सोनीपत की टीचर सुनीता को मिला नेशनल अवॉर्ड:राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने किया सम्मानित; लोग पिता को ताने देते थे, बेटी को क्यों पढ़ा रहे

हरियाणा के सोनीपत की रहने वाली टीचर सुनीता ढुल को शुक्रवार को राष्ट्रपति के हाथों राष्ट्रीय शिक्षक मिला है। शिक्षक दिवस के मौके पर दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम सुनीता धुल को सम्मानित किया गया है। सुनीता हरियाणा की इकलौती टीचर हैं, जिन्हें इस बार नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है। उन्होंने यह पुरस्कार शिक्षा के क्षेत्र में लगन और समर्पण से मिसाल कायम करने पर मिला है।

सोनीपत के गांव नसीरपुर की सुनीता ढुल वर्तमान में मुरथल अड्डे पर स्थिति पीएम श्री राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल में सामाजिक विज्ञान पढ़ाती हैं। पढ़ाने के साथ-साथ सुनीता ढुल एक कुशल मास्टर ट्रेनर भी हैं। वे रेडक्रॉस में राष्ट्रीय मास्टर ट्रेनर के रूप में काम करते हुए अब तक करीब 14 हजार बच्चों को फर्स्ट एड और जीवन रक्षक कौशल का प्रशिक्षण दे चुकी हैं। वे पिछले डेढ़ साल से ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान में बच्चों से पौधे लगवाती हैं।

जानिये…कैसे पिता की सोच ने बदली बेटी की राह

​सुनीता ढुल का सफर आसान नहीं रहा। पिता आर्मी राज सिंह दहिया में थे। फिर बिजली निगम में काम करने लगे। सुनीता तीन बहनों और दो भाइयों में सबसे छोटी हैं। उस दौर में लड़कियों की पढ़ाई को खास महत्व नहीं दिया जाता था। खासकर ग्रामीण इलाकों में। पिता ने जब बेटियों को पढ़ाना शुरू किया तो लोग ताने देते-“बेटियों को क्यों पढ़ा रहे हो, आखिरकार इन्हें दूसरे घर जाना है।” पिता ने कभी समाज की परवाह नहीं की। उनका जवाब हमेशा यही होता – “बेटी भी पढ़-लिखकर बदलाव की सोच के साथ काम करेगी।” यही सोच सुनीता की सबसे बड़ी ताकत बनी।

मां रोज सुबह 3 बजे उठतीं, ताकि बच्चों को पढ़ने के लिए जगा सकें

मां सुखदेई रोज सुबह 3 बजे उठ जातीं और बच्चों को 4 बजे पढ़ाई के लिए जगातीं। उस समय गांव की कम ही बेटियां स्कूल जाती थीं, लेकिन मां-बाप की लगन ने सुनीता और उनकी बहनों को शिक्षा के उजाले तक पहुंचाया।

शिक्षा के प्रति उनकी लगन बचपन से ही थी। गांव से कॉलेज का आना-जाना 14 किलोमीटर दूर था। सुनीता साइकिल चलाकर जाती थीं। अपनी पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया ताकि वे अपनी आगे की पढ़ाई का खर्च उठा सकें।

बीएड एंट्रेंस की थर्ड टॉपर बनीं

साल 1996 में सुनीता बीएड एंट्रेंस टेस्ट में तीसरी टॉपर रहीं। सरकारी नौकरी से पहले उन्होंने 1996 से 2013 तक निजी शिक्षण संस्थानों में शिक्षिका और प्रिंसिपल के रूप में भी सेवाएं दीं। 2014 में उन्हें गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल, समालखा में नौकरी मिली। फिलहाल वे पीएम श्री स्कूल, मुरथल अड्डा में सामाजिक विज्ञान पढ़ाती हैं।

​बतौर टीचर 5 बातों पर जोर दिया

1. ​टाइम टेबल का महत्व: सुनीता ने विद्यार्थियों को टाइम टेबल का पालन करना सिखाया, जिससे वे अपनी पढ़ाई और अन्य गतिविधियों को व्यवस्थित रूप से कर सकें।

2. ​स्टूडेंट कमेटी का गठन: साल 2017 में उन्होंने एक स्टूडेंट कमेटी बनाई। हर महीने होने वाली मीटिंग में वे बच्चों से यह राय लेती थीं कि उनका स्कूल कैसा होना चाहिए। बच्चों को स्कूल से जुड़ाव महसूस हुआ और उनकी संख्या 275 से बढ़कर 450 हो गई।​

3. व्यावहारिक ज्ञान पर जोर: साल 2014 से वे बच्चों के लिए प्रदर्शनियां लगाती आ रही हैं। वे समय-समय पर बच्चों को शैक्षिक भ्रमण पर ले जाती हैं। ताकि किताबी ज्ञान के अलावा बाहरी दुनिया की जानकारी मिले।

4. ​तकनीक का उपयोग: कोविड-19 महामारी के दौरान जब ऑनलाइन पढ़ाई चल रही थी, सुनीता द्वारा बनाई गई 12वीं कक्षा की भूगोल विषय की वीडियो पूरे हरियाणा में हरियाणा सरकार के एजुसेट चैनल पर चलाई गईं।

5. ​सामाजिक और नैतिक मूल्यों का विकास: वे स्कूल में विभिन्न भारतीय पर्वों का आयोजन और प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताएं भी कराती हैं। ताकि बच्चों में सामाजिक और नैतिक मूल्यों का विकास हो सके।

सख्त टीचर के रूप में पहचान को बदला​

शुरुआती दिनों में एक सख्त टीचर के रूप में पहचान बनाने वाली सुनीता ने बाद में अपनी शिक्षण शैली में बदलाव किया। उन्होंने मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया और बच्चों के साथ संवाद स्थापित करने पर जोर दिया। वे बच्चों की समस्याओं को सुनकर उन्हें सुलझाने की कोशिश करती हैं।​सुनीता कहती हैं-शिक्षा सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि समाज में बदलाव लाने का एक शक्तिशाली माध्यम है।

सुनीता कहती हैं-पिता ने बेटियों को बोझ नहीं समझा, यह सोच जरूरी

सुनीता के बेटे अध्ययन ऑस्ट्रेलिया में नौकरी कर रहे हैं। बेटी वंशिका अशोका यूनिवर्सिटी से मनोविज्ञान की पढ़ाई कर रही हैं। मां सुखदेई 96 वर्ष की आयु में आज भी उनकी प्रेरणा हैं। पति पवन ढुल भी हौसला बढ़ाते हैं। सुनीता कहती हैं-“पिता ने बेटियों को बोझ नहीं समझा। उनकी सोच और मां का समर्पण ही मेरी सबसे बड़ी पूंजी है। यही सोच-समर्पण जरूरी है। राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार सिर्फ उनका सम्मान नहीं है, बल्कि उस सोच का सम्मान है जो कहती है कि शिक्षा ही समाज में असली बदलाव की चाबी है।”

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