यूपी में बुलंदशहर की डीएम श्रुति और सपा नेता शिवपाल यादव का मामला नया नहीं है। पहले भी ऐसे मामले आते रहे हैं, जिनमें माननीयों ने अफसरों के न सुनने और अभद्रता की शिकायत की है। ऐसे ही एक मामले में गाजीपुर की डीएम की कुर्सी जा चुकी है।
हालांकि हर मामले में कार्रवाई कराना आसान नहीं है। माननीयों को कार्रवाई कराने में पसीने आ जाते हैं। ऐसे मामलों में कई बार पांच साल बाद भी कार्रवाई नहीं होती है और अफसर प्रमोशन पाकर और ताकतवर हो जाता है। कानपुर के एक मामले में तो 19 साल बाद निर्णय हुआ, जब 6 पुलिसकर्मियों को विधानसभा की कार्रवाई के दौरान दंडित किया गया।
पढ़िए माननीयों के विशेषाधिकार, कार्रवाई कैसे लटक जाती है, शिवपाल यादव-डीएम श्रुति मामले में क्या हुआ?
सबसे पहले शिवपाल और श्रुति सिंह का मामला?
ये विवाद एक छोटी-सी घटना से शुरू हुआ, जो सूबे की सियासत में चर्चा का विषय बन गया। किसी मामले में शिवपाल ने बुलंदशहर की डीएम श्रुति को फोन किया। फोन नहीं उठा। किसी तरह फोन उठा, तो पीआरओ ने बताया कि मैडम मीटिंग में हैं। शिवपाल ने 20 से अधिक बार उन्हें फोन किया, लेकिन बात नहीं हो सकी। शिवपाल ने इसे अपने विशेषाधिकार हनन का मामला बताते हुए विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना से शिकायत की और मामले को विशेषाधिकार समिति को भेजने की मांग की।
शिकायत मिलते ही सतीश महाना ने तत्काल श्रुति सिंह को कारण बताओ नोटिस जारी किया। अगर माफी न मांगी जाती, तो उन्हें विधानसभा में पेश होना पड़ सकता था। नोटिस मिलते ही श्रुति सिंह ने शिवपाल यादव को फोन किया। उन्होंने गलती स्वीकार करते हुए माफी मांगी। सफाई दी कि वे मीटिंग में व्यस्त थीं और पीआरओ ने कॉलर की पहचान (शिवपाल का नाम) नहीं बताई। शिवपाल ने माफी स्वीकार कर ली और मामला शांतिपूर्ण तरीके से सुलझ गया।
कुछ ऐसा ही मामला जौनपुर की मछलीशहर सीट से सपा विधायक डॉ. रागिनी और एक थाना प्रभारी से जुड़ा है। आज तक मामला जस का तस है। विधायक ने एक मामले में प्रयागराज के झूंसी थाने के प्रभारी निरीक्षक उपेंद्र कुमार सिंह को फोन किया, तो उन्होंने उनके साथ सही दुर्व्यवहार नहीं किया।
इसकी शिकायत उन्होंने 10 जुलाई 2024 को विधानसभा अध्यक्ष से की। मामला अनुश्रवण समिति को सौंपा गया। मामले की जानकारी प्रभारी निरीक्षक को हुई तो उन्होंने अनजाने में हुई भूल बताकर विधायक डॉ. रागिनी से माफी मांग ली। हालांकि रागिनी का कहना है कि उनसे कोई माफी नहीं मांगी गई है, वह अपनी शिकायत पर कायम हैं।
अब इन 3 केस से समझिए, क्यों शिवपाल यादव ने माफी स्वीकार कर ली
केस 1- अभद्रता करने वाला एसएचओ, डिप्टी एसपी बन गया
बाराबंकी की जैदपुर से सपा के गौरव कुमार रावत ने लॉकडाउन में 15 मई 2020 को किसी मामले में एसएचओ सतरिख को फोन किया। एसएचओ शमशेर बहादुर सिंह ने विधायक के साथ दुर्व्यवहार किया।
गौरव ने इस मामले को विशेषाधिकार हनन में उठाया और कार्रवाई की मांग की। कार्रवाई के नाम पर शमशेर बहादुर सिंह के खिलाफ केवल चेतावनी जारी की गई और जिले से ट्रांसफर कर दिया गया। जबकि समिति के अध्यक्ष का कहना था कि उक्त पुलिस अधिकारी को नेगेटिव मार्किंग की जाए।
इसके बाद फाइल जिले से पुलिस मुख्यालय तक झूलती रही और एसएचओ शमशेर बहादुर को 29 अगस्त 2023 को प्रमोशन देकर पुलिस उपाधीक्षक बना दिया। इस मामले में 2 सितंबर को हुई अनुश्रवण समिति की बैठक में प्रमुख सचिव गृह संजय प्रसाद की ओर से लिखित में बताया गया कि इस मामले में शमशेर बहादुर सिंह जो मौजूदा समय में डिप्टी एसपी खीरी के पद पर तैनात हैं, के खिलाफ आगे की कार्रवाई एडीजी प्रशासन को करनी है।
केस 2–जांच हुई, 5 साल बाद भी एसएचओ पर कार्रवाई नहीं
शामली की कैराना सीट से सपा विधायक नाहिद हसन ने 8 दिसंबर 2020 को विधानसभा अध्यक्ष से शिकायत की। उन्होंने कहा कि कैराना के तत्कालीन प्रभारी निरीक्षक प्रेमवीर राणा ने 29 अक्तूबर 2020 को उनपर अशोभनीय टिप्पणी की। विधायक ने इस मामले को विशेषाधिकार समिति के सामने पेश करने और दोषी पुलिसकर्मी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी।
इस मामले में पांच साल से जांच ही चल रही है। इसकी जांच पहले शामली जिले से हुई, जिसमें विधायक का आरोप है कि उनका पक्ष ही नहीं रखा गया। ऐसे में उन्होंने दोबारा किसी दूसरे जनपद से जांच कराए जाने का अनुरोध किया। डीआईजी सहारनपुर ने अपराध शाखा की एसपी इंदु सिद्धार्थ से जांच कराई और जांच रिपोर्ट 2 सितंबर को समिति के सामने पेश की जा चुकी है। हालांकि इस मामले में भी कोई कार्रवाई अभी तक नहीं हुई है।
केस 3- भाजपा विधायक कार्रवाई तक नहीं करा पाए
भाजपा के शाहजहांपुर की कटरा विधानसभा से विधायक वीर विक्रम सिंह उर्फ प्रिंस ने विधानसभा अध्यक्ष से शिकायत की कि 24 मई 2022 को लखनऊ के महानगर थाना क्षेत्र के मिडलैंड चौकी प्रभारी पुष्पराज ने उनके साथ अभद्रता की। उनके द्वारा फोन करने पर कहा गया कि मैं किसी का नौकर नहीं हूं कि कोई फोन करे और मैं फोन रिसीव करूं।
जिले के बाहर के विधायकों से मुझसे कोई मतलब नहीं है। इस मामले की शिकायत के बाद मामला अनुश्रवण समिति को भेज दिया गया। 29 अप्रैल को अनुश्रवण समिति की बैठक में बताया गया कि संबंधित पुलिस कर्मी को चेतावनी देते हुए 28 अप्रैल 2025 को प्रारंभिक जांच के आदेश दिए गए हैं।
इस पर अनुश्रवण समिति के अध्यक्ष ने नाराजगी जाहिर की और दोबारा रिपोर्ट मांगी। दोबारा जांच हुई तो चौकी इंचार्ज पर कार्रवाई के बजाए उसे क्लीन चिट दे दी गई। एसीपी कैंट ने अपनी जांच में बताया कि महानगर क्षेत्र में जमीन पर कब्जे के एक मामले में विधायक ने फोन किया था। फोन पर बातचीत के दौरान चौकी इंचार्ज पुष्पराज ने प्रोटोकाल का पालन करते हुए बात की और विधायक के साथ किसी तरह का दुर्व्यवहार नहीं किया गया। इसका कोई सबूत नहीं मिला।
ये मामले बताने के लिए काफी हैं कि माननीयों को अपने विशेषाधिकार के मामलों में दुर्व्यवहार करने वाले पुलिस कर्मियों या प्रशासनिक अधिकारियों पर कार्रवाई कराने में पसीने आ जाते हैं। शायद यही वजह रही कि जब समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और जसवंतनगर से विधायक शिवपाल सिंह यादव और 2011 बैच की IAS अधिकारी व मौजूदा समय में बुलंदशहर की जिलाधिकारी श्रुति सिंह के बीच फोन न रिसीव करने को लेकर विवाद हुआ, तो श्रुति ने फोन कर माफी मांग ली और शिवपाल यादव ने उन्हें माफ भी कर दिया।
विधायक से बदतमीजी पर हटा दी गई थीं डीएम आर्यका अखौरी
शिवपाल सिंह जैसे ही एक मामले में हाल ही में कार्रवाई भी हो चुकी है। मामला गाजीपुर का था। यहां से सैदपुर से विधायक अंकित भारती ने किसी काम को लेकर डीएम आर्यका अखौरी को फोन किया। पहले तो उन्होंने फोन नहीं उठाया और जब फोन उठाया तो फोन पर ही अभद्र व्यवहार करने लगीं।
इस पर विधायक अंकित भारती ने विशेषाधिकार हनन के तहत शिकायत की। शिकायत का संज्ञान लेते हुए विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने उन्हें विशेषाधिकार हनन समिति के सामने तलब किया। अखौरी ने माफी मांगी, लेकिन अध्यक्ष ने शासन से आर्यका अखौरी का तबादला किसी दूसरी जगह करने काे कहा। जिसके बाद 28 अप्रैल 2025 को आर्यका अखौरी को गाजीपुर से हटाकर स्वास्थ्य महकमे में तैनाती दे दी गई थी।
जब 6 पुलिसकर्मियों को विधानसभा ने सुना दी थी एक दिन की कैद की सजा
विधानसभा के पास अधिकार है कि वह न्यायालय की तरह व्यवहार कर सकती है। इसके लिए बाकायदा विधानसभा के अंदर कटघरा भी बनाया जाता है, जहां दोषी अधिकारी को खड़ा कर सवाल जवाब किया जाता है। इसी तरह का एक मामला 2023 में भी सामने आया था, जब बीजेपी विधायक सलिल विश्नोई के विशेषाधिकार हनन मामले में सदन को कोर्ट में तब्दील किया गया था।
इस दौरान मामले के आरोपी 6 पुलिसकर्मियों को कटघरा बनाकर सदन के सामने पेश किया गया। संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना ने आरोपियों के कारावास का प्रस्ताव सदन के सामने रखा, जिस पर स्पीकर ने वोटिंग कराई।
ध्वनिमत से प्रस्ताव को पारित करा दिया। मंत्री के प्रस्ताव से स्पीकर ने सहमति जताई और आरोपियों को एक दिन के कारावास की सजा सुनाई। सभी आरोपियों ने बारी-बारी से सदन के सामने माफी भी मांगी थी। स्पीकर ने कहा कि कमेटी ने इनके निलंबन की कार्रवाई के लिए कहा था लेकिन पुलिसकर्मियों के आचरण आदि को देखते हुए उन्हें एक दिन के कारावास की सजा दी गई।
19 साल पुराना था मामला
जिस मामले में विधानसभा अदालत में तब्दील हुई वह मामला 19 साल पुराना था। 15 सितंबर, 2004 को कानपुर में उस वक्त के भाजपा विधायक सलिल विश्नोई अपनी पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ बिजली कटौती की समस्या को लेकर डीएम को ज्ञापन देने जा रहे थे। रास्ते में प्रयाग नारायण शिवालय के गेट पर उन्हें सीओ बाबूपुरवा अब्दुल समद के नेतृत्व में पुलिसकर्मियों ने रोक लिया था।
नोकझोंक के बाद पुलिसकर्मियों ने भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ उनकी पिटाई कर दी थी और गाली-गलौज की गई थी। विश्नोई ने इसे विधायक के विशेषाधिकार की अवहेलना करार देते हुए अक्टूबर 2004 में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष से शिकायत की थी। मामला विधानसभा की विशेषाधिकार समिति के सुपुर्द कर दिया गया था।
हर साल आते हैं 15 से 18 मामले
विशेषाधिकार समिति के सदस्य समरपाल सिंह बताते हैं कि हर साल विशेषाधिकार हनन के 15 से 18 मामले आते हैं। ज्यादातर मामलों में अधिकारी माफी मांग लेते हैं तो उन्हें माफ भी कर दिया जाता है। जो माफी नहीं मांगते उन्हें पहले समिति के सामने पेश होने को कहा जाता है, फिर मामले की गंभीरता के हिसाब से निर्णय लिया जाता है। समरपाल बताते हैं कि समिति के पास किसी भी अधिकारी को तलब करने का अधिकार होता है।
उन्होंने खुद के एक मामले का जिक्र करते हुए कहा कि नगर आयुक्त मुरादाबाद विधायकों के फोन नहीं उठाते थे, मेरा भी फोन नहीं उठाया तो मैंने मामले को विशेषाधिकार हनन के तहत विधानसभा में उठाया। प्रमुख सचिव विधानसभा प्रदीप दुबे ने उन्हें नोटिस भेजी। नोटिस भेजते ही नगर आयुक्त ने उनसे संपर्क किया और माफी मांगी। उन्होंने उसे माफ भी कर दिया।
विशेषाधिकार हनन के लंबित मामलों में 75 फीसदी शिकायतें सत्ता पक्ष के विधायकों की
विशेषाधिकार हनन के जो मामले लंबित रह जाते हैं, उन्हें अनुश्रवण समिति में भेज दिया जाता है। जहां साल दर साल कार्रवाई चलती रहती है। मौजूदा समय में 12 मामले अनुश्रवण समिति में विशेषाधिकार हनन संबंधी मामले लंबित हैं। इसमें 75 फीसदी शिकायत सत्ता रुढ़ दल भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों की है। बाकी शिकायतें समाजवादी पार्टी के सदस्यों की है। 2 सितंबर को हुई बैठक में कुल 12 मामले अनुश्रवण समिति के सामने रखे गए थे, उसमें से 9 मामले भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों के थे जबकि सपा के केवल तीन सदस्यों के तीन मामले थे।
क्या होता है विशेषाधिकार
विशेषाधिकार वे विशेष अधिकार और छूट है जो विधायकों को उनकी विधायी जिम्मेदारियों को निभाने में मदद करने के लिए दिए जाते हैं। ये विशेषाधिकार व्यक्तिगत विधायकों और विधायिका की स्वायत्तता और गरिमा को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं। इनका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विधायक स्वतंत्र रूप से बोल सकें, अपने विचार रख सकें और अपने कर्तव्यों का पालन बिना किसी बाहरी दबाव या कानूनी कार्रवाई के डर के कर सकें।
पूर्व मंत्री और मौजूदा विधायक व विशेषाधिकार समिति के सदस्य सिद्धार्थ नाथ सिंह बताते हैं कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 194 के तहत राज्य के विधानमंडल के सदस्यों को कुछ विशेषाधिकार दिए गए हैं। लोक सेवकों के लिए आम लोगों से भी सही तरह से पेश आने की उम्मीद की जाती है, लेकिन जब यही लोग विधानसभा सभा सदस्यों और संसद के सदस्यों के साथ करते हैं तो उन्हें विशेषाधिकार हनन के दायरे में लाकर जवाबदेह बनाया जाता है।