राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर ने प्रदेश में सड़क हादसों में हो रही लगातार मौतों पर गंभीर चिंता जताई है। एचसी ने स्वतः संज्ञान (स्वप्रेरणा) लेकर जनहित याचिका दर्ज की है। जस्टिस डॉ पुष्पेंद्र सिंह भाटी और जस्टिस अनुरूप सिंघी की खंडपीठ ने कहा कि पिछले दो हफ्तों में राजस्थान की सड़कों पर हुई दुर्घटनाओं में लगभग 100 लोगों की जान चली गई है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
विभिन्न मीडिया रिपोर्ट का दिया हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि दैनिक भास्कर सहित अन्य बड़े अखबारों में लगातार दुर्घटनाओं की खबरें आ रही हैं। ये खबरें बता रही हैं कि हालात बहुत खतरनाक हो गए हैं। अब सरकार को तुरंत कदम उठाने की जरूरत है। कोर्ट ने अपने आदेश में हाल की दुर्घटनाओं की सुर्खियों का पूरा ब्योरा भी दिया है। इनमें मुख्य रूप से –
- 4 नवंबर 2025 को हरमाड़ा में सबसे भयावह हादसा हुआ। चार मिनट तक काल बनकर दौड़े डंपर ने 14 लोगों की जान ले ली। दैनिक भास्कर ने इस पर लापरवाही की ओर इशारा करते हुए लिखा कि नो एंट्री में घुसा नशे में धुत डंपर चालक, किसी ने कहीं रोका तक नहीं। 100 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से दौड़ाया डंपर ने 400 मीटर में 14 वाहनों को टक्कर मारी, 27 को कुचला और 14 की मौत हो गई।
- 3 नवंबर 2025 को भारत माला हाईवे पर मतोड़ा के पास भीषण हादसा हुआ। अवैध ढाबे के आगे हाईवे के ऊपर ट्रेलर खड़ा था। ओवरटेक करते अंधेरे में खड़ा ट्रेलर नहीं दिखा और ट्रैवलर घुसा। आधे घंटे बाद ही 40 किलोमीटर दूर एक दूसरा हादसा हुआ, जिसमें एसयूवी डिवाइडर से टकराई और दो लोगों की मौत हो गई।
- 16 अक्टूबर को दैनिक भास्कर ने एक और चौंकाने वाली खबर प्रकाशित की कि जहां बस जली, वहां से 280 किलोमीटर तक कोई ट्रॉमा सेंटर नहीं था। प्रदेश में 100 ट्रॉमा सेंटर बनने थे, जैसलमेर में एक था, वो भी नहीं बना।
- 15 अक्टूबर को जैसलमेर में हुई बस में आग की घटना में 20 लोग जिंदा जल गए।
कोर्ट की टिप्पणी: असमय मृत्यु से राष्ट्र की सामूहिक शक्ति में भी कमी
कोर्ट ने कहा कि मृत्यु अपरिहार्य है, लेकिन असामयिक मृत्यु से होने वाला दुख न केवल परिवार के लिए अपूरणीय क्षति है, बल्कि राष्ट्र की सामूहिक शक्ति में भी सीधी कमी है। समाज के कुछ वर्गों में ऐसी दुखद घटनाओं के प्रति बढ़ती असंवेदनशीलता नियामक प्राधिकरणों के कामकाज में भी व्याप्त हो गई है, जिनसे सतर्क और सचेत रहने की अपेक्षा की जाती है।
- कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जनहित याचिका उपरोक्त मुद्दे का एकमात्र अंतिम समाधान नहीं हो सकती है, लेकिन समय आ गया है कि राष्ट्र असामयिक जीवन की हानि पर सोचे और विचार करे, जो समाज के ताने-बाने और राष्ट्र की ताकत को गंभीर क्षति पहुंचा रहा है।
- कोर्ट ने कहा कि यद्यपि इस कोर्ट का ध्यान शुरुआत में एक विशेष दुर्घटना की ओर आकर्षित किया गया था, लेकिन हाल के अतीत की घटनाएं इस कोर्ट को इस बात पर जोर देने के लिए विवश करती हैं कि प्रतिवादियों को नियामक ढांचे को सक्रिय और मजबूत करने की तत्काल आवश्यकता है ताकि जीवन की हानि और पीड़ा को कम करने के लिए प्रभावी उपाय किए जा सकें। भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत पवित्र जीवन का अधिकार राज्य पर इस अधिकार की सक्रिय रूप से रक्षा करने का संबंधित कर्तव्य डालता है, विशेष रूप से उन स्थितियों में जहां नियामक तंत्र आवश्यक तत्परता के साथ प्रतिक्रिया देने में विफल रहे हैं।
पांच एमिकस क्यूरी की नियुक्ति
प्रभावी सहायता के उद्देश्य से, कोर्ट ने एडवोकेट मानवेंद्रसिंह भाटी, शीतल कुंभट, अदिति मोड, हेली पाठक और तानिया मेहता को एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) नियुक्त करना उचित समझा और उनसे कोर्ट को सहायता प्रदान करने का अनुरोध किया। एमिकस क्यूरी से अनुरोध किया गया है कि वे सड़क और सार्वजनिक सुरक्षा से संबंधित नियामक ढांचे को मजबूत करने के लिए शुरू किए जाने वाले कदमों को इंगित करते हुए ठोस सुझावों के साथ सहमति की एक रिपोर्ट दाखिल करें।
केंद्र और राज्य के विभागों को नोटिस
मुद्दे पर विचार करने के लिए, कोर्ट ने विभिन्न विभागों के प्रतिनिधियों को प्रारंभिक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। इनमें भारत सरकार, चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग, राजस्व विभाग, सार्वजनिक निर्माण विभाग, स्थानीय निकाय विभाग, गृह और परिवहन विभाग और नेशनल हाईवेज अथॉरिटी ऑफ इंडिया को नोटिस जारी किए गए हैं।
इन विभागों को सड़क हादसों में असामयिक मौतों के कारण होने वाली पीड़ा और दुख को कम करने के लिए बेहतर विनियमन और मैकेनिज्म के लिए उठाए गए कदमों का विवरण देते हुए अपना प्रारंभिक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया गया। उन्हें अपने विभागों से जुड़े सड़क सुरक्षा और सार्वजनिक सुरक्षा के असंख्य मुद्दों पर अपना पक्ष प्रस्तुत करना होगा, विशेष रूप से हुई असामयिक मौतों के संदर्भ में।
राज्य प्राधिकरण और भारत सरकार को भी अपना जवाब दाखिल करना होगा, कि सड़क और सार्वजनिक सुरक्षा मामलों में सुधार के लिए उनका क्या रुख हो सकता है।
13 नवंबर को अगली सुनवाई
कोर्ट ने बीते कुछ दिनों में खोई गई लगभग 100 जिंदगियों के परिवारों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए इस मामले में 13 नवंबर को सुनवाई करना उचित समझा। खंडपीठ ने कोर्ट रजिस्ट्री को निर्देश दिया गया कि इस मामले को स्वप्रेरणा जनहित याचिका के रूप में पंजीकृत करे और इसे 13 नवंबर 2025 को जनहित याचिका श्रेणी के तहत सूचीबद्ध करे।