सुप्रीम कोर्ट ने बीमा इंश्योरेंस क्लेम के एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा है कि बीमा कंपनियां सिर्फ इस आधार पर दुर्घटना पीड़ितों को मुआवजा देने से इनकार नहीं कर सकतीं कि दुर्घटना करने वाला वाहन तय रूट से अलग चल रहा था या परमिट की शर्तों का उल्लंघन हुआ था। SC ने बीमा कंपनी को राशि चुकाने का आदेश दिया है।
मामला 2014 का है। तेज रफ्तार बस की चपेट में आकर एक मोटरसाइकिल सवार की मौत हो गई थी। मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण ने 18.86 लाख रुपए मुआवजे का आदेश दिया था। वाहन मालिक ने इसे कर्नाटक हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।
वाहन मालिक और इंश्योरेंस कंपनी की दलील
बीमा कंपनी ने भी तर्क दिया था कि वाहन ने बीमा पॉलिसी की शर्तों का उल्लंघन किया था। हाई कोर्ट ने बीमा कंपनी को निर्देश दिया कि पहले मुआवजा अदा करे और बाद में वाहन स्वामी से वसूले। इसके खिलाफ बीमा कंपनी और वाहन मालिक सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच का कहना
जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच ने कहा कि
बीमा पॉलिसी का मकसद यह है कि अगर कभी कोई अचानक हादसा हो जाए, तो वाहन मालिक या चालक को होने वाले आर्थिक नुकसान या जिम्मेदारी से बचाया जा सके।
बीमा कंपनी की अपील खारिज
सिर्फ दुर्घटना परमिट की सीमा के बाहर होने के आधार पर पीड़ित या उसके आश्रितों को मुआवजा न देना न्याय की भावना के विपरीत होगा। शीर्ष अदालत ने वाहन मालिक और बीमा कंपनी की अपील खारिज कर दी।
50 प्रतिशत गाड़ियां बिना इंश्योरेंस के सड़कों पर
वहीं सुप्रीम कोर्ट की बेंच 30 अक्टूबर को एक अन्य मामले की सुनवाई कर रही थी। इसमें तेलंगाना हाईकोर्ट ने एक इंश्योरेंस कंपनी को सड़क हादसे में मृत व्यक्ति के परिवार को करीब 10 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया था। क्लेम करने वालों ने 1996 में एक एक्सीडेंट में अपने परिवार के सदस्य को खो दिया था।
इसी दौरान दावेदारों की ओर से वरिष्ठ वकील जॉय बसु ने बताया कि देश में करीब 50% वाहन इस समय बिना बीमा के चल रहे हैं। इस बात ने जस्टिस करोल का हैरत में डाल दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने मांगे सुझाव
वरिष्ठ वकील बसु ने कहा कि कोर्ट को इस स्थिति से निपटने के लिए सख्त कदम उठाने के निर्देश देने चाहिए। इस पर जस्टिस करोल ने उनसे सहमति जताते हुए सुझाव मांगे।