Afghanistan Crisis: अफगानिस्तान में चीन और तालिबान की साठगांठ से बढ़ता खतरा

माह तालिबान का एक प्रतिनिधिमंडल चीन गया था और इसी प्रतिनिधिमंडल से चीनी विदेश मंत्री ने उत्तरी चीन के तिआनजिन में मुलाकात की थी। इस मुलाकात से पहले पाकिस्तान के विदेश मंत्री भी चीन के दौरे पर गए थे। ये दोनों मुलाकातें इस बात का प्रमाण है कि चीन दुनिया के लिए कितना घातक देश है जो आतंकियों का मनोबल बढ़ाता है। वैसे दुनिया में चीन पाकिस्तान के आतंकियों को लेकर क्या राय रखता है इसका पर्दाफाश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कई बार हो चुका है और इसका झटका भारत झेल भी चुका है।

गौरतलब है कि मुलाकात के दौरान तालिबान ने यह भी भरोसा दिलाया था कि वह अफगानिस्तान की जमीन से चीन को कोई नुकसान नहीं होने देगा और चीन तालिबान युद्ध खत्म करने, शांतिपूर्ण समझौते तक पहुंचने व अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में अहम भूमिका निभाने की बात कह चुका है। ये सभी तथ्य इस बात को साबित करते हैं कि चीन अफगानिस्तान में तालिबानियों की सत्ता की इच्छा पाले हुए था और जिसका साथ देने में पाकिस्तान भी दो कदम आगे था। जाहिर है अफगानिस्तान में तालिबान की उपस्थिति दुनिया की विदेश नीति को नए सिरे से बदलने का काम करेगी। भारत का दुश्मन चीन और अमेरिका से भी शत्रुता रखने वाला चीन दक्षिण चीन सागर में अपना दबदबा चाहता है। इन दिनों वहां भी अमेरिका और चीन के बीच तनातनी देखी जा सकती है। इन तमाम परिस्थितियों के बीच एक तरफ अमेरिका के दो दशकों के प्रयास के साथ ढाई हजार सैनिकों का खोना और 61 लाख करोड़ रुपये का नतीजा सिफर हो जाना और दूसरी ओर भारत समेत दुनिया के तमाम देशों को बेचैन करने को चीन अपनी बड़ी सफलता समझ रहा है।

भारत अफगानिस्तान के साथ मौजूदा समय में एक अरब डालर का व्यापार करता है और लगभग तीन अरब डालर बीते एक दशक में निवेश भी कर चुका है। हाल ही में जेनेवा में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि अफगानिस्तान में भारत लगभग 400 परियोजनाओं पर काम कर रहा है। जाहिर है अफगानिस्तान में भारत एक व्यापक उद्देश्य के साथ एक ऐसा रास्ता बना रहा था, जो पश्चिम एशिया तक जाता है, मगर चीन की उकसावे वाली नीति ने सारे सपने मानो तोड़ दिए हों। चीन की विस्तारवादी नीति और शेष दुनिया को परेशानी में डालने वाला दृष्टिकोण या फिर उसके आíथक हितों से जुड़ी दिलचस्पी भले ही तालिबानियों की सत्ता में आने से परवान चढ़े, मगर वह इस चिंता से बेफिक्र नहीं हो सकता कि इस्लामिक गुट देर-सवेर मजबूत होंगे, जिससे उसका घर भी जल सकता है।

माना जा रहा है कि शिनजियांग में उसके लिए कुछ मुसीबतें हो सकती हैं। पड़ताल बताती है कि अफगानिस्तान जमाने से विदेशी ताकतों के लिए मैदान का जंग रहा है और जोर-आजमाइश चलती रही है। अब इस बार इसमें चीन शुमार है। जाहिर है अफगानिस्तान की नई सरकार चीन को प्राथमिकता देगी और चीन आने वाले कुछ ही दिनों में पुनर्निर्माण कार्य में निवेश करता भी दिखेगा, फिर धीरे-धीरे अपनी ताकत के बूते अफगानिस्तान को भी आíथक गुलाम बनाएगा जैसाकि पाकिस्तान में देखा जा सकता है। दक्षिण एशिया में चीन का दखल, आसियान देशों पर चीन का दबदबा और पश्चिम एशिया में भारत की पहुंच को कमजोर करने वाला चीन एक ऐसा छिपा हुआ जहर है जिसे दुनिया जानती तो है, मगर फन कुचलना मुश्किल हो रहा है। चीन और तालिबान के गठजोड़ से यह जहर बढ़ेगा नहीं, ऐसा कोई कारण दिखाई नहीं देता। यह कहा जा सकता है कि यह एक गंभीर वक्त है जब भारत को अपनी कूटनीतिक दशा और दिशा को नए होमवर्क के साथ आगे बढ़ाने की आवश्यकता पड़ गई है।