुबे गैंग पर फर्जी मुकदमे दर्ज कराने, जबरन वसूली और जमीन कब्जाने के आरोप हैं।

डीएसपी ऋषिकांत शुक्ला ने अपने खिलाफ लगे आरोपों को बेबुनियाद बताया है। वे 1998 से 2006 तक एएसआई, दिसंबर 2006 से 2009 तक इंस्पेक्टर रहे। इसके बाद उनका प्रमोशन हुआ और उन्नाव में डीएसपी के पद पर तैनात किए गए।

दुबे के साथ मिलकर कंपनी बनाई, करोड़ों का ट्रांजेक्शन

एसआईटी में शामिल एक सूत्र की मानें तो सीओ संतोष सिंह, विकास पांडेय और ऋषिकांत ने अखिलेश दुबे के साथ मिलकर एक कंस्ट्रक्शन कंपनी खड़ी की है।

इस कंपनी में ऋषिकांत की पत्नी प्रभा शुक्ला, सीओ पांडेय का भाई प्रदीप कुमार पांडेय, संतोष का रिश्तेदार अशोक कुमार सिंह ने अखिलेश दुबे के बेटे अखिल और भतीजे सात्विक के साथ मिलकर कंपनी खड़ी की है। कंपनी कंस्ट्रक्शन से जुड़ा काम करती है।

इसमें इन अफसरों ने अपनी करोड़ों रुपए की काली कमाई लगाकर पूरे रुपयों को एक नंबर में कर रहे हैं। इतना ही नहीं ये तीनों अफसर कानपुर में तैनाती के दौरान साकेत नगर दुबे दरबार के दरबारी थे। दूसरे जिले में ट्रांसफर होने के बाद भी कानपुर में इनका दुबे के साथ पार्टनरशिप में करोड़ों का जमीनों का धंधा चल रहा है।

इन सभी ने कानपुर में तैनाती के दौरान कानून को ताक पर रखकर दुबे के लिए कई गैरकानूनी काम भी किए हैं। इन सभी मामलों की जांच एसआईटी कर रही है। इस वजह से सभी को बयान दर्ज करने के लिए बुलाया गया है।

अब जानिए अखिलेश दुबे के बारे में

एक ऐसा वकील, जिसने कभी कोर्ट में नहीं की बहस

अखिलेश दुबे एक ऐसा वकील है, जिसने कभी कोर्ट में खड़े होकर किसी केस में बहस नहीं की। उसके दरबार में खुद की कोर्ट लगती थी और दुबे ही फैसला सुनाता था। वह सिर्फ अपने दफ्तर में बैठकर पुलिस अफसरों के लिए उनकी जांचों की लिखा-पढ़ी करता था। बड़े-बड़े केस की लिखा-पढ़ी दुबे के दफ्तर में होती थी।

इसी का फायदा उठाकर वह लोगों के नाम निकालने और जोड़ने का काम करता था। इसी डर की वजह से बीते 3 दशक से उसकी कानपुर में बादशाहत कायम थी। कोई उससे मोर्चा लेने की स्थिति में नहीं था।

काले कारनामों को छिपाने के लिए शुरू किया था न्यूज चैनल

अखिलेश दुबे ने अपनी ताकत बढ़ाने के लिए सबसे पहले एक न्यूज चैनल शुरू किया था। इसके बाद वकीलों का सिंडीकेट बनाया। फिर इसमें कई पुलिस अफसरों को शामिल किया। कानपुर में स्कूल, गेस्ट हाउस, शॉपिंग मॉल और जमीनों के कारोबार में बड़े-बड़े बिल्डर उसके साथ जुड़ते चले गए।

दुबे का सिंडीकेट इतना मजबूत था कि उसकी बिल्डिंग पर केडीए से लेकर कोई भी विभाग आपत्ति नहीं करता था। कमिश्नर का दफ्तर हो या डीएम ऑफिस, केडीए, नगर निगम और पुलिस महकमे से लेकर हर विभाग में उसका मजबूत सिंडीकेट फैला था। उसके एक आदेश पर बड़े से बड़ा काम हो जाता था।

मेरठ से भागकर आया था कानपुर

अखिलेश दुबे मूलरूप से कन्नौज के गुरसहायगंज का रहने वाला है। उसके पिता सेंट्रल एक्साइज में कॉन्स्टेबल थे। मेरठ में तैनात थे। वहां रहने के दौरान अखिलेश दुबे की सुनील भाटी गैंग से भिड़ंत हो गई। इसके बाद वह भागकर कानपुर आ गया।

बात 1985 की है। अखिलेश दुबे किदवई नगर में किराए का कमरा लेकर रहने लगा। दीप सिनेमा के बाहर साइकिल स्टैंड चलाता था। इस दौरान मादक पदार्थ तस्कर मिश्री जायसवाल की पुड़िया (मादक पदार्थ) बेचने लगा। धीरे-धीरे आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो गया।

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