अनुच्छेद-370 को रद किए जाने के बाद से पाकिस्तान से लगती संवेदनशील सीमा पर 300 से अधिक ड्रोन या अज्ञात उड़ान वस्तुएं (यूएवी) देखी गई हैं। केंद्रीय एजेंसियों के मुताबिक पश्चिमी सीमा (मुख्य रूप से जम्मू और पंजाब) पर वर्ष 2019 में 167, पिछले साल 77 और अब तक 60 बार ड्रोन देखे गए हैं। बता दें कि रविवार को जम्मू के वायुसेना स्टेशन को निशाना बनाकर दो विस्फोट कराए गए थे। हालांकि इन हमलों में कोई जनहानि तो नहीं हुई, लेकिन सुरक्षा विशेषज्ञ इसे बड़े खतरे के तौर पर देख रहे हैं। शैतान पड़ोसी पाकिस्तान और चालाक चीन से मिल रही चुनौतियों के बीच देश की सुरक्षा-व्यवस्था के लिए यह खतरे की घंटी है।
इन प्रणालियों पर हो रहा काम
- ड्रोन हमलों को रोकने के लिए स्काई फेंस, ड्रोन गन, एथेना, स्काईवाल-100 और ड्रोन कैचर जैसी विशिष्ट ड्रोन रोधी तकनीकों पर काम किया जा रहा है
- ड्रोन गन: यह पायलट और ड्रोन के बीच रेडियो सिग्नल को जाम करने के साथ ही हमले से पहले ड्रोन को उतरने पर मजबूर कर देती है
- स्काई फेंस: इसके माध्यम से ड्रोन पर इस तरह के सिग्नलों का प्रयोग किया जाता है, जिससे कि वह अपना रास्ता भटक जाता है
- ड्रोन कैचर: यह तेजी से दुश्मन ड्रोन के पास पहुंचता है और ड्रोन पर जाल फेंककर उसमें लगे अन्य उपकरणों को जाम करके काबू कर लेता है
- एथेना: एडवांस्ड टेस्ट हाई एनर्जी एसेट एक अन्य हथियार है, जिस पर काम चल रहा है। इसके जरिये उच्च क्षमता की लेजर बीम फायर करके ड्रोन का काम तमाम किया जाता है
अपना रखी है ‘देखो और मार गिराओ’ की प्रक्रिया
सीमा सुरक्षा बल और विभिन्न पुलिस इकाइयों की सीमावर्ती यूनिट ने 3,323 किलोमीटर लंबी सीमा पर ड्रोन, यूएवी और दूर से संचालित वायुयान को हवा में दिखने पर ‘देखो और मार गिराओ’ की प्रक्रिया अपना रखी है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि दुश्मन के ड्रोन को मार गिराने के लिए सुरक्षा प्रहरी को जमीन पर सतर्क रहना होगा और ड्रोन के दिखते ही उसे इंसास राइफल जैसे हथियार से मार गिराना होगा या उसे काबू करना होगा। इस तरह की प्रक्रिया अपनाकर ही इस पर काबू पाया जा सकता है।
वृत्ताकार ड्रोन रोधी प्रणाली उपलब्ध
सेना से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि किसी सैन्य प्रतिष्ठान या परिसर को सुरक्षित रखने के लिए अभी एक वृत्ताकार ड्रोन रोधी सुरक्षा प्रणाली उपलब्ध है। हालांकि सीमा सुरक्षा के लिए एकरेखीय सुरक्षा घेरे की जरूरत है। एक अन्य अधिकारी ने कहा कि बीएसएफ ने अक्टूबर, 2019 में एक ड्रोन रोधी सिस्टम के प्रोटोटाइप का परीक्षण किया था।
पहली बार खाड़ी युद्ध में इस्तेमाल
वैसे तो इसका उपयोग दवाइयों की डिलीवरी, तस्वीरें लेने और वीडियो शूट करने में किया जाता है, लेकिन अमेरिकी सेना ने वर्ष 1991 में खाड़ी युद्ध के दौरान ड्रोन का पहली बार सैन्य इस्तेमाल किया था। अमेरिकी वायुसेना अंतरिक्ष में भी इसका उपयोग कर चुकी है।
कई आतंकी संगठन कर रहे प्रयोग
इस्लामिक स्टेट के अलावा, फलस्तीन और लेबनान में सक्रिय हिजबुल्लाह, हूती विद्रोही, तालिबान के साथ पाकिस्तान में सक्रिय कई आतंकी संगठन हमलों के लिए ड्रोन का इस्तेमाल करते हैं।