हरियाणा के पूर्व मंत्री की 16 साल बाद घर वापसी:आज इनेलो जॉइन करेंगे; संपत सिंह बोले- मैंने वहीं से राजनीति शुरू की

हरियाणा के पूर्व मंत्री संपत सिंह आज अपने बेटे गौरव सिंह के साथ चंडीगढ़ में इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) जॉइन करेंगे। संपत 16 साल पहले 2009 में इनेलो छोड़ कांग्रेस में गए थे। 3 नवंबर को संपत सिंह ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को अपना इस्तीफा भेजा था। तब उन्होंने कहा था कि अब मैं चैन की नींद सोऊंगा।

इसके बाद उनके बेटे गौरव सिंह ने भी पार्टी छोड़ने का ऐलान करते हुए सोशल मीडिया पर लिखा था- “थारी कांग्रेस, थानै मुबारक।”

संपत सिंह को मनाने के लिए सोमवार को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राव नरेंद्र सिंह ने फोन भी किया, लेकिन संपत सिंह ने दोटूक कहा कि मेरी उनसे कोई नाराजगी नहीं है, अब मैं मन बना चुका हूं।

संपत सिंह ने इनेलो में वापसी के सवाल पर कहा कि मैंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत वहीं से की थी। कुछ भावनात्मक कारणों से मैंने पार्टी छोड़ी थी। अब मैं इनेलो में वापस जाना चाहता हूं और इनेलो नेता भी मुझे बुलाना चाहते थे। मुझे वहां काम करने का अवसर मिलेगा, क्योंकि मैं काम करने वाला व्यक्ति हूं।

  • हरियाणा विधानसभा का 6 बार निर्वाचित सदस्य रहा: “मैं हरियाणा विधानसभा का सदस्य 6 बार चुना गया हूं। मैंने 2 बार मंत्री और 1 बार विपक्ष का नेता बनकर काम किया है। राजनीति में आने से पहले, मैं राजनीति विज्ञान का प्रोफेसर था। 2009 में, मैं कांग्रेस पार्टी में शामिल हुआ। मुझे कहा गया था कि मुझे फतेहाबाद से चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा, लेकिन बाद में मुझे नलवा से चुनाव लड़ने के लिए कहा गया। फिर भी, नलवा के लोगों ने मुझ पर भरोसा किया और मुझे विधानसभा में चुनकर भेजा।”
  • मेरे प्रभाव से कांग्रेस जीती, मुझे मंत्री नहीं बनाया: “संपत सिंह ने लिखा कि दुर्भाग्य से कांग्रेस फतेहाबाद सीट हार गई। लोग मेरा क्षेत्र बदलने से नाराज़ थे, जबकि मैं पहले वहां से लगातार पांच बार जीता था। मेरे कांग्रेस में शामिल होने से मेरे प्रभाव वाले लगभग 6 और इलाकों में भी पार्टी को जीत मिली। इसके बावजूद, मुझे न तो मंत्री बनाया गया और न ही पार्टी में कोई पद दिया। बाद में मुझे पता चला कि कुमारी सैलजा से मेरी मुलाकात और उनके मंत्रालय द्वारा मेरे क्षेत्र के लिए ₹18 करोड़ मंजूर करने की वजह से मुझे पीछे कर दिया गया। इसके बाद, मुझे सिर्फ एक ही क्षेत्र तक सीमित कर दिया गया, जिससे मैं हरियाणा के बाकी हिस्सों में पार्टी को मजबूत नहीं कर पाया।”
  • मेरे साथ आए इनेलो में चले गए मैं नहीं गया: “2014 में, मेरे साथ आए कई साथी वापस इनेलो में चले गए, जिसके चलते इनेलो ने उस साल हिसार लोकसभा और विधानसभा सीटें जीत लीं। 2019 के विधानसभा चुनावों में भी ऐसा ही हुआ – मुझे फिर से टिकट नहीं मिला, और नलवा और फतेहाबाद दोनों सीटें भाजपा ने जीत लीं। 2024 में, मुझे सिरसा लोकसभा क्षेत्र का समन्वयक बनाया गया, जहां कुमारी सैलजा कांग्रेस की उम्मीदवार थीं। मैंने पूरी ईमानदारी से उनके लिए काम किया, लेकिन इससे राज्य के कुछ नेताओं को असुरक्षा महसूस होने लगी।”
  • सैलजा की रैली में भाग लेने से नाराज हुए: “2024 में मैंने सैलजा जी की नरनौंद रैली में हिस्सा लिया, जिससे राज्य के नेता नाराज हो गए। इसके बाद, मुझे फिर से टिकट नहीं दिया गया, और एक बार फिर कांग्रेस नलवा सीट हार गई। 2024 का हरियाणा विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए एक सीखने का मौका होना चाहिए। लगभग हर सर्वे, मीडिया रिपोर्ट और अनुमान में कांग्रेस की जीत की बात कही जा रही थी, लेकिन नतीजे बिल्कुल उल्टे आए। यह उन लोगों के लिए हैरानी की बात नहीं थी जो पार्टी के अंदर लगातार हो रही कमजोरी को जानते थे।”

2016 की घटना का जिक्र किया

इस्तीफे में संपत सिंह ने 2016 के राज्यसभा चुनाव का जिक्र करते हुए लिखा कि सोनिया गांधी ने आरके आनंद के नाम को मंजूरी दी थी, जिन्हें कांग्रेस और इनेलो के 37 विधायकों का समर्थन हासिल था। फिर भी, एक राज्य के नेता को “वोट न करने” की इजाजत कैसे दी गई? यहां तक कि एक निर्दलीय विधायक (जो अब कांग्रेस सांसद हैं) को जानबूझकर अलग पेन से वोट डालने के लिए कहा गया, जिससे सारे वोट रद्द हो गए।

नेताओं के कांग्रेस छोड़ने के बारे में बताया

उन्होंने कहा कि कुमारी सैलजा, जो कांग्रेस की महासचिव और देश की सबसे वरिष्ठ दलित महिला नेता हैं, उन्हें हरियाणा प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था, लेकिन 2022 में राज्य के नेताओं के दबाव में उन्हें हटा दिया गया। श्रुति चौधरी, जो दो बार सांसद रह चुकी हैं, उन्हें भिवानी से टिकट नहीं दिया गया। आज वे भाजपा सरकार में मंत्री हैं।

किरण चौधरी, जो 5 बार विधायक, दो बार मंत्री और दिल्ली की पूर्व उपसभापति रह चुकी हैं, उन्हें लगातार अपमानित किया गया। जब वे कांग्रेस विधायक दल की नेता थीं, तब कुछ विधायकों को उनकी बैठकों में शामिल न होने के लिए कहा गया। सावित्री जिंदल, जो तीन बार विधायक और दो बार मंत्री रह चुकी हैं, उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और आज निर्दलीय विधायक हैं। नवीन जिंदल, जो तीन बार सांसद रह चुके हैं, अब भाजपा के सांसद हैं।

राज्य नेतृत्व पर सवाल उठाए

संपत सिंह ने लिखा कि राज्य के नेताओं ने अपनी निजी ताकत बढ़ाने पर ध्यान दिया। 2020 में, राज्यसभा की खाली सीट पर किसी योग्य अनुसूचित जाति या पिछड़े वर्ग के सदस्य को भेजने के बजाय, एक नेता के बेटे को नामित किया गया। इससे एक राष्ट्रीय पार्टी एक परिवार की कंपनी जैसी बन गई।

यहां तक कि रणदीप सिंह सुरजेवाला, जो चार बार विधायक और एआईसीसी के महासचिव रह चुके हैं, उन्हें भी हरियाणा में गुटबाजी के चलते राजस्थान से राज्यसभा भेजा गया। अजय माकन, जो कोषाध्यक्ष थे, हरियाणा से राज्यसभा चुनाव हार गए – यह नेतृत्व में कमी का ही नतीजा था।

  • ताऊ देवीलाल ने किया था राजनीति का ऑफर: संपत सिंह ने ताऊ देवीलाल के साथ 48 साल पहले राजनीति की शुरुआत की थी। संपत सिंह के अनुसार ” 1977 में मैं जब जाट कॉलेज हिसार में प्रोफेसर था तो ताऊ देवीलाल की नजर मुझ पर पड़ी और उन्होंने मुझे राजनीति में आने का ऑफर दिया।
  • पहला चुनाव फतेहाबाद की भट्‌टू सीट से लड़े: उन्होंने बताया- इसके बाद मैं देवीलाल के साथ राजनीति में गया। देवीलाल ने मुझे फतेहाबाद की भट्‌टू विधानसभा से चुनाव लड़ाया था। वह मेरे राजनीतिक गुरु हैं”। संपत सिंह 6 बार विधायक रहे हैं।
  • पूर्व CM की पत्नी को हराया चुनाव: फतेहाबाद की भट्‌टू विधानसभा टूटने के बाद नलवा विधानसभा से चुनाव लड़ा और पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भजनलाल की धर्मपत्नी जसमा देवी को चुनाव हराया। संपत सिंह 32 साल चौटाला परिवार के साथ इनेलो में रहे। 2009 में हिसार से लोकसभा चुनाव हारने के बाद उनका पुरानी पार्टी से मोहभंग हो गया।
  1. दो बार वित्तमंत्री रहे: संपत सिंह 1987 में ताऊ देवीलाल के नेतृत्व में बनने वाली सरकार में वित्तमंत्री रहे। उनके पास उद्योग, आबकारी एवं कराधान, नगर एवं ग्राम नियोजन, गृह, स्थानीय निकाय, जेल, जनसंपर्क, सिंचाई एवं विद्युत, वित्त, संसदीय मामले एवं योजना मंत्री का कार्यभार था। इसके बाद 1999 में ओमप्रकाश चौटाला के नेतृत्व वाली सरकार में भी वह वित्त मंत्री रहे।
  2. इनेलो-भाजपा गठबंधन सरकार बनाने में भूमिका रही: संपत सिंह ने 1987-91 और 1999-2005 के दौरान हरियाणा में इनेलो-भाजपा गठबंधन सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और इस दौरान राजनीतिक संकटों के प्रबंधन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  3. अपने कार्यकाल में हरियाणा को वैट लागू करने वाला पहला राज्य बनाया: हरियाणा के वित्त मंत्री के रूप में डॉ. मनमोहन सिंह के तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री रहते हुए केंद्र द्वारा सुझाए गए वित्तीय सुधारों को लागू करने वाला हरियाणा को पहला राज्य बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वित्त मंत्री रहते हुए हरियाणा वैट लागू करने वाला भी पहला राज्य बना था।
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