हरियाणा में तेज गर्मी के साथ ही यहां का राजनीतिक पारा भी खूब चढ़ा हुआ है। प्रदेश के पांच बार सीएम रह चुके इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला की तिहाड़ जेल से रिहाई ने इस राजनीतिक पारे को नई उंचाइयों पर पहुंचा दिया। चौटाला के हरियाणा की राजनीति में जल्द सक्रिय होने की तैयारी के साथ ही कांग्रेस और जननायक जनता पार्टी के विधायकों की परेशानी बढ़ गई है। भाजपा के जाट नेताओं के लिए भी चुनौती पैदा हुई है।
दरअसल, माना जा रहा है कि कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बीच चल रही तनातनी चौटाला की रिहाई की देन है। चौटाला के सक्रिय होने के साथ ही हरियाणा की राजनीति में नए राजनीतिक समीकरण बनने की संभावना है। कांग्रेस, इनेलो और जजपा के बीच जहां जाट लीडरशिप को लेकर जबरदस्त द्वंद्व चल पड़ा है, वहीं सत्तारूढ़ भाजपा गैर जाटों के दम पर दूसरे दलों की इस लड़ाई का भरपूर लुत्फ उठा रही है।
कांग्रेस, इनेलो और जजपा में जाट लीडरशिप काे लेकर जबरदस्त द्वंद्व
जूनियर बेसिक टीचर (जेबीटी) भर्ती घोटाले में सजा काटने बाद इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला समय से पूर्व रिहाई के बाद हरियाणा में जछ सक्रिय होंगे। इससे हरियाणा की राजनीति और हुड्डा व दुष्यंत चौटाला सहित दिग्गज नेताओं में नई हलचल पैदा हो गई है।
चौटाला ने जहां इनेलो संगठन के विस्तार, किसान संगठनों के आंदोलन में भागीदारी और फील्ड में उतरकर कार्यकर्ताओं को जोड़ने के लिए सक्रियता बढ़ाने का संकेत दिया है, वहीं उनकी रिहाई से प्रदेश की जाट लीडरशिप के लिए तमाम चुनौतियां पैदा हो गई हैं। ओमप्रकाश चौटाला फिलहाल गुरुग्राम स्थित अपने फार्म हाउस पर परिवार के साथ आराम कर रहे हैं। मेदांता के डाक्टरों ने उन्हें अभी फील्ड में जाने से मना किया है, लेकिन कभी टिक कर नहीं बैठने वाले चौटाला अगले सप्ताह से अपनी राजनीतिक गतिविधियां आरंभ कर सकते हैं।
ओमप्रकाश चौटाला और अभय सिंह चौटाला की फाइल फोटो।
ओमप्रकाश चौटाला का पहला लक्ष्य इनेलो को फिर से खड़ा करने के साथ ही किसान संगठनों के आंदोलन में भागीदारी कर उनका भरोसा जीतने का होगा। यह काम हालांकि भूपेंद्र सिंह हुड्डा और अभय सिंह चौटाला भी कर रहे हैं, लेकिन ओमप्रकाश चौटाला का अपना अलग ही वजूद और रुतबा है। बड़े चौटाला से सलाह मशविरा करने के बाद ही अभय चौटाला ने ऐलनाबाद से तीन कृषि कानूनों के समर्थन में विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया था।
ओमप्रकाश चौटाला जब फील्ड में निकलेंगे तो उनके साथ अभय चौटाला के दोनों बेटे कर्ण चौटाला और अर्जुन चौटाला भी बारी-बारी से दिखाई देंगे। कुछ कार्यक्रमों में खुद अभय चौटाला रहेंगे। हालांकि अभय 30 जून तक एक बार पूरे प्रदेश का दौरा कर चौटाला के लिए फील्ड में जाने का माहौल बना चुके हैं।
हुड्डा, दीपेंद्र व दुष्यंत को बनानी होगी नई रणनीति
ओमप्रकाश चौटाला की जेल से रिहाई प्रदेश की जाट लीडरशिप के लिए बड़ी चुनौती है। उनकी रिहाई का सबसे बड़ा असर भूपेंद्र सिंह हुड्डा की जाट व किसान लीडरशिप पर पड़ सकता है। ओमप्रकाश चौटाला को भी पहले इन दोनों वर्ग का समर्थन हासिल रहा है। कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा को पद से हटाने का हुड्डा समर्थक विधायकों ने इसलिए ही माहौल बनाया है, ताकि वह हाईकमान और प्रदेश की जनता में यह संदेश दे सकें कि हुड्डा की लीडरशिप बरकरार है।
हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके सांसद पुत्र दीपेंद्र सिंह हुड्डा। (फाइल फोटो)
कांग्रेस के पास हुड्डा व उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा के अलावा दूसरा बड़ा कोई जाट या किसान चेहरा नहीं है। इनेलो से अलग होकर अस्तित्व में आई जननायक जनता पार्टी के नेता के रूप में दुष्यंत चौटाला और उनके पिता अजय सिंह चौटाला इनेलो रूपी उसी वृक्ष के अंग हैं, जिसका जन्म देवीलाल और ओमप्रकाश चौटाला की देन है। उनकी चुनौतियां भी अब बढ़ गई हैं।
भाजपा के जाट नेताओं की चुनौतियां भी कम नहीं
भाजपा के पास जाट लीडरशिप के रूप में चौधरी बीरेंद्र सिंह, ओमप्रकाश धनखड़, कैप्टन अभिमन्यु, सुभाष बराला, जेपी दलाल, धर्मवीर सिंह, बृजेंद्र सिंह, महीपाल ढांडा और कमलेश ढांडा हैं। निर्दलीय तौर पर बिजली मंत्री रणजीत चौटाला भी जाट लीडरशिप का दम भर रहे हैं। रणजीत चौटाला इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला के सगे छोटे भाई हैं।
तीन कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे आंदोलन के बीच भाजपा के इन जाट नेताओं के सामने काफी चुनौतियां हैं। इनेलो को हर हाल में खड़ा करने का कोई मौका नहीं चूकने वाले अभय सिंह चौटाला के सामने जहां दादा देवीलाल का नाम और पिता ओमप्रकाश चौटाला का हाथ पकड़कर आगे बढ़ने का अवसर है, वहीं राज्य के दूसरे दलों की जाट लीडरशिप के सामने चौटाला को मात देकर खुद को साबित करने की बड़ी चुनौती भी है।