राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर की सिंगल बेंच ने कुचामन सिटी म्युनिसिपल काउंसिल के चेयरमैन आसिफ खान के निलंबन आदेश पर रोक लगा दी है। जस्टिस कुलदीप माथुर ने अपने आदेश में निदेशक लोकल सेल्फ डिपार्टमेंट, जयपुर के 19 अगस्त 2025 के आदेश पर स्टे देने के साथ ही न्यायिक अधिकारी को निर्देश दिया कि 45 दिन में न्यायिक जांच पूरी की जाए। इस मामले में अगली सुनवाई 3 नवंबर को होगी।
दरअसल, डीडवाना-कुचामन जिले के कुचामन सिटी वार्ड नंबर 44 निवासी आसिफ खान पुत्र अब्दुल अजीज खान पर आरोप है कि उन्होंने विकास नामक एक कर्मचारी को गैरकानूनी रूप से स्लीपर की पोस्ट से जमादार की पोस्ट पर प्रमोशन दिया था। आरोप के आधार पर निदेशक लोकल सेल्फ डिपार्टमेंट, जयपुर ने 19 अगस्त को आसिफ खान को निलंबित कर दिया था।
आसिफ खान ने 2 अलग-अलग रिट पिटीशन दायर करके इस निलंबन आदेश को चुनौती दी थी। उनका कहना था कि यह आदेश राजनीति से प्रेरित है और उन्हें परेशान करने तथा अपमानित करने के लिए जारी किया गया है।
चर्चा के बाद ही प्रमोशन प्रस्ताव पारित
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ एडवोकेट डॉ. सचिन आचार्य ने सहयोगी चयन बोथरा और रीना गुप्ता के साथ कोर्ट में पक्ष रखा। डॉ. आचार्य ने कोर्ट में तर्क दिया कि विकास के प्रमोशन को मंजूरी देने से पहले इस मामले को म्युनिसिपल काउंसिल कुचामन सिटी की जनरल मीटिंग में रखा गया था। उचित विचार-विमर्श के बाद ही विकास को जमादार की पोस्ट पर प्रमोशन देने का प्रस्ताव पारित किया गया था।
सीनियर एडवोकेट डॉ. आचार्य ने राम स्वरूप भाटी बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य के मामले में 29 अगस्त को दिए गए फैसले का हवाला देते हुए कहा कि जिस व्यक्ति के खिलाफ जांच शुरू हो गई है, उसे निलंबित करने का उद्देश्य गवाहों पर प्रभाव डालने, रिकॉर्ड के साथ छेड़छाड़ करने को रोकना या निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करना होता है।
जनप्रतिनिधि को चुनाव लड़कर सीमित समय के लिए स्थानीय निकाय का सदस्य चुना जाता है, इसलिए भ्रष्टाचार के किसी विशिष्ट आरोप के बिना केवल शिकायत या अनियमितता के संदेह पर उसे निलंबित नहीं किया जा सकता।
चहेते को नियमों के खिलाफ प्रमोशन दिया
सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता राजेश पंवार और AAAG मोनल चुघ ने कोर्ट में तर्क दिया कि मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता ने अपने चहेते कर्मचारी को सीनियॉरिटी लिस्ट और लागू नियमों की अनदेखी करते हुए प्रमोशन दिया है।
उन्होंने कहा कि म्युनिसिपैलिटी के चेयरमैन होने के नाते याचिकाकर्ता को काउंसिल की सामान्य बैठक में मामला रखने से पहले ही रिकॉर्ड की सूक्ष्मता से जांच करनी चाहिए थी, जिसमें विकास को स्लीपर की पोस्ट से प्रमोशन देने का प्रस्ताव पारित हुआ था।
हाईकोर्ट का फैसला और जांच निर्देश:
जस्टिस कुलदीप माथुर ने मामले की गंभीरता को देखते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किए:
- निलंबन पर स्टे: 19 अगस्त के निलंबन आदेश और 20 अगस्त के शुद्धिपत्र का प्रभाव और क्रियान्वयन तब तक के लिए रोक दिया गया, जब तक कि अगला आदेश न आए।
- रिकॉर्ड सील करने का आदेश: कोर्ट ने निदेशक, लोकल सेल्फ डिपार्टमेंट को निर्देश दिया कि कर्मचारी विकास के प्रमोशन से संबंधित पूरा रिकॉर्ड सील किया जाए और उस न्यायिक अधिकारी के समक्ष रखा जाए, जो याचिकाकर्ता के खिलाफ न्यायिक जांच करेगा।
- त्वरित न्यायिक जांच: न्यायिक अधिकारी से यह उम्मीद की जाती है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ न्यायिक जांच जितनी जल्दी हो सके पूरी कर ली जाए, बेहतर होगा कि आज से 45 दिनों के अंदर यह पूरी कर ली जाए और याचिकाकर्ता को बिना किसी वजह के सुनवाई टालने की अनुमति न दी जाए।