अजमेर में 16 वर्षीय छात्रा से रेप के मामले में आरोपियों को बचाने के लिए जनाना अस्पताल में पीड़िता के भ्रूण को बदल दिया गया। इस कारण पीड़िता और उसके आबॉर्शन से निकाले कर भ्रूण का डीएनए टेस्ट में मिलान नहीं हुआ।
पुलिस ने भी इस मामले की जांच में कई खामियां छोड़ी हैं। पॉक्सो कोर्ट संख्या 1 के विशिष्ट लोक अभियोजक प्रशांत यादव ने गृहमंत्री, डीजीपी, शासन सचिव, आईजी, एसपी को पत्र भेजकर इस गंभीर मामले में सबूत मिटाने की साजिश की जानकारी दी है।
यादव ने भ्रूण बदले जाने के लिए अस्पताल प्रबंधन और ड्यूटी पर रहे डॉक्टर और अस्पताल कर्मचारियों को जिम्मेदार ठहराते हुए इनके इनके खिलाफ साक्ष्य नष्ट कर आरोपियों को लाभ पहुंचाने के आरोप में धारा भारतीय दंड संहिता की धारा 201 एवं 16/17 पॉक्सो एक्ट में कार्रवाई की सिफारिश की है।
डॉक्टर और कर्मचारियों को बताया जिम्मेदार
16 वर्षीय किशोरी को जून 2024 में केकड़ी अस्पताल से अजमेर जनाना अस्पताल में रेफर किया गया था। किशोरी गर्भवती थी। अस्पताल में केकड़ी पुलिस ने किशोरी के बयान के आधार पर 15 जून 2024 को FIR दर्ज की थी। पुलिस को शिकायत में पीड़िता ने बताया था कि उसके गांव का निवासी और उसके स्कूल के सहपाठी ने 26 जनवरी को उससे रेप किया। वह सुबह 10 बजे आरोपी के घर गई थी, तब उसने अपने कमरे में ले जाकर जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाए। जून में उसके पेट में जोर से दर्द हुआ तो परिजन केकड़ी के सरकारी अस्पताल लेकर गए, जहां से अजमेर जनाना अस्पताल रेफर कर दिया गया। यहां डॉक्टर ने गर्भवती बताकर अबॉर्शन कराया।
आरोपियों, पीड़िता व भ्रूण के सैम्पल का नहीं हुआ मिलान
पीड़िता ने यह एफआईआर अपने पिता की मौजूदगी में पुलिस को दी थी। केकड़ी सिटी थाना पुलिस ने पॉक्सो एक्ट और 376 की धारा के तहत मुकदमा दर्ज कर जांच सब इंस्पेक्टर धोलाराम को सौंपी थी। पुलिस ने पीड़िता का मेडिकल परीक्षण तथा ऑपरेशन से उसके गर्भ से निकाले गए भ्रूण के सैंपल लिए थे। आरोपियों की मेडिकल जांच तो एफएसएल जांच में दोनों आरोपियों, पीड़िता और भ्रूण के सैंपल का मिलान नहीं हुआ। इतना ही नहीं जांच में पीड़िता और उसके भ्रूण के सैम्पल भी अलग-अलग माने गए हैं।
‘आरोपियों को बचाने के लिए किया हेर-फेर’
इस मामले में पॉक्सो कोर्ट के विशिष्ट लोक अभियोजक प्रशांत यादव का मानना है कि आरोपियों को बचाने के लिए भ्रूण या सैम्पल में हेर फेर किया है। यादव ने राज्य सरकार को जानकारी दी है कि प्रकरण में पुलिस कर्मियों, डॉक्टर व नर्सिंग स्टाफ की मिलीभगत के चलते नाबालिग पीड़िता द्वारा जन्मा मृत भ्रूण राजकीय महिला चिकित्सालय, अजमेर में बदल दिया गया। इस कारण विधि विज्ञान प्रयोगशाला की डीएनए रिपोर्ट पीड़िता द्वारा भ्रूण का मिलान पीड़िता से नहीं पाया गया। सबूत नष्ट करने के गंभीर मामले में जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए। पुलिस और अस्पताल प्रशासन ने सिर्फ संबंधित डॉक्टर व कर्मचारियों के बयान दर्ज कर कार्रवाई पूरी कर ली है।