दिल्ली से गुजरने वाली इकलौती नदी यमुना का पुराणों में ही नहीं, दिल्ली के इतिहास में भी खासा महत्व है। बावजूद इसके यमुना का सर्वाधिक प्रदूषित हिस्सा भी राजधानी में ही पड़ता है। यह भी सीधे तौर पर सरकारी अनदेखी या राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी का ही परिणाम है कि इसे पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करने के बारे में कभी गंभीरता से सोचा ही नहीं गया। इसकी साफ-सफाई को लेकर योजनाएं तो बनती रहीं, चुनावी दौर में घोषणाएं भी होती रहीं, लेकिन धरातल पर आज तक कुछ नहीं हो पाया।
दरअसल, यमुना खादर में 1976 से अनधिकृत कालोनियां बसने का शुरू हुआ सिलसिला आज 100 गांव-कालोनियों तक जा पहुंचा है। इनमें रहने वालों की संख्या भी चार लाख के लगभग हो गई है। यमुना खादर का क्षेत्र करीब 9700 हेक्टेयर का है, जिसमें से 3600 पर अनधिकृत कालोनियां बस चुकी हैं। यही वोट बैंक राजनीतिक स्तर पर यमुना के पुनरुद्धार में हमेशा के लिए रुकावट बनता गया।
डीडीए भी यमुना के किनारों का सुंदरीकरण करने की योजना पर कई साल से काम कर रहा है। इसके तहत घाटों को पक्का करने, फूल वाले पौधे, बैठने के लिए बेंच लगाने और आगे चलकर वहां सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित करने की सोच रखी गई है। उपराज्यपाल स्वयं समय-समय पर समीक्षा बैठक लेते रहते हैं, लेकिन धरातल पर यहां भी कुछ नहीं है। इस दौरान डीडीए के दो उपाध्यक्ष भी बदल चुके हैं।
दिल्ली सरकार ने यमुना के लिए बनाया नौ सूत्रीय एक्शन प्लान
यमुना को झाग और गंदे सीवर के पानी से बचाने के लिए दिल्ली सरकार ने 2020 में नौ सूत्रीय एक्शन प्लान तैयार किया। हरियाणा और उत्तर प्रदेश तक को अपने सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) अपग्रेड करने को कहा गया। इस प्लान के तहत यूपी सिंचाई विभाग को ओखला बैराज से सभी जलकुंभियां हटाने के लिए 31 मार्च तक का समय दिया गया। लेकिन, कोरोना के कारण यह लक्ष्य पूरा नहीं हुआ। जल बोर्ड को सभी अनधिकृत कालोनियों और स्लम में 31 दिसंबर तक सीवरेज सिस्टम कनेक्ट करने को कहा गया है। कोरोनेशन पिलर और ओखला में बन रहे नए एसटीपी प्लांट को 30 जून 2021 और 31 दिसंबर 2022 तक पूरा किया जाएगा।
आर जी गुप्ता (टाउन प्लानर, दिल्ली) का कहना है कि यमुना को पर्यटक स्थल से बनाने से पहले इसे पुनर्जीवित करने की जरूरत है। जबकि न तो प्रशासनिक और ही राजनीतिक स्तर पर इसे लेकर गंभीरता है। इस दिशा में ढेरों योजनाएं बन चुकी हैं। हर राजनीतिक दल के चुनावी घोषणा पत्र में भी इसका जिक्र रहता है, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं होता। कभी बहु निकाय व्यवस्था बाधक बन जाती है, कभी दिल्ली और केंद्र सरकार की आपसी खींचतान और कभी अन्य राज्य सरकारों के साथ समन्वय का अभाव। सच तो यह कि यमुना को बेहतर बनाने के लिए कोई भी गंभीर नहीं है। यमुना की बेहतरी के लिए आसपास की अनधिकृत कालोनियां हटाना और बाढ़ क्षेत्र को अतिक्रमण मुक्त करना भी जरूरी है जो कोई सरकार नहीं चाहती।
एके जैन (पूर्व योजना आयुक्त, डीडीए) के मुताबिक, डीडीए के करीब दो दर्जन मास्टर प्लान बन चुके हैं। हर प्लान में यमुना को लेकर भी कई प्रविधान रखे जाते हैं, लेकिन काम अमूमन नहीं होता। मास्टर प्लान 2041 के ड्राफ्ट में तो रिवर (ओ) जोन को ही दो हिस्सों में बांटने का प्रस्ताव रख दिया गया है। 300 मीटर तक बफर जोन होगा जहां हरित क्षेत्र विकसित किया जाएगा, जबकि 300 मीटर के आगे के क्षेत्र में बसी अनधिकृत कालोनियों को कुछ शर्तों के साथ नियमित करने की योजना बनाई जा रही है। मतलब, यमुना से ज्यादा चिंता वोट बैंक की है।