झांसी के पाठक बंधु पिता-पुत्र ने संत प्रेमानंदजी महाराज जी से मुलाकात की। पिता-पुत्र ने ‘अब तो बिलंब न कीजै लड़ैती जू…’ पद को मधुर आवाज में सुनाया। उनकी मधुर वाणी ने संत प्रेमानंदजी महाराज काे आनंदित कर दिया।
भाव से भरे पद को सुनकर संत प्रेमानंदजी बोले- लोभ बढ़ गया है। एक पद कैली माल का सुना दो। तब पाठक बंधुओं ने ‘नील लाल गुर कै ध्यान में बैठे कुंजबिहारी, कुंजबिहारी…’ सुनाया। संत प्रेमानंदजी महाराज आंखें बंद करके पदों को सुनते रहे।
अंदर ही अंदर प्यारी जू और प्यारे जू का स्मरण करते रहो
संत प्रेमानंद महाराज जी ने कहा- अंदर ही अंदर प्यारी जू और प्यारे जू का स्मरण करते रहो। शरीर सेवा, मन से सुमिरन और ह्रदय से शरणागति होने से साधु पूर्ण हो जाता। शरीर से सेवा, मन से सुमिरन जरूरी है। ह्रदय से स्वामी जी की शरणागति है।
उठते-बैठते चलते फिरते केली माल जी की पदों का गायन करते रहें। गुनगुनाते रहें, बस यही हमारे उपासना की सिद्धी है। नाम, वाणी, सेवा यही हमारी सिद्धी है। खूब डट के सेवा करें, वाणी जी का गायन मस्ती से करें। नाम जप करें कुंजबिहारी श्री हरिदास, समझ लो सब हो गया।
अक्सर वृंदावन जाते हैं पाठक बंधु
महानगर में खोआ मंडी में रहने वाले पाठक बंधु यश पाठक और उनके पिता संतोष पाठक अक्सर वृंदावन पदों का गायन करने जाते हैं। संतोष पाठक ने बताया- 9 अक्टूबर को पदों का गायन करने वृंदावन गए थे। तब संत प्रेमानंदजी महाराज के दर्शन करने पहुंचे।
वहां पद सुनाने की इच्छा जताई तो वे सुनने के लिए तैयार हो गए। संत प्रेमानंदजी को हरदास स्वामी द्वारा लिखित प्राचीन दो पद सुनाए। उनको पद बहुत पसंद आए तो उन्होंने एक पद और सुनाने के लिए कहा।
पाठक बंधु बोले- जन्म सफल हो गया
संतोष पाठक ने बताया- संत प्रेमानंदजी महाराज के भक्त निराश नहीं लौटते। इतनी तबीयत खराब होने के बाद वे सभी को दर्शन देते हैं। उनको पद सुनाने की बहुत समय से लालसा थी, जो पूरी हो गई। उनको पद सुनाकर हमारा जन्म सफल हो गया।