पानीपत में उग रहे पीले मीठे तरबूज, खेत में ही बिक जाते हैं, जानिये ये वैरायटी

जिस खेती को लोग घाटे का सौदा कहते हैं, उन्हें पानीपत जिले के गांव सिवाह के किसान रामप्रताप शर्मा गलत साबित कर रहे हैं। छह एकड़ जमीन में हाईटेक व आर्गेनिक (सब्जी व फल) खेती कर हर साल लाखों रुपये कमा रहे हैं। इसी खेती से उन्हें सम्मान से लेकर विदेश तक पहचान मिली है। आर्गेनिक तरीके से उगाए उत्पादों की मांग बहुत है। हाल में भी गर्मी में ताइवान वैरायटी के लाल व पीले तरबूज लगाए। हालात ऐसे हैं कि तरबूज खाने की इच्छा रखने वाले लोगों को तीन से चार दिन तक इंतजार करना पड़ रहा है।

किसान रामप्रताप शर्मा बताते हैं कि वह करीब पच्चीस साल से खेती करते आ रहे हैं। बागवानी विभाग से मिले प्रोत्साहन के बाद पांच साल पहले हाईटेक और आर्गेनिक तरीके से सब्जियों व फल की खेती शुरू की। टमाटर, तोरी, करेला, मिर्च, पेठा, तरबूज, खरबूजा, शिमला मिर्च, अमरूद, ड्रेगन फ्रूट की खेती करते हैं। वह ज्यादा पैदावार की बजाय क्वालिटी में विश्वास रखते हैं। यही कारण है कि उन्हें अपनी सब्जी व फल को बेचने के लिए किसी मंडी में नहीं जाना पड़ता है। लोग सब्जी व फल खरीदने के लिए खुद चलकर उसके खेत तक आते हैं।

2019 में ट्रायल बेस पर शुरू किए ताइवान के तरबूज

किसान रामप्रताप शर्मा ने बताया कि वर्ष 2019 में ताइवान की कंपनी नोनू सीड़ ने तरबूज की अलग अलग तीन वैरायटी के बीज ट्रायल बेस पर उपलब्ध कराए। खेत में तीनों वैरायटी की बिजाई को तो ट्रायल सफल हो गया। उसके बाद से वह हर साल लगातार ताइवान के लाल व पीले तरबूज की खेती करते आ रहे हैं। एक एकड़ में उसका करीब एक लाख रुपया खर्च हो जाता है। तीन से चार लाख रुपये की आमदनी लेते हैं।

बीज का दाम एक लाख रुपये प्रति किलो

ताइवान के तरबूज यहां के सामान्य तरबूज से काफी खास है। बीज भी एक लाख रुपये किलोग्राम तक है। तरबूज का भाव पचास रुपये प्रति किलो तक है। पानी की मात्रा ज्यादा होने के साथ स्वाद भी कुछ अलग ही है। तीनों वेरायटी में सबसे ज्यादा आरोही की मांग है। दिल्ली, चंडीगढ़, नोएडा, करनाल आदि जगहों से लोग सब्जी व तरबूज लेने के लिए आते हैं।

पपीतों का ट्रायल

तरबूज के बाद अब ताइवान से देश में ट्रायल के लिए पपीते के 100 पौधे आए हैं। इनमें से 35 पौधे अकेले उनके पास आए हैं। इन पर लगने वाले पपीते दूसरों की तरह हरे नहीं, बल्कि पीले रंग के चमकीले होंगे। राम प्रताप का कहना है कि अगर तरबूज की तरह ये ट्रायल भी सफल हुआ तो फलों की खेती में एक और नया अध्याय जुड़ जाएगा।