मां तू चिंता क्यों करती हो..अब तेरा बेटा फौजी है..तेरे सारे दुख दूर कर दूंगा। दोनों बड़े भइया क्या करते हैं तुम ये मत सोचो, मुझे देख तेरा बेटा सेना में है। वो भारत मां की सेवा करेगा, अपनी मां का भी ख्याल रखेगा। राखी बाद घर आऊंगा तो तुझे इतने पैसे दूंगा कि घर का सारा सामान खरीद लेना। ये वो वादा है जो अग्निवीर ललित कुमार ने अपनी मां से किया था। पिछले 7 दिनों से ललित जब भी मां से फोन पर बात करता तो दिलासा देता कि अब दुखभरे दिन ढल चुके हैं। मां तेरी सारी परेशानी मैं जल्दी खत्म कर दूंगा। ललित की मां के लिए ये बातें अब सिर्फ दिलासा बन चुकी हैं..मां रोते हुए यही कहती है बेटा मुझे कुछ नहीं चाहिए बस तू वापस लौट आ मेरे लाल
पहले शहादत की कहानी 5 लाइनों में समझिए
मेरठ में पस्तरा गांव के ललित कुमार डेढ़ साल पहले अग्निवीर बनकर फौज में भर्ती हुए। जाट रेजीमेंट में ललित को पोस्टिंग मिली। 6 महीने पहले वो जम्मूकश्मीर के पुंछ में तैनात हुए। 25 जुलाई को पेट्रोलिंग के दौरान पुंछ में अचानक लैंडमाइन ब्लास्ट हुआ। ललित उसी जगह पेट्रोलिंग कर रहे थे जहां ब्लास्ट हुआ। ब्लास्ट में ललित शहीद हो गए। हालांकि सेना की टीम ने उन्हें इमरजेंसी मेडिकल सर्विसेज दी लेकिन ललित बच नहीं सके। 27 जुलाई को ललित का शव मेरठ सैन्य सम्मान के साथ लाया गया। यहां उनका अंतिम संस्कार हुआ। परिवार में पिता, मां, एक बड़ी बहन और दो बड़े भाई हैं। ललित सबसे छोटे थे। परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है ऐसे में ललित इकलौता सहारा थे।
घर की हर मुश्किल दूर करना था
ललित के घर की हालत इतनी खराब है कि परिवार मजदूरी करके चलता है। महज दो कमरे के छोटे से घर में आद्युनिक सुख, सुविधा का कोई संसाधन नहीं है। परिवार की इसी गरीबी को दूर करने के लिए ललित फौज में गया था। लेकिन सपने पूरे करने से पहले वो दुनिया छोड़ गया। उसका सपना था नया घर बनवाए, बहन की अच्छी जगह शादी कराएगा। घर में हर वो चीज लाएगा जो होना चाहिए। अपने लिए उसका कोई सपना नहीं था वो अपने परिवार के लिए ही सबकुछ करना चाहता था।
24 जुलाई को आखिरी कॉल
ललित की मां सरोज बाला की आंखों के आंसू नहीं थम रहे। घर में पहुंची महिलाओं से सरोज रोते हुए बार-बार यही कहती है मेरे बेटे तू आ जा..तुझे तो बड़े-बड़े काम करने थे तू तो इतनी छोटी उम्र में कैसे चला गया। मां सरोज ने दैनिक भास्कर को बताया 24 जुलाई को ललित से शाम के टाइम फोन पर बात हुई थी। उस दिन उसकी आखिरी बार आवाज सुन पाई हूं। पता नहीं था कि उसके बाद अपने बेटे की आवाज कभी नहीं सुन पाऊंगी। पूरे 30 मिनट में 10 मिनट मां से बात की इसके बाद बहन काजल फिर भाइयों और पिता से बात की थी।
सबसे पहले मां से ही बात करता था
बताया ललित लगभग दो से तीन दिन में हमें फोन करता। फोन करके सबसे पहले मेरे से बात करता। कहता मम्मी से बात कराओ। मेरे से बात करते हुए कहता मम्मी चिंता न कर तेरा बेटा सारे काम करा देगा। दीदी की शादी मैं कराऊंगा, घर में हर चीज लेकर आऊंगा। कोई कमी नहीं रहने दूंगा। उस दिन मैंने कहा बेटा मेरी तबियत सही नहीं लग रही। तो कहने लगा मम्मी अबकी बार आऊंगा तो तेरी सारी परेशानी मिटा दूंगा।
वो कहता पढ़ेगा अफसर बनेगा उससे पहले चला गया
ललित की बहन काजल परिवार में वो अकेली शख्स है जो इस वक्त अपने घरवालों को संभाल रही है। ललित सबसे ज्यादा प्यार बड़ी बहन काजल से करता था। उसकी हर बात का राजदार काजल थी। काजल कहती है ललित मेरा सबसे प्यारा और दुलारा भाई था। वो क्या करना चाहता है क्या करना है सब मुझे बताता। जब भी फोन करता मेरे से सबसे ज्यादा बात करता। बड़े भइया लोग जो बात नहीं मानते वो ललित करता। छोटा होने के कारण मैं उसे डांट देती और मां की तरह प्यार भी करती। मुझसे कहता दीदी अभी तो मैं बहुत पढ़ाई करुंगा। बीए के बाद अफसर बनने के लिए पेपर दूंगा।
उसके मन में बहुत आगे जाने के ख्वाब थे। वो जिंदगी में बहुत कुछ करना चाहता था। घर की जो तमाम परेशानियां हैं उन्हें वो अपने बड़े भाइयों से ज्यादा समझता और दूर करने का हर वक्त सोचता। बेशक वो घर मे सबसे छोटा था लेकिन उसकी सोच सबसे जिम्मेदार और बड़ों की तरह थी। 25 दिन बाद राखी है इस बार तो अपने लाड़ले भाई को राखी भी नहीं बांध पाऊंगी। भगवान ने उसे बहुत जल्दी हमसे छीन लिया। मेरे लिए तो वो बच्चे जैसा था।