जिस विपक्ष ने अपने हुड़दंग से संसद नहीं चलने दी, वह अब इस बात का रोना रो रहा है कि सरकार ने, स्पीकर ने सदन क्यों नहीं चलने दिए? यह न केवल हास्यास्पद है, बल्कि विचित्र भी। विपक्ष खुद को पीड़ित बताने के लिए ऐसे आरोप भी लगा रहा है कि उसके नेताओं के साथ उच्च सदन में बुरा बर्ताव हुआ। विपक्ष के दुर्भाग्य से इस कथित बुरे बर्ताव का जो वीडियो सामने आया, वह कुछ और ही कहानी कह रहा है। उसमें मार्शल और सांसदों के बीच धक्कामुक्की होती दिख रही है। उसमें यह भी दिख रहा कि कुछ महिला सांसद एक मार्शल को खींच रही हैं। यह वीडियो सामने आने के बाद विपक्ष ने यह सफाई दी कि पूरा घटनाक्रम दिखाया जाए।
ओछी-अमर्यादित हरकत का भी विपक्ष बचाव कर रहा
पता नहीं पूरा घटनाक्रम किसी कैमरे में कैद हुआ है या नहीं, लेकिन यह तो सबने देखा है कि कुछ विपक्षी सांसद राज्यसभा सभापति के आसन के समक्ष मेज पर चढ़े हुए थे और बाकी तालियां बजा रहे थे। विडंबना यह है कि ऐसी ओछी-अमर्यादित हरकत का भी विपक्ष बचाव कर रहा है। वास्तव में इसी रवैये के कारण उसके आरोपों पर यकीन करना कठिन हो रहा है। क्या ये वही विपक्ष नहीं, जिसने संसद में मंत्री के हाथ से कागज छीनकर फाड़े, आसन के समक्ष जाकर नारेबाजी की और तख्तियां लहराईं?
विपक्ष यही रट लगाए है कि उसके सारे कृत्य जायज
जो विपक्ष संसदीय नियम-कानूनों की दुहाई दे रहा है, वह वही है, जिसने पहले दिन ही यह जाहिर कर दिया था कि संसद नहीं चलने देनी है और इसी कारण उसने प्रधानमंत्री को यह भी अवसर नहीं दिया कि वह अपने नए मंत्रियों को सदन से परिचित करा सकें। ऐसा कभी नहीं हुआ, लेकिन विपक्ष यही रट लगाए है कि उसके सारे कृत्य जायज हैं और सारी गलती सत्तापक्ष की है। विपक्ष ने संसद का सत्र न चल पाने और उसके तय समय से पहले खत्म हो जाने के विरोध में सड़क पर मार्च भी निकाला, लेकिन इसे चोरी और सीनाजोरी के अलावा और कुछ कहना कठिन है।
…तो विपक्ष हंसी का पात्र ही बनेगा
विपक्ष में इतनी ईमानदारी होनी ही चाहिए कि यह कह सके कि उसने संसद का मानसून सत्र नहीं चलने दिया। यदि वह यह साबित करने की कोशिश करेगा कि उसकी कोशिश के बावजूद संसद नहीं चलाई गई तो वह हंसी का पात्र ही बनेगा। विपक्ष को यह आभास हो जाए तो बेहतर कि उसने सरकार को घेरने के फेर में खुद को कठघरे में खड़ा करने का काम किया। नि:संदेह संसद चलाते वक्त सत्तापक्ष को विपक्ष की असहमति का सम्मान करना होता है, लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं होता कि वह अपने संसदीय दायित्व उसे सौंपकर उसके आदेशों का पालन करने लगे। मनमानी किसी की हो, वह चलनी नहीं चाहिए।