उत्तर प्रदेश में कोरोना महामारी के दूसरे लहर के प्रकोप के बाद काफी संख्या में लोगों ने दम तोड़ दिया। महामारी के दूसरे लहर ने कई हंसते-खेलते परिवारों को तबाह कर दिया है। इस बीच गंगा किनारे शव दफनाने और नदी में शव बहने के मामले सामने आने लगे। ऐसे में शव दफनाने और नदी में शव बहने से गंगा जल भी प्रदूषित होने की बात कही जा रही है। अब सीएसआइआर-आइआइटीआर (काउंसिल फार साइंटिफिक इंडस्ट्रियल रिसर्च इंडियन इंस्टीट्यूट आफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च) लखनऊ की संयुक्त टीम ने कानपुर, प्रयागराज व काशी में गंगाजल के नमूने जांच के लिए हैं। इसकी जांच रिपोर्ट 15 दिनों में आने की संभावना है। तब पता चलेगा यहां गंगाजल में कितना प्रदूषण है।
दरअसल, गंगा किनारे घाटों शव दफनाए जाने और शवों को जल में बहाने का सिलसिला बीते डेढ़ माह में काफी बढ़ गया था। स्थानीय लोगों के अनुसार अप्रैल के प्रारंभ में ही रोजाना सौकड़ों की संख्या में शवों का दफनाया गया, जबकि शवों का नदी किनारे दाह संस्कार भी कराया गया था। ऐसे में गंगा जल के दूषित की काफी संभावना जताई जा रही थी। हालांकि सीएसआइआर-आइआइटीआर की टीम के द्वारा सैंपल लेने के बाद रिपोर्ट में क्या आता है उसी से आगे की रूपरेखा तय होगी।
गंगा जल का सैंपल लेने के लिए लखनऊ स्थिति भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान (आइआइटीआर) की तीन सदस्यीय टीम प्रयागराज स्थित श्रृंगवेरपुर घाट पहुंची। साथ में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की भी टीम थी। नदी किनारे जहां पर शव दफनाए गए हैं, उसी तरफ से उन्होंने से गंगा जल के सैंपल लिए। पीपीई किट में इस टीम ने सैंपल लिए। उसके बाद यह टीम गंगा किनारे फाफामऊ घाट पर पहुंची। वहां से उन्होंने गंगा जल का सैंपल लिया और फिर लखनऊ लौट गई। इसके अलावा टीम ने कानपुर और उन्नाव स्थित रौतापुर श्मशान घाट पर चार स्थानों से गंगा के जल के नमूने एकत्रित किए हैं।
जांच टीम के सदस्यों ने बताया कि सीपीसीबी के निर्देश पर यह सैंपल लिए जा रहे हैं। टीम ने कानपुर से लेकर वाराणसी तक गंगा जल की सैंपलिंग की है। पखवाड़े भर में जांच करके वह इसकी रिपोर्ट सीपीसीबी को सौंप दी जाएगी। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों ने बताया कि यह रिपोर्ट मिलने के बाद पूर्व की रिपोर्ट से इसका मिलान किया जाएगा। इससे पता चलेगा कि हाल के दिनों में गंगा किनारे शव दफनाने और शव बहने से जल में कितना प्रदूषण बढ़ा है।