तालिबान-2 का मतलब ‘पुरानी बोतल में नई शराब’, जानें नई अफगान सरकार पर पूर्व राजनयिकों की राय

तालिबान की सरकार बनने के बाद पूरी दुनिया की नजरें अफगानिस्‍तान पर टिक गई हैं। इस सरकार का अफगान जनता के प्रति कैसा रवैया रहेगा इसके संकेत तो मिलने लगे हैं लेकिन आतंकवाद जैसे गंभीर मुद्दों पर विशेषज्ञ दुनिया को अभी से आगाह करने लगे हैं। ऐसा इसलिए क्‍योंकि पुराने तालिबानी शासन को दुनिया ने बखूबी देखा और समझा है। चूंकि नई तालिबानी सरकार में भी क्रूर और पुराने चेहरों को ज्‍यादा जिम्‍मेदारियां दी गई हैं इसलिए आतंकवाद को फि‍र से सर उठाने को लेकर आशंकाएं हैं। आइए जानें नई तालिबानी सरकार पर क्‍या है भूतपूर्व राजनयिकों की राय…

भारत के लिए ‘चिंता का विषय’

अफगानिस्तान में नई तालिबानी सरकार को ‘नई बोतल में पुरानी शराब’ करार देते हुए पूर्व राजनयिकों ने कहा कि काबुल में गठित कैबिनेट ने तालिबान 2.0 की तस्‍वीर बहुत हद तक स्‍पष्‍ट कर दी है। पूर्व राजनयिकों का मानना है कि नई तालिबानी सरकार पर एक मजबूत पाकिस्तानी छाप है जो भारत के लिए ‘चिंता का विषय’ है। नई सरकार में प्रमुख भूमिकाएं आतंकी संगठनों के हाई-प्रोफाइल सरगनाओं को दी गई हैं। इसमें सिराजुद्दीन हक्कानी को गृह मंत्रालय जैसा महत्‍वपूर्ण पद दिया गया है जो एक नामित आतंकी है और जिस पर 10 मिलियन डालर का इनाम है।

वेट एंड वॉच की नीति पर चले भारत

हालांकि सरकार में कुछ ऐसी भी शख्‍सियतें हैं जिन्‍होंने भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध रखने की बात कही है। इनमें शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई हैं लेकिन उनके पास बहुत कम शक्तियां हैं। पूर्व विदेश मंत्री के नटवर सिंह, पूर्व राजनयिक मीरा शंकर, अनिल वाधवा और विष्णु प्रकाश का कहना है कि नई सरकार में चरमपंथी तत्वों की भरमार है। ऐसे में भारत को अभी ‘वेट एंड वॉच’ के नजरिए को जारी रखना चाहिए। अफगानिस्तान में भारत के पूर्व राजदूत राकेश सूद का कहना है कि तालिबान 2.0 को लेकर बहुत हद तक तस्‍वीर साफ हो ग

सरकार में ISI की झलक 

राकेश सूद कहते हैं कि यह अब स्पष्ट हो गया है कि नई तालिबान सरकार पुरानी तालिबान 1.0 जैसी ही है। इस पर पाकिस्‍तानी खुफि‍या एजेंसी आईएसआई की उंगलियों के निशान हैं। मीरा शंकर जिन्होंने 2009 और 2011 के बीच संयुक्त राज्य अमेरिका में भारत के राजदूत के रूप में कार्य किया… वह कहती हैं कि अभी इंतजार करना होगा और देखना होगा कि अफगानिस्‍तान में भारत के संदर्भ में क्‍या घटनाक्रम हो रहे हैं। भारत को लेकर तालिबान की नीतियां और शर्तें कैसी रहती हैं।

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हाशिए पर उदारवादी चेहरे 

मीरा शंकर कहती हैं कि अफगानिस्‍तान में तालिबान की नई सरकार आशाजनक नहीं प्रतीत होती है। यह नई बोतल में पुरानी शराब जैसी मालूम पड़ती है क्योंकि इसमें नियुक्त किए गए कई चेहरे वही हैं जो पिछले तालिबान शासन में थे। यह बेहद चिंताजनक है। शंकर ने आगे कहा कि सिराजुद्दीन हक्कानी को गृह मंत्रालय के प्रमुख के रूप में नियुक्त करना बड़ी चिंता का विषय है। गौर करने वाली बात यह है कि तालिबान का उदारवादी चेहरा पेश करने वाले दोहा समूह को तो इस सरकार में काफी हद तक हाशिए पर डाल दिया गया है।

भारत पर होगा ज्‍यादा असर 

विदेश मंत्रालय में पूर्व सचिव रहे अनिल वाधवा कहते हैं कि इसकी आशंका थी कि अफगानिस्‍तान में एक ‘समावेशी’ सरकार नहीं होगी। इसमें चरमपंथी तत्वों को जगह दी गई जबकि दोहा गुट को हासिए पर डाल दिया गया है। यह निश्चित रूप से भारत, अमेरिका और पश्चिम देशों के लिए एक बड़ा झटका है। मुझे लगता है कि पश्चिम के देश धीरे-धीरे इसके साथ हो लेंगे। जिस देश को इसका ज्‍यादा नुकसान उठाना पड़ेगा वह संभवत: भारत होगा…वाधवा 2017 में सेवानिवृत्ति से पहले विदेश मंत्रालय में सचिव (पूर्व) के तौर पर सेवा दे चुके हैं।

संचार के माध्यम खुलने रखने का समर्थन

कनाडा और दक्षिण कोरिया में भारत के राजदूत रह चुके विष्णु प्रकाश ने भी संचार के माध्यम खुले रखने पर समान विचार व्यक्त करते हुए कहा कि इसका मतलब मान्यता या समर्थन देना नहीं है बल्कि इसका मतलब है ‘हमारे पास संचार का एक जरिया है’ जिससे पाकिस्तान को ‘मनमानी’ करने की छूट न रहे।पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने मंगलवार को कहा कि भारत, अफगानिस्तान में बनी नई सरकार के साथ काम नहीं कर सकता और उसे नहीं करना चाहिए। उन्होंने ट्वीट किया, ‘भारत अफगानिस्तान में तालिबान की इस सरकार के साथ काम नहीं कर सकता और उसे नहीं करना चाहिए।’

संबंधों की बहाली में दिलचस्‍पी नहीं 

मनमोहन सिंह की पहली सरकार में विदेश मंत्री रहे और पाकिस्तान में भारत के राजदूत समेत कई वरिष्ठ राजनयिक पदों पर रह चुके नटवर सिंह ने कहा कि पीएम नियुक्त किया गया मुल्ला मुहम्मद हसन अखुंद को बामियान बुद्ध की मूर्ति को नष्ट करने के लिए जिम्मेदार माना जाता है। पाकिस्तान को भी समस्या का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि तालिबान सरगना आगे चलकर उसके खिलाफ खड़े हो सकते हैं। हम तालिबान के साथ अच्छे संबंध रखना चाहेंगे लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं लगता कि उनकी इसमें दिलचस्पी है।

रसूखदार सदस्‍यों को प्रमुख भूमिकाएं

उल्‍लेखनीय है कि तालिबान ने मंगलवार को मुल्ला मुहम्मद हसन अखुंद के नेतृत्व वाली एक अंतरिम सरकार की घोषणा की, जिसमें प्रमुख भूमिकाएं विद्रोही समूह के रसूखदार सदस्यों को दी गई हैं। इसमें हक्कानी नेटवर्क के विशेष रूप से नामित वैश्विक आतंकवादी सिराजुद्दीन हक्कानी को गृह मंत्री बनाया गया है। अमेरिका ने उस पर एक करोड़ अमेरिकी डालर (लगभग 72 करोड़ रुपये) का इनाम रखा है।