अमेरिका के लॉन्ग आइलैंड स्थित एक MRI सेंटर में 61 वर्षीय व्यक्ति की मौत हो गई। पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक, व्यक्ति ने गले में एक भारी धातु की चेन थी, जो मशीन की तीव्र चुंबकीय शक्ति के कारण खिंच गई और उसे गंभीर चोटें आईं। अगले ही दिन उसकी मौत हो गई।
यह घटना न सिर्फ MRI की ताकत को समझाने के लिए काफी है, बल्कि यह भी बताती है कि सुरक्षा जांच, गाइडलाइंस और जागरूकता कितनी जरूरी है।
तो चलिए, जरूरत की खबर में बात करते हैं कि MRI में खतरा क्यों होता है? साथ ही जानेंगे कि-
- MRI सेंटर में सुरक्षा को लेकर क्या सावधानी बरतें?
एक्सपर्ट: डॉ. शरद माहेश्वरी, कंसल्टेंट रेडियोलॉजिस्ट, कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल, मुंबई
सवाल- MRI क्या है और इसमें खतरा क्यों होता है?
जवाब- MRI (मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग) एक खास तरह की स्कैनिंग मशीन है, जो शरीर के अंदरूनी अंगों की क्लियर तस्वीरें लेती है। इसमें न सर्जरी होती है और न ही हानिकारक रेडिएशन का इस्तेमाल होता है। MRI मशीन में बहुत ताकतवर चुंबक होती है। इस मशीन से अंदरूनी चोटों की जांच, नसों की सूजन या ट्यूमर का पता लगाने में मदद मिलती है।
सवाल- MRI में चुंबकीय शक्ति कितनी तीव्र होती है?
जवाब- MRI मशीन में बहुत ही शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र होता है, जिसे टेस्ला (Tesla) नामक इकाई में मापा जाता है। आमतौर पर अस्पतालों में इस्तेमाल होने वाली MRI मशीनें 0.5 टेस्ला से 3.0 टेस्ला तक की होती हैं, यानी लगभग 5,000 से 30,000 गॉस (Gauss) ताकत तक। तुलना करें तो पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र केवल 0.5 गॉस होता है, यानी MRI मशीन का चुंबकीय बल धरती की तुलना में हजारों गुना अधिक होता है।
सवाल- MRI मशीन के पास मेटल की चीजें ले जाना कितना खतरनाक है?
जवाब- तीव्र चुंबकीय शक्ति की वजह से मशीन के पास मौजूद किसी भी धातु की वस्तु (जैसे चेन, चाबी, हेयरपिन) को वह तेजी से खींच सकती है, जिससे गंभीर चोट या जान का खतरा हो सकता है। इसलिए MRI रूम में जाने से पहले मरीज और स्टाफ की पूरी सुरक्षा जांच की जाती है, ताकि कोई धातु अंदर न जाए।
सवाल- MRI टेस्ट कराने से पहले किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
जवाब- कई आम चीजें जिन्हें हम रोजमर्रा में पहनते या इस्तेमाल करते हैं, MRI रूम में गंभीर खतरा बन सकती हैं। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि किन चीजों से बचना चाहिए।
सवाल- अगर शरीर में मेटल इम्प्लांट या पेसमेकर हो तो क्या MRI कराना सुरक्षित है?
जवाब- शरीर में मेटल इम्प्लांट (जैसे जॉइंट रिप्लेसमेंट, स्क्रू, प्लेट) या पेसमेकर लगा है तो MRI से पहले इसकी पूरी जानकारी डॉक्टर को देना जरूरी है। हर मेटल MRI-सुरक्षित (MRI-compatible) नहीं होता है। पेसमेकर या कुछ अन्य इलेक्ट्रॉनिक इम्प्लांट्स पर MRI की मैग्नेटिक फील्ड का गंभीर असर पड़ सकता है, जिससे जान का खतरा हो सकता है। ऐसे मामलों में डॉक्टर MRI की जगह कोई और वैकल्पिक जांच सुझा सकते हैं।
सवाल- मरीज और अटेंडेंट की क्या स्क्रीनिंग होती है?
जवाब- MRI करवाने से पहले मरीज और साथ आने वाले किसी भी व्यक्ति की जांच की जाती है। सबसे पहले एक फॉर्म भरवाया जाता है, जिसमें पूछा जाता है कि उनके शरीर में कहीं मेटल तो नहीं है। फिर मेटल डिटेक्टर या सामान्य तरीके से चेक करके देखा जाता है कि उनके पास कोई धातु की चीज न हो। आमतौर पर साथ आए व्यक्ति को MRI रूम में जाने नहीं दिया जाता है, जब तक बहुत जरूरी न हो।
सवाल- अस्पतालों को MRI रूम को लेकर किस तरह की सावधानियां बरतनी चाहिए?
जवाब- अस्पतालों को MRI रूम से जुड़ी सुरक्षा के लिए स्पष्ट और सख्त प्रोटोकॉल अपनाने चाहिए। इसके लिए नीचे ग्राफिक में दिए इन पॉइंट्स को फॉलो करें।
सवाल- MRI से जुड़ी सरकार या मेडिकल गाइडलाइंस क्या हैं?
जवाब- भारत में MRI से जुड़ी सुरक्षा और संचालन के लिए इंडियन रेडियोलॉजिकल एंड इमेजिंग एसोसिएशन (IRIA), एटोमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड (AERB) और नेशनल एक्रेडिटेशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल्स एंड हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स (NABH) जैसी संस्थाएं दिशा-निर्देश जारी करती हैं। अस्पतालों को MRI के लिए कुछ जरूरी सेफ्टी नियम अपनाने होते हैं। जैसेकि-
- MRI रूम को चार जोन (Zone 1 से Zone 4) में बांटा जाता है, ताकि सुरक्षा बनी रहे।
- हर मरीज से MRI से पहले सेफ्टी फॉर्म भरवाया जाता है, जिसमें उनकी मेडिकल हिस्ट्री और मेटल इम्प्लांट की जानकारी ली जाती है।
- MRI यूनिट में नॉन-मैग्नेटिक स्ट्रेचर और ऑक्सीजन सिलेंडर ही होने चाहिए।
- हर MRI सेंटर में एक सेफ्टी ऑफिसर या प्रशिक्षित स्टाफ होना जरूरी है।
- किसी इमरजेंसी के लिए इमरजेंसी प्रोटोकॉल तय होना चाहिए।
सवाल- MRI के दौरान घबराहट या क्लॉस्ट्रोफोबिया (बंद जगह का डर) हो तो क्या करें?
जवाब- MRI मशीन एक टनल जैसी होती है, जिसमें मरीज को कुछ समय के लिए लेटना पड़ता है। इस दौरान कुछ लोगों को घबराहट, सांस लेने में दिक्कत या क्लॉस्ट्रोफोबिया हो सकता है। ऐसे मरीजों को टेस्ट से पहले डॉक्टर को बताना चाहिए। जरूरत पड़े तो हल्की सिडेशन (दवा से शांत करना) दी जा सकती है या ओपन MRI का विकल्प अपनाया जा सकता है, जिसमें मशीन टनल जैसी नहीं होती है।