अपने जज्बे और समर्पण के लिए भारतीय क्रिकेट में विशिष्ट पहचान बनाने वाले पूर्व बल्लेबाज यशपाल शर्मा टीम इंडिया के फर्श से अर्श तक पहुंचने के सफर के गवाह रहे। यशपाल 1979 विश्व कप की उस भारतीय टीम का हिस्सा थे जिसे श्रीलंका की टीम के खिलाफ भी शिकस्त का सामना करना पड़ा था, जबकि इसके चार साल बाद कपिल देव की अगुआई में उनकी मौजूदगी वाली टीम ने वेस्टइंडीज की दिग्गज टीम को हराकर खिताब जीता था।
भारतीय क्रिकेट ने मंगलवार को अपने सबसे समर्पित सैनिकों में से एक यशपाल शर्मा को गंवा दिया, जिनका दिल का दौरा पड़ने से निधन हुआ। यशपाल के पास सुनील गावस्कर जैसी योग्यता, दिलीप वेंगसरकर जैसा विवेक या गुंडप्पा विश्वनाथ जैसी कलात्मकता नहीं थी, लेकिन जो भी यश पाजी को जानता है उसे पता है कि उनके जैसा समर्पण, जज्बा और जुनून बेहद कम लोगों के पास होता है।
मैं कुछ नहीं बोल पाऊंगा : कपिल देव
भारतीय क्रिकेट जगत मंगलवार को 1983 विश्व कप के हीरो यशपाल शर्मा के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए स्तब्ध था। विश्व कप में एतिहासिक जीत दर्ज करने वाली टीम के उनके पूर्व साथियों के लिए इस पूर्व बल्लेबाज को श्रद्धांजलि देते हुए खुद को संभालना मुश्किल हो गया। विश्व कप 1983 की चैंपियन भारतीय टीम के कप्तान कपिल देव से जब संपर्क किया तो वह काफी दुखी और कुछ बोलने की स्थिति में नहीं थे और सिर्फ इतना ही बोल पाए, ‘मैं कुछ नहीं बोल पाऊंगा।’
दिलीप वेंगसरकर ने कहा, “यह अविश्वसनीय है। वह हम सभी में सबसे अधिक फिट थे। हम जब उस दिन (कुछ दिन पहले एक किताब के विमोचन के मौके पर) मिले थे तो मैंने उनसे उनकी दिनचर्या के बारे में पूछा था। वह शाकाहारी थे। रात को खाने में सूप लेते थे और सुबह की सैर पर जरूर जाते थे। मैं सकते में हूं।”
बलविंदर सिंह संधू ने कहा, “स्तब्ध हूं, यह मेरे लिए सबसे बुरी खबर है। 1983 की टीम परिवार की तरह थी और ऐसा लगता है कि हमारे परिवार का एक सदस्य नहीं रहा, यह काफी स्तब्ध करने वाला है।”
क्रिस श्रीकांत ने कहा, “वह उन मुख्य हीरो में शामिल थे जिन्होंने हमारे 1983 विश्व कप जीतने में मदद की। उनके साथ खेलने की मेरी शानदार यादें हैं। उनके परिवार के प्रति मेरी संवेदनाएं।”
कीर्ति आजाद ने कहा, “उस दिन जब हम मिले तो उन्होंने मुझसे कहा कि मेरा वजन कम हो गया। हमारे लिए यादगार दिन था। मुझे विश्व कप 1983 का पहला मैच याद है। हमारा सामना वेस्टइंडीज की मजबूत टीम से था जिसके पास तूफानी गेंदबाजों की फौज थी। यशपाल ने अपनी योजना बनाई और हम मैच जीत गए।”
विकेटकीपर बल्लेबाज सैयद किरमानी ने कहा, “वह 1983 विश्व कप में मेरे साथी विकेटकीपर थे। हम विश्व कप में किसी बैकअप विकेटकीपर के साथ नहीं गए थे। मैं प्रमुख विकेटकीपर था और वह मेरे सहयोगी। वह इस बड़े टूर्नामेंट के दौरान दूसरे विकेटकीपर की भूमिका निभाने वाले थे। यशपाल की सबसे बड़ी खूबी थी उनके अंदर का मोटिवेशन। पूरी टीम को हमेशा ही मोटिवेट किया करते थे। वह बेहद ही जिंदादिल इंसान थे जो हमेशा ही दूसरों को खुश रखना जानते थे। यशपाल के परिवार के प्रति मेरी संवेदनाएं।”
मदन लाल का कहना है, “यशपाल हमें छोड़कर चले गए हैं इस पर यकीन नहीं होता। यशपाल टीम मैन होने के साथ-साथ अच्छे इंसान भी थे।”
रवि शास्त्री ने कहा, “जीवन में इतनी जल्दी विश्व कप जीत के एक साथी को खोने पर वास्तव में दुखी और स्तब्ध हूं। परिवार के प्रति संवेदना और ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दें।”
यशपाल ने फिरोजशाह कोटला मैदान पर चाय की चुस्की लेते हुए एक बार कहा था, “मैलकम मार्शल के साथ मेरा अजीब रिश्ता था। मैं जब भी बल्लेबाजी के लिए आता था तो वह कम से कम दो बार गेंद मेरी छाती पर मारते थे।” यशपाल का रिकॉर्ड उनकी बल्लेबाजी की बानगी पेश नहीं करता। यह 1980 से 1983 के बीच टीम पर उनके प्रभाव को भी बयां नहीं करता, जो उनके स्वर्णिम वर्ष थे और वह टीम के मध्यक्रम का अभिन्न हिस्सा थे।
घरेलू मैचों के दौरान जब यशपाल से बात होती थी तो वह मार्शल के बाउंसर और 145 किमी प्रति घंटा से अधिक की रफ्तार की इनस्विंगर का सामना करने की बात बताते हुए गर्व महसूस करते थे। यशपाल ने कहा था, “आपको पता है मैंने 1983 में (विश्व कप से ठीक पहले) सबीना पार्क में 63 रन बनाए थे और सबसे आखिर में आउट हुआ था, मैं ड्रेसिंग रूप में वापस गया, टी-शर्ट उतारी और वहां मैलकम की प्यार की निशानी (मैलकम की शार्ट गेंद से लगी चोट) थी। वे सभी महान गेंदबाज थे, लेकिन मैलकम विशेष थे। वह डरा देते थे।”
उन्होंने आगे कहा था, “वेस्टइंडीज के आक्रमण के खिलाफ आपको कभी नहीं लगता था कि आप क्रीज पर जम गए हो। आपको बस अपने ऊपर विश्वास रखना होता था और खराब गेंद को छोड़ना नहीं होता था क्योंकि उनके जैसे स्तरीय गेंदबाज बहुत कम ऐसा मौका देते थे।” विश्व कप 1983 में कपिल देव, मोहिंदर अमरनाथ और रोजर बिन्नी के प्रदर्शन को अधिक सुर्खियां मिलती हैं, लेकिन यशपाल की छाप भी उस टूर्नामेंट में किसी से कम नहीं थी।
जिन्हें माना अपने करियर की तीन यादगार पारियां
बेहद कम लोगों को याद होगा कि यह यशपाल की विश्व कप के भारत के पहले मैच में ओल्ड ट्रैफर्ड में वेस्टइंडीज के खिलाफ 89 रन की पारी थी जिसने भारत की आने वाली सफलता का मंच तैयार किया था। भारत ने यह मैच 32 रन से जीता था। यशपाल का मानना था कि माइकल होल्डिंग, मार्शल, एंडी राबर्ट्स और जोएल गार्नर जैसे वेस्टइंडीज के तूफानी गेंदबाजों के खिलाफ उनकी 120 गेंद में 89 रन की पारी उनकी सर्वश्रेष्ठ वनडे पारी थी।
वह ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चेम्सफोर्ड में टीम के अंतिम ग्रुप मैच में भी शीर्ष स्कोरर थे, लेकिन जिस पारी ने उन्हें 1980 के क्रिकेट प्रेमियों के जेहन में अमर कर दिया वह इंग्लैंड के खिलाफ सेमीफाइनल में नाबाद 61 रन की पारी थी। यशपाल की एक अन्य पारी जिसे लगभग भुला दिया गया वह 1980 में एडिलेड में न्यूजीलैंड के खिलाफ थी। उन्होंने 72 रन बनाए और न्यूजीलैंड के बायें हाथ के तेज गेंदबाज गैरी ट्रूप के ओवर में तीन छक्के जड़े।