आज बाल दिवस है। दैनिक भास्कर के जरिए भोपाल के स्कूली बच्चों ने नगर निगम कमिश्नर से बातचीत की। बाल दिवस पर भोपाल नगर निगम कमिश्नर से बाल पत्रकारों के तौर पर सेंट जोफस कॉन्वेंट की गौरी गुर्जर, माउंट कार्मल की न्योनिका शर्मा, सागर पब्लिक स्कूल के विदित पिलानी, सीएम राइज सांदीपनी गवर्नमेंट स्कूल की जिया शेख और डीपीएस के सानिध्य ने नगर निगम कमिश्नर, IAS संस्कृति जैन से बच्चों की बातचीत पढ़िए-
सवाल: आपको सुपर पावर मिल जाए तो भोपाल में क्या बदलना चाहेंगी?
संस्कृति जैन: एक एडमिनिस्ट्रेटर के तौर पर मैं चाहूंगी कि मैं अपनी सुपर पॉवर से लोगों को रिस्पॉन्सिबिल सिटीजन बना दूं। लोग खुद गीला-सूखा कचरा अलग-अलग करने लगें, पब्लिक प्लेस पर कचरा न फैलाएं, रोड सिग्नल्स न तोड़ें, ओवर स्पीडिंग न करें। वो सारे नियम मानें जो भोपाल के लोगों को एक रिस्पॉन्सिबिल सिटीजन बना दे।
सवाल: हमारी किताबों में फीमेल रोल मॉडल्स कम हैं, ऐसा क्यों?
संस्कृति जैन: यह बात तो है, किताबों में फीमेल रोल मॉडल्स कम हैं। पर अब धीरे-धीरे जेंडर डिस्क्रिमिनेशन कम हो रहा है। हमारे आस-पास ही देखो ना, कोई फीमेल ऑफिसर होती है, तो उसे लेडी ऑफिसर कहकर पुकारते हैं, पर मेल हो तो मेल ऑफिसर तो नहीं कहते। तब तो वो सिर्फ ऑफिसर ही होता है। मगर एक महिला के ऑफिसर बनाने के लिए फैमिली सपोर्ट मिलना बहुत जरूरी है, घर में जब सब उसका हाथ बंटाते हैं, तभी महिला दूसरी जिम्मेदारियां निभाने बाहर निकल पाती है।
सवाल: कभी आपको आम आदमी से भी कुछ ऐसा सीखने को मिला जो किताबों में न हो?
संस्कृति जैन: मैंने एमपी में कई जगहों पर अलग-अलग रोल्स में काम किया है। मगर, जब मैं सिवनी कलेक्टर थी, तब वहां “गिफ्ट ए डेस्क” अभियान चलाया था। जिसमें क्राउड फंडिंग से 14000 डेस्क स्कूलों तक पहुंचीं। यह आइडिया मुझे असल में बच्चों ने ही दिया, एक स्कूल विजिट के लिए गई, तो बच्चों ने मुझे अपनी प्रॉब्लम बताई और उनसे डिस्कशन में यह आइडिया जेनरेट हुआ। बेशक, यह मेरी जिंदगी का एक ऐसा निर्णय रहा, जिसके लिए कोई फाइल साइन नहीं, पर अभियान सफल रहा।
सवाल: आईएएस बनने की इंस्पिरेशन कहां से मिली? संस्कृति जैन: मैं हमेशा से अपने लिए एक चैलेंजिंग जॉब चाहती थी। यूपीएससी देने के पहले इंजीनियरिंग कंपनी में भी काम किया, फिर एक कंपनी के साथ पॉलिसी के सेक्टर में काम किया, तब लगा कि सिविल सर्वेंट बन जाएं तो मल्टीडायमेंशनल अप्रोच से काम कर सकती हूं। मगर यह जर्नी भी आसान नहीं थी। मेरे पेरेंट्स एयरफोर्स में थे, तो कभी फाइनेंशियल क्रंच तो नहीं झेलना पड़ा, मगर मेरा सिलेक्शन तीसरी बार में हुआ। इस सिलेक्शन और बार-बार तैयार करने के लिए बहुत बड़े मोटिवेशन की जरूरत होती है।
सवाल: हमारी बहुत सारी सड़कें टूटी हुई हैं, ये सुधरती क्यों नहीं?
संस्कृति जैन: हमारे पास सोर्सेज लिमिटेड हैं, कई जगहें ऐसी हैं जहां सीवेज लाइन्स हमें नई डालनी हैं, या कोई ऐसा प्लान प्रपोज्ड है, जहां अभी सड़क बना भी दें, तो हमें वापिस इसे उखाड़ना ही पड़ेगा, तो ऐसी जगह रिसोर्स क्यों खराब करना। बस, इसी तरह की कुछ लंबी प्लानिंग्स को एग्जीक्यूट करने के लिए कुछ सड़कें खराब हैं और रूट डायवर्ट हो रहे हैं। यहां पैच से काम चल सकता है, वहां हम टेम्प्रेरी अरेंजमेंट कर देते हैं। मगर, हम सड़कें बनाने वाली अकेली एजेंसी नहीं हैं, कई और भी लोग हैं, जो सड़कें बनाने की जिम्मेदारियां निभा रहे हैं।
सवाल: क्या लेडी ऑफिसर्स वर्कप्लेस पर सॉफ्ट होती हैं?
संस्कृति जैन:यह असल में हमारे देखने के नजरिए पर निर्भर करता है। कोई महिला पुलिस साहस का काम कर दे, तो उसे सभी लेडी सिंघम कहने लगते हैं, लेकिन मेल्स के उतने ही साहस पर कोई ध्यान भी नहीं देता। मेल से स्ट्रिक्टनेस की उम्मीद की जाती है, मगर कोई महिला तेज आवाज में बात करने लगे तो उसके नाम रख दिए जाते हैं। मुझे लगता है कि एक फीमेल ऑफिसर अपने साथी कर्मचारियों के हर पहलू को समझती है, वह उन्हें एक इंसान की तरह देखती है कि व्यक्ति की ऑफिस के अलावा भी एक जिंदगी है, तो फैमिली इश्यूज को भी सपोर्ट करने में मदद करती है।
क्रॉस क्वेश्चन : तो आप कैसी ऑफिसर हैं, स्ट्रिक्ट?
जवाब : नहीं, मैं एक स्मार्ट ऑफिसर हूं।
सवाल: पापा बताते हैं कि सड़कें तो असल में चौड़ी ही हैं, मगर उन पर जो एन्क्रोचमेंट है, वो असल वजह है सड़कों के सकरी होने की। इसे कैसे हटाएंगी?
संस्कृति जैन: हमें लोगों के लाइवलीहुड को भी नहीं मारना और सड़कें भी चौड़ी चाहिए, तो इसका एक म्यूचुअल तरीका हो सकता है। हम तो शहर में जगह-जगह हॉकर्स कॉर्नर बना ही रहे हैं, मगर सोसायटीज भी रोड-साइड वेंडर्स को यदि अपनी प्रिमाइसेज में एक जगह खुद से एलॉट कर दें, तो सड़कों से इन्हें हटाया जा सकता है।
सवाल: आपकी जिंदगी का फेवरेट मोमेंट क्या रहा? संस्कृति जैन: जब भी परिवार के साथ होती हूं, हर मोमेंट फेवरेट ही होता है। मगर, हां… एक बार अलीराजपुर में भगोरिया मेला चल रहा था। मुझे वहां कलाकारों के साथ डांस का मौका मिला। उस दिन उस मोमेंट को मैंने खूब एंजॉय किया था।.