केंद्र सरकार जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ लगे आरोपों की जांच के लिए एक कमेटी बनाने की तैयारी कर रही है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक, इस कमेटी में सुप्रीम कोर्ट के एक जज, किसी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित कानूनविद को शामिल किया जा सकता है।
यह कमेटी जस्टिस वर्मा के खिलाफ लगे आरोपों की जांच करेगी और अपनी रिपोर्ट देगी। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट की ओर से हुई इन हाउस जांच में जस्टिस वर्मा को कैश बरामदगी मामले में दोषी माना गया था।
उधर जस्टिस यशवंत वर्मा के कैश कांड की सुनवाई से चीफ जस्टिस बीआर गवई ने खुद को अलग कर लिया है। बुधवार को सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा,’ मेरे लिए इस केस की सुनवाई में शामिल होना उचित नहीं होगा, क्योंकि मैं पहले भी इसका हिस्सा रहा हूं।’
दरअसल, 19 जुलाई जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इसमें उन्होंने इन-हाउस कमेटी की रिपोर्ट और महाभियोग की सिफारिश रद्द करने की अपील की थी। रिपोर्ट में घर में कैश मिलने के मामले में जस्टिस वर्मा को दोषी ठहराया गया है।
याचिका में जस्टिस वर्मा बोले- घर से नोट मिलना साबित नहीं करता कि ये मेरे थे
18 जुलाई को जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें उन्होंने तर्क दिया था कि उनके आवास के बाहरी हिस्से में कैश बरामद होने मात्र से यह साबित नहीं होता कि वे इसमें शामिल हैं, क्योंकि आंतरिक जांच समिति ने यह तय नहीं किया कि नकदी किसकी है या परिसर में कैसे मिली।
समिति के निष्कर्षों पर सवाल उठाते हुए उनका तर्क दिया है- ये अनुमान पर आधारित है। याचिका में जस्टिस वर्मा का नाम नहीं है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट डायरी में इसे ‘XXX बनाम भारत सरकार व अन्य’ के टाइटल से दर्ज किया गया है।
जस्टिस वर्मा ने 5 सवालों के जवाब मांगे
जस्टिस वर्मा ने अपनी याचिका में 5 सवालों के जवाब मांगे हैं, साथ ही 10 तर्क दिए हैं, जिनके आधार पर जांच समिति की रिपोर्ट रद्द करने की मांग और महाभियोग की सिफारिश रद्द करने का अनुरोध किया गया है।
जस्टिस वर्मा ने याचिका में कहा है कि नोटों की बरामदगी पर समिति को इन 5 सवालों के जवाब देने चाहिए थे-
- बाहरी हिस्से में नकदी कब, कैसे और किसने रखी?
- कितनी नकदी रखी गई थी?
- नकदी असली थी या नहीं?
- आग लगने का कारण क्या था?
- क्या याचिकाकर्ता किसी भी तरह से 15 मार्च 2025 को ‘बची हुई नकदी’ को ‘हटाने’ के लिए जिम्मेदार था?
याचिका में जस्टिस वर्मा के 10 तर्क…
- राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजी गई महाभियोग सिफारिश अनुच्छेद 124 और 218 का उल्लंघन है।
- 1999 की फुल कोर्ट बैठक में बनी इन-हाउस प्रक्रिया सिर्फ प्रशासनिक व्यवस्था है, न कि संवैधानिक या वैधानिक। इसे न्यायाधीश को पद से हटाने जैसे गंभीर निर्णय का आधार नहीं बनाया जा सकता।
- जांच समिति का गठन बिना औपचारिक शिकायत के सिर्फ अनुमानों और अप्रमाणित जानकारियों से किया। यह इन-हाउस प्रक्रिया के मूल उद्देश्य के ही खिलाफ है।
- 22 मार्च 2025 को प्रेस विज्ञप्ति में आरोपों का सार्वजनिक उल्लेख किया। इससे मीडिया ट्रायल शुरू हो गया और उनकी प्रतिष्ठा को गहरा नुकसान पहुंचा।
- न साक्ष्य दिखाए, न आरोपों के खंडन करने का मौका दिया। मुख्य गवाहों से मेरी अनुपस्थिति में पूछताछ हुई। CCTV फुटेज को सबूत के तौर पर नहीं लिया गया।
- समिति ने नकदी किसने रखी, वह असली थी या नहीं, आग कैसे लगी जैसे मूल प्रश्नों को अनदेखा किया।
- समिति की रिपोर्ट अनुमानों और पूर्व धारणाओं पर आधारित थी, न कि किसी ठोस सबूत पर। यह गंभीर कदाचार सिद्ध करने के लिए अपर्याप्त है।
- जांच रिपोर्ट मिलने के कुछ ही घंटों में तत्कालीन चीफ जस्टिस ने इस्तीफा देने या महाभियोग का सामना करने की चेतावनी दी। पक्ष रखने का अवसर नहीं दिया।
- पिछले मामलों में न्यायाधीशों को व्यक्तिगत सुनवाई का मौका मिला था। इस मामले में परंपरा की अनदेखी हुई।
- रिपोर्ट गोपनीय बनाए रखने के बजाय उसके अंश मीडिया में लीक और तोड़-मरोड़ कर दिए गए, जिससे छवि खराब हुई जिसकी कभी भरपाई नहीं हो सकेगी।
संसद में आएगा महाभियोग प्रस्ताव
21 जुलाई को मानसून सत्र के पहले दिन संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाने की पूरी तैयारी है। सभी पार्टियों से बात हो चुकी है और संसद की राय एकजुट है।
रिजिजू ने आगे बताया कि लगभग सभी बड़े राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेताओं से चर्चा की है। जिन पार्टियों के सिर्फ एक-एक सांसद हैं, उनसे भी बात करूंगा, ताकि संसद का यह रुख सर्वसम्मति वाला हो।
जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए 152 सांसदों ने 21 जुलाई को लोकसभा में अध्यक्ष ओम बिरला को ज्ञापन सौंपा। राज्यसभा में 50 से ज्यादा सांसदों ने प्रस्ताव पर साइन किए।