मेंटल हेल्थ– बच्चे के जन्म के बाद डिप्रेशन में हूं:बच्चे से भी प्यार नहीं, पति और घरवाले ताना देते हैं, कोई मां ऐसी कैसे हो सकती है

सवाल– मेरी उम्र 33 साल है और मैं एक वर्किंग वुमेन हूं। पिछले पांच महीने से मैटरनिटी लीव पर हूं। पांच महीने पहले मेरी दूसरी बेटी का जन्म हुआ था। उसके जन्म से पहले तो सब ठीक था। लेकिन उसके पैदा होने के बाद से मैं लगातार एक अजीब किस्म की उदासी में डूबती जा रही हूं। बच्चे के साथ मुझे वैसा अटैचमेंट भी नहीं महसूस हो रहा, जैसा होना चाहिए। शरीर में बिल्कुल एनर्जी नहीं महसूस होती। कुछ भी करने का मन नहीं करता। लगता है, बस पड़ी रहूं। घंटों बस छत को ताकती रहती हूं। पहले बच्चे के जन्म के समय ऐसा नहीं था। घरवाले ताना भी देते हैं कि तुम दुनिया की पहली औरत नहीं हो, जो मां बनी है। कोई मां ऐसी कैसे हो सकती है कि उसे अपने बच्चे को ही गोद में लेने का मन न करे। मैंने पोस्ट पार्टम डिप्रेशन के बारे में पढ़ा है। लेकिन मेरे हसबैंड और घरवाले इस बात को लेकर बहुत डिसमिसिव हैं। उन्हें लगता है कि मुझमें ही कुछ कमी है, जो मैं मां बनकर भी खुश नहीं हूं। उन्हें कैसे समझाऊं कि ये डिप्रेशन रियल है। मुझे खुद भी समझ में नहीं आ रहा कि मैं अपनी हेल्प कैसे करूं। घरवालों को कैसे कन्विंस करूं कि मुझे हेल्प की जरूरत है।

एक्सपर्ट– डॉ. द्रोण शर्मा, कंसल्टेंट साइकेट्रिस्ट, आयरलैंड, यूके। यूके, आयरिश और जिब्राल्टर मेडिकल काउंसिल के मेंबर।

आपने जो लक्षण बताए हैं, वो क्लासिक पोस्टपार्टम डिप्रेशन के संकेत हैं। यह एक मेडिकल कंडीशन है, जो अक्सर बच्चे के जन्म के बाद महिलाओं को होती है। ऐसा जरूरी नहीं है कि यह पहले या दूसरे बच्चे के जन्म पर ही होगी। कई बार पहली डिलीवरी बहुत स्मूथ होने के बावजूद दूसरी या तीसरी डिलीवरी के बाद पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षण उभर सकते हैं। इसके महिलाओं के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव दिखाई देते हैं।

पोस्टपार्टम डिप्रेशन कितना कॉमन है?

प्रत्येक 7 में से एक 1 महिला में पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षण विकसित हो सकते हैं। इनमें से तकरीबन 30-40% महिलाएं ऐसी होती हैं, जिन्हें पहले बच्चे के जन्म के बाद यह डिप्रेशन नहीं हुआ था। हर प्रेग्नेंसी अलग होती है। थकान, शरीर में होने वाले हॉर्मोनल बदलाव और बढ़ी हुई जिम्मेदारियों के कारण बच्चे के जन्म के बाद पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षण उभर सकते हैं।

पोस्टपार्टम डिप्रेशन सामान्य डिप्रेशन से कैसे अलग है?

हालांकि पोस्टपार्टम डिप्रेशन और सामान्य डिप्रेशन, दोनों ही मेजर डिप्रेसिव डिसऑर्डर्स हैं। दोनों में ही लगातार अवसाद और उदासी महसूस होना, क्रॉनिक फटीग और लो मोटिवेशन जैसे लक्षण दिखाई देते हैं, लेकिन फिर भी दोनों तरह के डिप्रेशन में कुछ बुनियादी अंतर भी है। इसे नीचे दिए ग्राफिक से समझिए–

पोस्टपार्टम डिप्रेशन टेस्ट

आगे बढ़ने से पहले हम एक टेस्ट करेंगे। यह टेस्ट उन सभी महिलाओं के लिए उपयोगी हो सकता है, जिन्हें लगता है कि वह संभवत: इस कंडीशन से गुजर रही हैं। नीचे ग्राफिक में कुछ सवाल दिए हैं। इन सवालों को तीन अलग–अलग कैटेगरीज में बांटा गया है। इन्हें तीन पैमानों पर रेट करना है। अक्सर, बहुत कम और कभी नहीं। अगर सवाल का आपका जवाब अक्सर है तो उसके आगे टिक का निशान लगाएं। अगर बहुत कम है तो क्वेश्चन मार्क लगाएं और अगर कभी नहीं है तो क्रॉस का निशान लगाएं। सवालों के जवाब देने के बाद अपना स्कोर इंटरप्रिटेशन चेक करें।

फैमिली सपोर्ट: पति और घरवालों को क्या समझना जरूरी है

पोस्टपार्टम डिप्रेशन कोई आलस, कमजोरी या नैतिक पतन नहीं है। यह बायलॉजिकल, हॉर्मोनल इशु है। कोई जानबूझकर ऐसा नहीं करता। इसलिए ऐसे में किसी महिला के दुःख को नजरअंदाज करने से-

  • डिप्रेशन बढ़ सकता है।
  • डिप्रेशन के ठीक होने में देरी हो सकती है।
  • मां और बच्चे के साथ-साथ उन दोनों के बॉन्ड को नुकसान पहुंच सकता है।
  • खुद को या बच्चे को नुकसान पहुंचने का खतरा बढ़ सकता है।

ऐसे में परिवार को क्या करना चाहिए

डिलीवरी के बाद का डिप्रेशन एक मेडिकल कंडीशन है। यह कंडीशन किसी भी मां को प्रभावित कर सकती है। उस मां को भी, जिसने अपने पहले बच्चे की प्यार से देखभाल की हो। अगर नई मां को इस बात के लिए जज किया जाए या उसे दोष दिया जाए कि वो अपने बच्चे को प्यार नहीं कर रही या उसकी ठीक से देखभाल नहीं कर रही है तो इससे समस्या का हल नहीं निकलेगा, बल्कि समस्या और गंभीर हो जाएगी। सच ये है कि मां जानबूझकर ऐसा कुछ नहीं कर रही है। उसे प्यार, मदद और देखभाल की जरूरत है। इसलिए मां को दोष देने की बजाय यह करें-

  • पूछें कि आप किस तरह उसकी मदद कर सकते हैं।
  • यह देखें कि आप कैसे उसे बेहतर महसूस करा सकते हैं।
  • आप बच्चे की परवरिश में मदद करें।
  • मां को सोने और आराम करने का वक्त दें।
  • रोते हुए बच्चे को चुप कराने, उसकी नैपी बदलने जैसे कामों में मदद करें।
  • मां की भावनाओं को बिना जजमेंट, बिना राय के सिर्फ सुनें।
  • मां के आसपास एक सपोर्ट सिस्टम बनाएं।
  • कोशिश करें कि मां खुद को अकेला न महसूस करे।
  • हरेक संभव तरीके से उसके प्रति प्यार, सहानुभूति, करुणा और मदद दिखाएं।
  • किसी भी हाल में उसकी स्थिति के लिए उसे दोष न दें, जिम्मेदार न ठहराएं।
  • कोई ऐसी बात न करें, जिसमें छिपा हुआ तंज या ताना हो।
  • याद रखें, इस वक्त उसे आपके प्यार, मदद और सपोर्ट की सबसे ज्यादा जरूरत है।

पोस्टपार्टम डिप्रेशन के इलाज में मददगार थेरेपीज

नीचे ग्राफिक्स में तीन तरह की थेरेपीज का जिक्र है। कई बार सेल्फ हेल्प और फैमिली सपोर्ट के साथ थेरेपी भी काफी मददगार होती है। अगर स्थिति गंभीर है तो तुरंत थेरेपी लेना एक सही फैसला है।

कब तत्काल हेल्प जरूरी है

अगर इनमें से कोई स्थिति हो तो तुरंत डॉक्टर को फोन करें या तुरंत हॉस्पिटल जाएं:

  • जब खुद को नुकसान पहुंचाने या आत्महत्या करने का ख्याल आए।
  • जब अपने बच्चे को नुकसान पहुंचाने का ख्याल आए।
  • जब हैलुसिनेशन, कनफ्यूजन हो।
  • जब बिल्कुल बिस्तर से उठ न पाएं। लगे कि एकदम कुछ भी करने में अक्षम हैं।

भारत में PPD के लिए हेल्प और सपोर्ट नेटवर्क

इसके अलावा भारत में मांओं के लिए कई सरकारी और गैर सरकारी हेल्प सेंटर्स और सपोर्ट ग्रुप भी हैं, जिनसे जरूरत पड़ने पर मदद के लिए संपर्क किया जा सकता है। जैसे–

  • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP): मैटरनल मेंटल हेल्थ स्क्रीनिंग की सुविधा मिलती है।
  • NIMHANS पेरीनेटल मेंटल हेल्थ सर्विस (बेंगलुरु): नई मांओं के लिए स्पेशल केयर।

अंत में मैं आपसे और आपके परिवार से यही कहना चाहूंगा कि आप अकेली नहीं हैं। ऐसा सिर्फ आपके साथ ही नहीं हो रहा। हजारों महिलाएं इस स्थिति से गुजरती हैं और पर्याप्त हेल्प और सपोर्ट के साथ स्थिति सामान्य भी हो जाती है। आप अपने परिवार ये आर्टिकल पढ़वाएं, उन्हें समझाएं और एजूकेट करें और अपना खूब ख्याल रखें।

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