रूस के सस्ते तेल का आम आदमी को फायदा नहीं:तेल कंपनियों की कमाई 25 गुना तक बढ़ी, सरकार भी 46% टैक्स वसूल रही

बीते 3 साल से भारत को 5 से 30 डॉलर प्रति बैरल के डिस्काउंट पर रूस से क्रूड ऑयल मिल रहा है। इस डिस्काउंट का 65% फायदा रिलायंस और नायरा जैसी प्राइवेट कंपनियों के साथ इंडियन ऑयल और भारत पेट्रोलियम जैसी सरकारी कंपनियों को मिला। वहीं सरकार को 35% फायदा मिला। आम आदमी के हिस्से कुछ नहीं आया।

बीते दिनों अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत पर 50% टैरिफ लगाया है। उन्होंने इसका कारण रूस से तेल खरीद को बताया है। ट्रम्प का कहना है कि भारतीय रिफाइनरी कंपनियां इसे प्रोसेस करके यूरोप और अन्य देशों में बेच देती हैं। भारत को इस बात की कोई परवाह नहीं है कि रूस के हमले से यूक्रेन में कितने लोग मारे जा रहे हैं।

सवाल 1: आम आदमी को सस्ते तेल का फायदा क्यों नहीं मिल रहा?

जवाब: भले ही तेल की कीमतें कागज पर डी-रेगुलेटेड हों, लेकिन रिटेल कीमतें सरकार और तेल कंपनियों के नियंत्रण में हैं। सरकार को टैक्स से स्थिर आय चाहिए और तेल कंपनियां पुराने LPG सब्सिडी के नुकसान का हवाला देकर अपने मार्जिन को जायज ठहराती हैं। नतीजा यह है कि सस्ते तेल का फायदा कंपनियों और सरकार के खजाने में जा रहा है, न कि आम लोगों की जेब में।

पेट्रोल और डीजल की कीमत का एक बड़ा हिस्सा टैक्स में चला जाता है। केंद्र सरकार पेट्रोल पर 13 रुपए प्रति लीटर और डीजल पर 10 रुपए प्रति लीटर की एक्साइज ड्यूटी वसूलती है। इसके अलावा, राज्य सरकारें वैल्यू-एडेड टैक्स (VAT) लगाती हैं। कुल मिलाकर, पेट्रोल की कीमत का 46% और डीजल की कीमत का 42% हिस्सा टैक्स होता है।

केंद्र सरकार हर साल इस टैक्स से 2.7 लाख करोड़ रुपए और राज्य सरकारें 2 लाख करोड़ रुपए कमाती हैं। अप्रैल 2025 में एक्साइज ड्यूटी में 2 रुपए प्रति लीटर की बढ़ोतरी से केंद्र को अतिरिक्त 32,000 करोड़ रुपए की कमाई हुई। सरकार के लिए यह टैक्स एक स्थिर और भरोसेमंद आय का स्रोत है। सस्ते तेल का फायदा ग्राहकों को देने के बजाय सरकार इस पैसे को अपने खजाने में रख रही है ताकि दूसरे खर्चे पूरे कर सके।

सवाल 2: तेल कंपनियों को सस्ते तेल से कितना मुनाफा हुआ?

जवाब: वित्त वर्ष 2020 में भारत अपनी जरूरत का केवल 1.7% तेल रूस से आयात करता था। ये हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2025 में बढ़कर 35.1% हो गई है। रूस से सस्ता तेल खरीदने का फायदा ऑयल कंपनियों के मुनाफे पर भी दिखा है।

  • 2022-23 में इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम का कुल मुनाफा ₹3,400 करोड़ था।
  • 2023-24 में इन तीनों सरकारी कंपनियों का मुनाफा 25 गुना बढ़ गया। तीनों ने मिलकर 86,000 करोड़ रुपए कमाए।
  • 2024-2025 में इन कंपनियों का मुनाफा कम होकर 33,602 करोड़ रुपए हो गया, लेकिन ये 2022-23 के मुनाफे से ज्यादा है।

वहीं प्राइवेट रिफाइनरियों की बात की जाए तो भारत में मुख्य तौर पर दो बड़ी प्राइवेट कंपनियों की रिफाइनरियां है। रिलायंस इंडस्ट्रीज और नायरा एनर्जी, दोनों सबसे ज्यादा क्रूड ऑयल प्रोसेस करती हैं। रिलायंस ने प्रति बैरल 12.5 डॉलर और नायरा ने 15.2 डॉलर का रिफाइनिंग मार्जिन हासिल किया। यानी, सस्ते में खरीदा, प्रोसेस किया और महंगे में बेचकर हर बैरल पर ज्यादा मुनाफा कमाया।

रूसी कच्चे तेल में रिलायंस-नायरा की 45% हिस्सेदारी: डेटा और एनालिटिक्स कंपनी केपलर के अनुसार, 2025 की पहली छमाही (24 जून तक) में भारत ने रूस से 23.1 करोड़ बैरल क्रूड आयात किया। रिलायंस और नायरा की इसमें 45% हिस्सेदारी थी। 2022 में रिलायंस की हिस्सेदारी 8% और नायरा की 7% थी।

रिलायंस ने कुल तेल का लगभग 30% रूस से खरीदा: रिलायंस के एक प्रवक्ता ने कहा कि रिलायंस द्वारा खरीदे जाने वाले कच्चे तेल का लगभग 30% रूस से आता है। लेकिन केवल रूसी कच्चे तेल पर छूट को ही मुनाफे का कारण बताना गलत है। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते मिली छूट से पहले और बाद भी ऐसा ही रहा है। यूरोप को प्रोडक्ट बेचकर जो कमाई होती है, वह हमारे कुल उत्पादन का एक छोटा सा हिस्सा है।

रूसी तेल को प्रोसेस करके अमेरिका-यूरोप में बेचा: रूसी क्रूड ऑयल को आयात करके और इसे पेट्रोल, डीजल और ATF जैसे हाई वैल्यू प्रोडक्ट में रिफाइन किया गया। इसके बाद इन्हें यूरोप, अमेरिका, यूएई, सिंगापुर जैसे देशों में निर्यात किया। 2025 की पहली छमाही में दोनों कंपनियों ने 6 करोड़ टन रिफाइंड प्रोडक्ट्स निर्यात किए, जिनमें से 1.5 करोड़ टन यूरोपीय यूनियन को बेचे गए। इसकी कीमत 15 अरब डॉलर थी।

सवाल 3: रूस से सस्ता तेल खरीदने की शुरुआत कैसे हुई?

जवाब: फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद यूरोप ने रूसी तेल पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके बाद रूस ने अपने तेल को एशिया की ओर मोड़ा। भारत ने 2021 में रूसी तेल का सिर्फ 0.2% आयात किया था, लेकिन 2023 तक यह 2.15 मिलियन बैरल प्रति दिन तक पहुंच गया। 2025 में रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बना, जो औसतन 1.67 मिलियन बैरल प्रति दिन की आपूर्ति कर रहा है। यह भारत के कुल जरूरत का करीब 37% है।

सवाल 4: भारत रूस से तेल खरीदना क्यों नहीं बंद करता?

जवाब: भारत को रूस से तेल खरीदने के कई डायरेक्ट फायदे हैं…

  • अन्य देशों से सस्ता तेल: रूस अभी भी भारत को दूसरे देशों की तुलना में सस्ता तेल दे रहा है। 2023-2024 में रूस से सस्ते तेल की वजह से भारत ने 1 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की बचत की। हालांकि, जो डिस्काउंट पहले 30 डॉलर प्रति बैरल तक था वह अब 3-6 डॉलर प्रति बैरल तक रह गया है।
  • लॉन्ग-टर्म कॉन्ट्रैक्ट्स: भारत की प्राइवेट कंपनियों के रूस के साथ लॉन्ग टर्म कॉन्ट्रैक्ट्स हैं। उदाहरण के लिए, दिसंबर 2024 में रिलायंस ने रूस के साथ 10 साल के लिए हर रोज 5 लाख बैरल तेल खरीदी का कॉन्ट्रैक्ट किया। इस तरह के समझौतों को रातोंरात तोड़ना संभव नहीं है।
  • वैश्विक कीमतों पर प्रभाव: भारत का रूसी तेल आयात वैश्विक तेल कीमतों को स्थिर रखने में मदद करता है। यदि भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर देता है, तो ग्लोबल सप्लाई कम हो सकती है, जिससे कीमतें बढ़ सकती हैं। यूक्रेन के साथ युद्ध के बाद मार्च 2022 में तेल की कीमतें 137 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थीं।

भारत रूस से सस्ता कच्चा तेल आयात करता है, जिसे वह रिफाइन करके पेट्रोल, डीजल और जेट ईंधन जैसे उत्पादों में बदलता है। इन उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों, खासकर यूरोप में निर्यात किया जाता है, जो रूस से सीधे तेल आयात पर प्रतिबंध लगाए हुए है। भारत का कहना है कि उसका यह व्यापार पूरी तरह पारदर्शी है और इसमें कुछ भी गैरकानूनी नहीं है।

रूस से तेल आयात पर कोई प्रतिबंध नहीं है, केवल एक प्राइस कैप लागू है, जो 2022 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रशासन ने शुरू किया था। इस मूल्य सीमा का उद्देश्य रूस की तेल आय को सीमित करना था, लेकिन वैश्विक ऊर्जा बाजार को स्थिर रखने के लिए रूसी तेल को पूरी तरह प्रतिबंधित नहीं किया गया। भारत ने तर्क दिया कि रूस से तेल खरीदने से वैश्विक तेल की कीमतें नियंत्रण में रहती हैं।

अगर रूस जैसे बड़े तेल उत्पादक का तेल बाजार से हट जाए, तो अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं। भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने 2022 में वाशिंगटन डीसी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यूरोप के दोहरे रवैये की आलोचना की थी। उन्होंने कहा था, “हम जो तेल खरीदते हैं, वह यूरोप द्वारा एक दोपहर में खरीदे गए तेल से कम है।

सवाल 5: भारत के पास रूस के अलावा किन देशों से तेल खरीदने के विकल्प हैं?

जवाब: भारत अपनी तेल जरूरतों का 80% से ज्यादा इंपोर्ट करता है। ज्यादातर तेल रूस के अलावा इराक, सऊदी अरब और अमेरिका जैसे देशों से खरीदता है। अगर रूस से तेल इंपोर्ट बंद करना है तो उसे इन देशों से अपना इंपोर्ट बढ़ाना होगा…

  • इराक: रूस के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा तेल सप्लायर है, जो हमारे इंपोर्ट का लगभग 21% प्रोवाइड करता है।
  • सऊदी अरब: तीसरा बड़ा सप्लायर, जो हमारी जरूरतों का 15% तेल (करीब 7 लाख बैरल प्रतिदिन) सप्लाई करता है।
  • अमेरिका: जनवरी-जून 2025 में भारत ने अमेरिका से रोजाना 2.71 लाख बैरल तेल इंपोर्ट किया, जो पिछले से दोगुना है। जुलाई 2025 में अमेरिका की हिस्सेदारी भारत के तेल आयात में 7% तक पहुंच गई।
  • साउथ अफ्रिकन देश: नाइजीरिया और दूसरे साउथ अफ्रिकन देश भी भारत को तेल सप्लाई करते हैं और सरकारी रिफाइनरीज इन देशों की ओर रुख कर रही हैं।
  • अन्य देश: अबू धाबी (UAE) से मुरबान क्रूड भारत के लिए एक बड़ा ऑप्शन है। इसके अलावा, भारत ने गयाना ब्राजील, और अन्य लैटिन अमेरिकी देशों से भी तेल आयात शुरू किया है। हालांकि, इनसे तेल खरीदना आमतौर पर रूसी तेल की तुलना में महंगा है।

सवाल 6: रूसी टैरिफ के कारण ट्रम्प के लगाए 50% टैरिफ पर भारत ने क्या कहा?

जवाब: भारत ने इस अतिरिक्त टैरिफ को “अनुचित, अनपेक्षित और अव्यवहारिक” करार दिया है। भारत के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) के दोहरे मापदंडों को उजागर किया। भारत ने बताया कि अमेरिका खुद रूस से यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड, पैलेडियम, उर्वरक और रसायन जैसे उत्पाद आयात करता है।

वहीं, यूरोपीय संघ का रूस के साथ 2024 में 67.5 अरब यूरो का व्यापार हुआ, जिसमें 16.5 मिलियन टन तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) का आयात शामिल है। यह 2022 के 15.2 मिलियन टन के पिछले रिकॉर्ड से भी ज्यादा है। इसके अलावा, यूरोप रूस से उर्वरक, खनन उत्पाद, रसायन, लोहा-इस्पात, मशीनरी और परिवहन उपकरण भी आयात करता है।

भारत का कहना है कि पश्चिमी देश खुद रूस के साथ व्यापार कर रहे हैं। भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि उसका रूस से तेल आयात राष्ट्रीय जरूरतों को पूरा करने के लिए है, न कि मुनाफे के लिए। रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद फरवरी 2022 में भारत ने रूसी तेल आयात शुरू किया, क्योंकि यूरोप ने भारत के पारंपरिक तेल आपूर्तिकर्ताओं (खाड़ी देशों) से तेल खरीदना शुरू कर दिया था। भारत ने सस्ते रूसी तेल का उपयोग अपनी 1.4 अरब आबादी के लिए किफायती ऊर्जा सुनिश्चित करने के लिए किया।

अकेला भारत ऐसा देश नहीं है जो रूस से कच्चा तेल खरीदता है। 2024 में चीन ने 62.6 बिलियन डॉलर का तेल रूस से आयात किया था। वहीं भारत का इस दौरान रूस से तेल आयात 52.7 बिलियन डॉलर ही था। इसके बावजूद डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन पर अतिरिक्त टैरिफ न लगाते हुए ट्रेड डील के लिए 90 दिनों का समय दिया है।

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