ओलिंपिक में शामिल हमारे खिलाड़ी दर्जन भर से ज्यादा पदक लाने में सक्षम हैं, बशर्ते उन्हें सवरेत्तम तकनीकी सहायता मिले। करीब दर्जन भर पदकों की उम्मीद के साथ हम टोक्यो गए। इस ओलिंपिक के खत्म होने बाद हम अपने सर्वाधिक छह पदकों के कीर्तिमान को तोड़कर वापस लौट रहे होंगे या नहीं, इस पर निर्णायक तौर पर कुछ कहना कयास होगा।
सवा सौ साल के ओलिंपिक इतिहास में हमारा सफर ऐसा नहीं रहा जिस पर गर्व किया जा सके। हम आजाद भारत में कभी भी पदक तालिका में 20 से ऊपर नहीं जा पाए, शायद इस बार भी यह परंपरा न टूटे, तो जाहिर है खेलों के आखिर में इस बात पर विलाप होना तय है कि जन और धन में जब हम संसार के बहुतेरे देशों से बहुत आगे हैं तो पदकों के मामले में इतने पीछे क्यों? यह हर चार साल बाद की एक रूदाली रस्म है। इसका सुर भी समान है, खेल की संस्कृति, सामाजिकता, सरकार की खेलनीति, खेल सुविधाओं की अपर्याप्तता, खेलों में राजनीति और क्रिकेट जैसे खेलों को बढ़ावा देने जैसे परंपरागत राग गाए जाएंगे। जिसका कोई असर अगले चार वर्षो में नहीं होगा।
सच तो यह है कि सरकार ने नई खेल नीति में खेलों को बढ़ावा देने के लिए बजटीय प्रविधान बढ़ाए हैं और शिक्षा नीति में भी स्कूली स्तर पर खेलों को शामिल किया है। असल में इस सारी प्रक्रिया में हम एक पहलू को बिल्कुल नजरअंदाज कर देते हैं और वह है खेलों में तकनीक के व्यापक इस्तेमाल का पक्ष। जो हमारे पदकों की संख्या वृद्धि में सबसे बड़ी बाधा है। इस बार भी हम पदक चाहे जितने लाएं, हमारे खिलाड़ी यह साबित करने में कामयाब रहे कि वे पर्याप्त सामथ्र्यवान और कुशल हैं। कई दुर्भाग्यशाली रहे तो कुछ तकनीकी वजह से पदक चूके। इसके बावजूद उन्होंने संभावना जगाई कि अगर खामियों को खत्म किया जा सके तो पदकों की संख्या दहाई पार कर सकती है।
आजकल खिलाड़ियों के प्रशिक्षण और अभ्यास के दौरान उनकी खास तरह की रिकॉर्डिंग बताती है कि उनके मांसपेशियों को कितना बल और चाहिए व उनका डाइट प्लान कैसे बदला जाए, उनका ट्रेनिंग शिड्यूल कैसा रखा जाए, कितने समय में प्रदर्शन कितना सुधर सकता है। वीयरेबल टेक्नोलाजी, आग्युमेंटेड रियलिटी और थ्रीडी माडलिंग के जरिये खिलाड़ी की शारीरिक क्षमता को आंकते हुए प्रतिस्पर्धा के मुताबिक खिलाड़ी उसमें आपेक्षिक में बढ़ोतरी करता है और चोटों से बचा रहता है। साफ है कि खेल संसार में तकनीक उसके नियमों, आयोजनों सहित खेल के प्रदर्शन और परिणाम को भी प्रभावित कर रहा है। मशीनें और तकनीक मानवीय क्षमता को उसके उच्चतम बिंदु पर पहुंचने में सहायता कर रही हैं।
पुराने कीर्तिमान ध्वस्त होने पर हम यह कह सकते हैं कि बेशक खिलाड़ी बेहतर होते जा रहे हैं, परंतु यह पूरा सच नहीं है, एक सच यह भी है कि उनके कीर्तिमान एक हिस्सा तकनीक का भी है। हमने भी तकनीक को अपनाया तो है, लेकिन हमें उसे कम से कम उस स्तर तक ले जाना होगा जिसपर आज ब्रिटेन, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्रांस और चीन आदि हैं। अगर सदिच्छा हो तो यह मुश्किल नहीं है, खुले बाजार के तहत सभी तरह की तकनीक और उससे संबद्ध तकनीकी विशेषज्ञ पैसे खर्चने पर उपलब्ध हैं।
हमें भी तमाम दूसरी खेल प्रविधियों के अलावा बायोमेकेनिक्स, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, आभासी वास्तविकता, होलोग्राफिक्स, नैनोटेक, रोबोटिक्स, बिग डाटा, डाटा कलेक्शन, डाटा एनालिसिस, क्लाउड कंप्यूटिंग, इलेक्ट्रो मैकेनिकल सिस्टम तथा थ्रीडी माडलिंग इत्यादि का अधिकाधिक इस्तेमाल करना होगा। आजकल कंपनियां खेल और खिलाड़ियों के लिए खास तकनीकी कार्यक्रम और उनके लक्ष्य के अनुरूप प्रयुक्त होने वाली तकनीक और उपकरण तैयार कर रही हैं। सरकार इनकी दीर्घकालिक सेवा ले सकती है। यदि हम ऐसा करने में कामयाब हुए तो आगामी ओलिंपिक खेलों में इसके सकारात्मक परिणाम सामने आ सकते हैं।