हरियाणा की बिजली वितरण कंपनियों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। इसकी वजह बिजली चोरी और लाइन लॉस में आया उछाल है। इससे बिजली वितरण कंपनियों पर वित्तीय संकट गहरा सकता है। प्रदेश में दो बिजली वितरण कंपनियां हैं, पहली उत्तर हरियाणा बिजली वितरण निगम (UHBVN) और दूसरी दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम (DHBVN) हैं। प्रदेश के ऊर्जा मंत्री अनिल विज ने इसको देखते हुए अधिकारियों की एक बैठक बुला ली है। इस बैठक में अभी तक अधिकारियों के द्वारा की गई रिकवरी के संबंध में रिपोर्ट तलब की जाएगी।
हालांकि विज कह चुके हैं कि बिजली डिफाल्टरों का यह तथ्य जब उनके सामने आया तो उसी समय ऊर्जा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक ली गई थी। जिसमें प्रत्येक जिले की रिकवरी के बारे में जानकारी के तहत संबंधित अधिकारियों को लक्ष्य दिया गया था। अब अमुक अधिकारियों की रैंकिंग भी रिकवरी के अनुसार तय की जाएगी।
एटीएंडसी लॉस में सुधार, पर खतरा बरकरार
वित्तीय वर्ष 2012-13 में औसत एटीएंडसी लॉस 29.31 % था, जो 2015-16 में 30.02 % तक पहुंच गया। सुधार अभियानों, स्मार्ट मीटरिंग और बिलिंग सिस्टम में बदलावों ने स्थिति को कुछ हद तक सुधारा गया। 2024-25 तक यह घटकर 9.97% तक आ गया, लेकिन चालू वित्तीय वर्ष 2025-26 (जून तक) में यह बढ़कर 11.06 फीसदी दर्ज हुआ है।
इस समय यूएचबीवीएन का नुकसान 8.75 फीसदी और डीएचबीवीएन का 12.67 फीसदी है। सुधार के बावजूद यह स्तर राष्ट्रीय औसत से अधिक है और वित्तीय दबाव बनाए हुए है।
48688 बिजली चोरी के मामले सामने आए
चोरी पकड़ने में सख्ती, वसूली में ढिलाई बिजली चोरी रोकने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाए गए। वित्त वर्ष 2024-25 में 1.78 लाख से अधिक उपभोक्ताओं के परिसरों की जांच की गई। जिनमें 48688 चोरी के मामले सामने आए। इन पर 18638.99 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया। मगर वसूली केवल 9365.21 लाख रुपये की हो सकी।
यानी चोरी पकड़ने के बावजूद वसूली दर महज 50.25 फीसदी ही रही। वित्त वर्ष 2025-26 (जून तक) में 52630 परिसरों की जांच में 12398 मामले पकड़े गए। इन पर 4925.21 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया, लेकिन वसूली सिर्फ 57 फीसदी तक ही सीमित रही।
बिजली चोरी में 32059 हो चुकी FIR
एफआईआर दर्ज करने में तेजी: बिजली चोरी को लेकर एफआईआर दर्ज करने की गति भी बढ़ाई गई है। 2013 में 16496 केस दर्ज किए गए थे, जो 2016 में 22633 और 2017 में रिकॉर्ड 95407 तक पहुंच गए। हाल के वर्षों में भी यह सख्ती जारी रही। 2020 में 62605, 2021 में 65328 और 2022 में 82087 एफआईआर दर्ज की गई। वर्ष 2025 में (जुलाई तक) 32059 मामले दर्ज हो चुके हैं।यह साफ है कि कंपनियां अब चोरी को गंभीर अपराध मानते हुए कानूनी कार्रवाई को प्राथमिकता दे रही हैं।
जुर्माना नहीं वसूल पा रहे अधिकारी
पिछले वर्षों के रिकॉर्ड इस समस्या की गंभीरता को अधिक स्पष्ट करते हैं। 2007-08 में 2.62 लाख से अधिक परिसरों की जांच में 45589 चोरी के मामले पकड़े गए। 5107.53 लाख रुपए का जुर्माना लगा, लेकिन वसूली मात्र 45.90 फीसदी ही हो सकी। 2015-16 में 2.11 लाख से अधिक परिसरों की जांच में 45968 मामले सामने आए। 16862 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया, पर वसूली दर केबल 51.63 फीसदी रही। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि चोरी पकड़ना आसान है, लेकिन वसूली सुनिश्चित करना अब भी बड़ी चुनौती है।