मंदसौर में रहस्यमयी बीमारी के 6 मामले, 3 गंभीर:मुल्तानपुरा में 36 लोग मेडिकल ऑब्जर्वेशन में; बोले- यह जानलेवा, चलना-उठना, सांस लेना तक मुश्किल

मंदसौर का मुल्तानपुरा गांव गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) नाम की खतरनाक बीमारी की चपेट में आ गया है। अब तक यहां 6 लोग जीबीएस पॉजिटिव पाए जा चुके हैं। इनमें से तीन मरीज ठीक हो चुके हैं जबकि तीन अभी भी वेंटिलेटर पर जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं। वहीं, 56 संदिग्ध में से 36 लोगों को मेडिकल ऑब्जर्वेशन में रखा गया है। इनमें दस्त, सर्दी, खांसी और बुखार के लक्षण हैं।

यहां 30 जुलाई को एक युवती की मौत भी हो चुकी है, जिसके लक्षण इस बीमारी से मिलते-जुलते हैं। दस हजार की आबादी वाले इस गांव में स्वास्थ्य विभाग की टीम सर्वे कर रही है। अब तक 1555 घरों के 8331 लोगों का सर्वे किया जा चुका है। लोगों का कहना है कि यह जानलेवा बीमारी है। इसमें चलने, उठने और सांस लेने तक में मुश्किल होती है।

कचरे के ढेर, गंदी नालियां और कीचड़ से सनी गलियां

लगभग 10 हजार की आबादी वाले मुल्तानपुरा गांव में सड़क किनारे कचरे के ढेर, गंदे पानी से भरी नालियां और कीचड़ से सनी गलियां दिखाई दीं। स्थानीय लोगों ने बताया कि गांव की साफ-सफाई की स्थिति बेहद खराब है, जिससे संक्रमण फैलने की आशंका बनी हुई है।

स्वास्थ्य विभाग की चार टीमें 32 कर्मचारियों के साथ घर-घर जाकर सर्वे कर रही हैं।

मरीजों की उम्र 2 से 21 साल तक

मुल्तानपुरा में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) की चपेट में आए मरीजों की उम्र 2 से 21 साल तक है। इनमें खुशी, साहिल और अरहान बीमारी को मात देकर स्वस्थ हो चुके हैं। वहीं, ताजमुल अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में वेंटिलेटर पर भर्ती हैं।

गांव के 3 अलग-अलग केस से समझें स्थिति

पहला केस: पहले बुखार आया, फिर चलना-फिरना बंद हो गया

बीमारी से जंग जीत चुकी 10 वर्षीय खुशी के पिता सद्दाम मंगुड़ा ने अपनी बेटी के इलाज का पूरा घटनाक्रम बताया। उन्होंने कहा कि शुरुआत में खुशी को बुखार आया था। अस्पताल में इलाज से बुखार तो उतर गया, लेकिन खुशी चल-फिर नहीं पा रही थी। पैरालिसिस का शक होने पर वे बेटी को बड़नगर ले गए। वहां के डॉक्टरों ने रतलाम मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया।

इसके बाद सद्दाम बेटी को लेकर इंदौर के अरविंदो अस्पताल पहुंचे, जहां जांच में GBS की पुष्टि हुई। आठ दिन के इलाज के बाद खुशी स्वस्थ होकर घर लौट आई है। सद्दाम का कहना है कि गांव में फैली गंदगी इस बीमारी का कारण है। उन्होंने जिम्मेदार अधिकारियों से इस ओर ध्यान देने की मांग की है।

दूसरा केस: ताजमुल की सांसें अब मशीनों के सहारे

मुल्तानपुरा के 21 वर्षीय ताजमुल इन दिनों अहमदाबाद सिविल अस्पताल में वेंटिलेटर पर जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं। डॉक्टरों ने बताया कि GBS ऐसी बीमारी है, जो शरीर की नसों पर हमला करती है और धीरे-धीरे मांसपेशियों को पूरी तरह निष्क्रिय कर सकती है। ताजमुल को खाना-पीना तो दूर, सांस लेने के लिए भी मशीनों की मदद लेनी पड़ रही है।

तीसरा केस: 12 दिन इलाज के बावजूद नहीं बची 19 वर्षीय युवती की जान

30 जुलाई को गांव की 19 वर्षीय युवती की मौत हो गई। भास्कर की टीम जब मृतका के घर पहुंची तो परिजन ने बात करने से मना कर दिया। बाद में भाई हुसैन ने बताया कि 18 जुलाई को बहन को सांस लेने में तकलीफ और खाने-पीने में परेशानी होने लगी। परिवार ने तुरंत मंदसौर के पमनानी अस्पताल में भर्ती कराया, जहां कुछ दिन इलाज चला।

स्थिति में सुधार नहीं होने पर उसे अनुयोग अस्पताल ले जाया गया। जहां से तीन दिन बाद ही डॉक्टरों ने इंदौर के अरविंदो अस्पताल रेफर कर दिया। इंदौर में उसे लगातार 8 दिन आईसीयू में भर्ती रखा गया, लेकिन हालत में कोई सुधार नहीं हुआ और 30 जुलाई को उसने दम तोड़ दिया।

परिजन के अनुसार, डॉक्टरों ने युवती को गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) होने की आशंका जताई थी। हालांकि, पुष्टि नहीं हो सकी। इस मौत ने गांव में दहशत का माहौल पैदा कर दिया है।

अब जानें क्या है गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS)

जिला अस्पताल के डॉ. शुभम सिलावट ने बताया कि गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) एक गंभीर बीमारी है। यह आमतौर पर पैरों में सुन्नपन या झुनझुनी से शुरू होती है और धीरे-धीरे ऊपरी हिस्सों तक फैलते हुए गले तक पहुंच जाती है, जहां यह जानलेवा रूप ले सकती है।

गुइलेन-बैरे सिंड्रोम के लक्षण क्या हैं?

पेरिफेरल नर्वस सिस्टम की नर्व्स ब्रेन को शरीर के बाकी हिस्सों से कनेक्ट करती हैं और मसल्स समेत कई ऑर्गन्स के फंक्शन को कंट्रोल करती हैं। इनके डैमेज होने से ब्रेन से आ रहे मैसेज मसल्स तक नहीं पहुंच पाते हैं। इससे मसल्स पर कंट्रोल खत्म होने लगता है। जब पेशेंट उठना चाहते हैं या चलना चाहते हैं तो ऐसा नहीं कर पाते हैं।

आमतौर पर इसका सबसे पहला लक्षण ये है कि इसमें पैर की उंगलियों में झुनझुनी शुरू होती है। इसके बाद यह पूरे पंजे में, फिर पूरे पैर में और इसी क्रम में ऊपर की ओर पूरे शरीर में फैलती जाती है। इसके लक्षण तेजी से बढ़ सकते हैं।

इलाज महंगा, एक इंजेक्शन 20 हजार रुपए का

GBS का इलाज महंगा है। डॉक्टरों के मुताबिक, मरीजों को आमतौर पर इम्युनोग्लोबुलिन (IVIG) इंजेक्शन का कोर्स करना होता है। निजी अस्पताल में इसके एक इंजेक्शन की कीमत 20 हजार रुपए है।

डॉक्टरों ने मुताबिक, GBS की चपेट में आए 80% मरीज अस्पताल से छुट्टी के बाद 6 महीने में बिना किसी सपोर्ट के चलने-फिरने लगते हैं। लेकिन कई मामलों में मरीज को एक साल या उससे ज्यादा समय भी लग जाता है।

सरपंच बोले- हम नियमित सफाई करवाते हैं

मरीज और उनके परिजन से बात करने के बाद भास्कर टीम गांव के सरपंच मुख्तियार मथारिया के पास पहुंची। उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य विभाग की टीमें पूरी तरह अलर्ट हैं। गांव में घर-घर जाकर सर्वे किया जा रहा है।

इंदौर-अहमदाबाद से बीमारी का पता चला

GBS की पड़ताल के लिए नर्व कंडक्शन स्टडी भी जरूरी होती है। मंदसौर जिला अस्पताल या मेडिकल कॉलेज में एक भी न्यूरोलॉजिस्ट नहीं है। ऐसे में बड़े शहरों में ही यह जांच हो पाती है।

विशेषज्ञों का कहना है कि यह बीमारी कॉमन नहीं है बल्कि हजार में से एक लोगों को होती है। मुल्तानपुरा में बीमारी से प्रभावित सभी मरीजों का इलाज इंदौर या अहमदाबाद में ही हुआ। विभाग को भी जानकारी वहीं से मिली।

बता दें कि 6 प्रभावित मरीजों की उम्र 2 से 21 वर्ष के बीच है। इसमें दो से तीन लड़कियां, बाकी लड़‌के हैं। जिस संदिग्ध मरीज की मौत हुई है, वह भी 18 वर्षीय युवती ही है। डॉक्टर युवती को हुई बीमारी की पुष्टि में जुटे हैं।

डोर-टू-डोर सर्वे कर रही टीम

कलेक्टर अदिति गर्ग ने बताया कि मंदसौर जिले में GBS के मरीज सामने आने के बाद प्रशासन ने विस्तृत स्तर पर सर्वे की प्रक्रिया शुरू की है। इसके तहत मेडिकल कॉलेज, जिला चिकित्सालय और स्वास्थ्य विभाग की संयुक्त टीमें गठित कर गांव में डोर-टू-डोर सर्वे कराया जा रहा है।

36 लोग निगरानी में, हेल्थ अपडेट ले रही टीम

स्वास्थ्य विभाग द्वारा मुल्तानपुरा गांव में अब तक लगभग 1,555 घरों का सर्वे पूरा किया जा चुका है। इस दौरान कुल 8,331 लोगों की स्वास्थ्य जांच और रिपोर्टिंग की गई, जिनमें से 56 लोगों को मेडिकल ऑब्जर्वेशन में रखा गया था।

इनमें से 20 लोग पूरी तरह से स्वस्थ होकर रिकवर कर चुके हैं, जबकि शेष 36 लोग अब भी निगरानी में हैं। इन मरीजों में दस्त, सर्दी-खांसी और बुखार जैसे लक्षण देखे गए हैं। मेडिकल टीम रोजाना इनके घर जाकर हेल्थ अपडेट लेती है।

कलेक्टर बोलीं- जरूरी दवाओं की सप्लाई की

कलेक्टर अदिति गर्ग ने कहा कि आवश्यक दवाओं की आपूर्ति जिला चिकित्सालय में कर दी गई है। फिलहाल, संदिग्ध मरीजों की जांच के बावजूद पुष्टि किए गए मामलों में कोई वृद्धि नहीं हुई है।

समय पर इलाज हो तो बचाव संभव

सीएमएचओ डॉ. जीएस चौहान ने बताया कि समय पर लक्षण पहचान कर इलाज शुरू किया जाए तो इस बीमारी से बचाव संभव है। किसी भी लक्षण के दिखने पर तुरंत नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र या जिला अस्पताल से संपर्क करें। मुल्तानपुरा और आसपास के लोग सतर्क रहें। लक्षण दिखने पर तुरंत स्वास्थ्य टीम को सूचित करें।

पुणे में आ चुके 73 सस्पेक्टेड केस

6 महीने पहले महाराष्ट्र के पुणे में मात्र एक हफ्ते में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) के 73 सस्पेक्टेड केस सामने आ चुके हैं। हालत बिगड़ने पर 14 लोगों को वेंटिलेटर में रखा गया था। कई अस्पतालों ने डाइग्नोसिस के लिए ब्लड, स्टूल, लार, यूरिन और सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड (CSF) के सैंपल इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) के साथ भी शेयर किए थे।

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