हरियाणा के नए पुलिस महानिदेशक (DGP) ओपी सिंह ने पुलिसकर्मियों और अधिकारियों को चौथा लेटर जारी किया है। इस लेटर में उन्होंने प्रदेश के थानों में तैनात सभी SHO, DSP, ACP, SP, DCP, CP, IG, ADG रेंज के अधिकारियों से कहा, “मैं चाहता हूं कि आप यह समझें कि सरकारी दफ्तर लोगों के पैसे से बने हैं। ये उनकी सहायता और उनकी समस्याओं के समाधान के लिए हैं।
मेरा मानना है कि पब्लिक डीलिंग एक बेहतरीन कला है। इसका संबंध आपके ऑफिस के डिजाइन, सॉफ्ट-स्किल और प्रबंधन क्षमता से है। सबसे पहले अपने ऑफिस की टेबल का साइज छोटा करें। अपनी और विजिटर्स की कुर्सी एक जैसी करें। अपनी कुर्सी पर तौलिए का इस्तेमाल बिल्कुल न करें। इसका कोई मतलब नहीं है। जिन्हें पब्लिक डीलिंग की समझ नहीं, उन्हें चौकी-थानों से हटाएं।”
विजिटर्स के लिए अलग रूम बनाएं
DGP ने लेटर में लिखा, “अगर आपके ऑफिस में कोई कॉन्फ्रेंस हॉल है तो विजिटर्स को वहीं बैठाएं। अगर नहीं है तो अपने ऑफिस के एक बड़े कमरे को विजिटर्स रूम बनाएं। वहां प्रेमचंद, दिनकर, रेणु जैसे साहित्यकारों की किताबें रखें। एक व्यक्ति को नियुक्त करें जो उन्हें चाय-पानी पूछे और परोसे। एक व्यवहार-कुशल पुलिसकर्मी को नियुक्त करें जो उनसे उनके आने के उद्देश्य और समस्या के बारे में अनौपचारिक रूप से बात करके उन्हें सहज महसूस कराए।”
मेट्रो स्टेशन का प्रोटोकॉल फॉलो करें
उन्होंने कहा कि लोगों को गेट से विजिटर्स रूम तक पहुंचने के लिए मेट्रो रेल स्टेशन के प्रोटोकॉल की तरह फुट स्टेप्स, साइनेज अपनाएं। डीएवी पुलिस-पब्लिक स्कूल के इच्छुक छात्रों को स्टीवर्ड की ट्रेनिंग दें। उन्हें विजिटर्स को गेट पर रिसीव करने और उन्हें विजिटर्स रूम तक पहुंचने में सहायता करने के स्वयंसेवा के काम में लगाएं। परेशान लोगों को भटकना नहीं पड़ेगा और बच्चों को सॉफ्ट स्किल और संवेदनशीलता की ट्रेनिंग मिलेगी।
थाने के कॉन्फ्रेंस हॉल में लोगों से मिलें उन्होंने आगे लिखा कि अगर कॉन्फ्रेंस हॉल है तो लोगों से वहीं मिलें। जिनकी बारी हो उन्हें पास की कुर्सी पर बैठाएं। जब लोग अपनी बात रख रहे हों तो मोबाइल दूर रखें, एक्टिवली सुनें। समस्या ठीक से फ्रेम करने में उनकी मदद करें। जिस पुलिसकर्मी को इनका काम करना है उनको इनका मोबाइल नोट करा दें। उन्हें कहें कि वे कंप्लेनेंट से संपर्क कर लें।
हफ्ते में तीन में से एक कार्रवाई करें
DGP ने कहा कि एक हफ्ते के अंदर 3 में से एक कार्रवाई कर दें – एक, अगर मुकदमा बनता है तो दर्ज कर दें। दूसरा, शिकायत सिविल नेचर का हो थाने के कंप्यूटर से ही तो CM विंडो में दर्ज करा दें। हो सके तो संबंधित अधिकारी को फोन भी कर दें।
तीसरा, अगर शिकायत झूठी हो रोजनामचे में रपट दर्ज कर उनकी एक कॉपी चेतावनी के तौर कंप्लेनेंट को दे दें। अगर झूठी शिकायत का आदि हो तो मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई करें। हर हाल में बहसबाजी से बचें।
ऐसा न करने वाले पुलिसकर्मियों की पेशी लें
DGP ने कहा कि जो पुलिसकर्मी ऐसा न करें, उनकी पेशी लें, कारण जानें, और उन्हें प्रेरित-प्रशिक्षित करें। अगर ढिलाई दिखे तो चेतावनी दें, और अगर पब्लिक डीलिंग की समझ ही नहीं है तो उन्हें थाना-चौकी से दूर कर कोई और काम दें। बढ़ई को हलवाई का काम देने में कोई बुद्धिमानी नहीं है। याद रखें, पुलिस एक बल है और सेवा भी। आप एक तार हैं जिसमें बिजली का करंट दौड़ रहा है। लोगों को आपसे कनेक्शन चाहिए, रोशनी चाहिए। झटका बेशक दें, लेकिन ये उसे दें जो लोगों का खून चूसते हैं।