ऋण वसूली न्यायाधिकरण (DRT) में 100 करोड़ रुपये या इससे ज्यादा के लंबित मामलों को प्राथमिकता पर निपटाने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम निर्देश दिए हैं।
एडलवाइस एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस रेखा पल्ली की पीठ ने कहा कि जब DRT बनाने के पीछे का पूरा उद्देश्य ही सार्वजनिक धन की वसूली में तेजी लाना था, तो बैंकों और वित्तीय संस्थानों के बड़े दावों के निपटारे में किसी भी तरह से देरी न सिर्फ नुकसानदायक है, बल्कि अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ता है। पीठ ने इस कमेंट के साथ केंद्र सरकार को 100 करोड़ रुपये या उससे बड़े मामलों के निपटारे के लिए 6 हफ्ते के अंदर जरूरी नियम बनाने को कहा।
पीठ ने कहा कि अगर पैसा लंबी कानूनी प्रक्रिया में फंसा रहा तो बैंक और वित्तीय संस्थान कर्जदारों को पैसा कहां से देंगे? बैंक और वित्तीय संस्थान छोटे, मध्यम और बड़े व्यवसायों को विकसित करने में सक्षम बनाने के लिए अग्रिम कर्ज देते हैं, ऐसे में इनके पैसे को रोकने से पूरी अर्थव्यवस्था के विकास पर ही रोक लग जाएगी। DRT को इन पहलुओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए था।
एडलवाइस एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी ने याचिका में मांग की कि उनका मूल आवेदन DRT के समक्ष लंबित है जिसका तय समय में निपटारा किया जाए, क्योंकि 466 करोड़ रुपये की रकम दाव पर लगी है। याचिकाकर्ता कंपनी की तरफ से पेश हुए वकील आरपी अग्रवाल और मनीषा अग्रवाल ने दलील दी कि धारा 19(3) के तहत दावे के समर्थन में केवल एक मूल आवेदन की जरूरत होती है, ताकि यह विश्वास हो सके कि सभी दस्तावेजों की सही प्रतियां पेश की गई है।
इसके बावजूद भी संबंधित रजिस्ट्रार ने समन जारी करने और अंतरिम राहत देने पर विचार करने के बजाय मूल दस्तावेजों को दाखिल करने का निर्देश दिया। इस पर पीठ ने स्पष्ट किया कि डीआरटी के समक्ष मूल आवेदन दाखिल करते समय मूल दस्तावेज दाखिल करना अनिवार्य नहीं है। पीठ ने कहा कि धारा 19 (10ए) या धारा 19 (10बी) के तहत भी आवेदक को मूल आवेदन प्रस्तुत करते समय मूल दस्तावेज दाखिल करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। पीठ ने केंद्र सरकार की तरफ से पेश एडिशनल सालिसिटर जनरल चेतन शर्मा और स्थायी अधिवक्ता रवि प्रकाश की उस दलील को भी खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता ने खुद मूल दस्तावेज दाखिल करने के लिए स्थगन की मांग की थी।