लड़ाकू विमानों से लेकर सोलर पैनल तक से जुड़े उद्योग सेमीकंडक्टर पर निर्भर

कोरोना काल में जिन उद्योगों पर वायरस की परोक्ष मार पड़ी है, आटोमोबाइल इंडस्ट्री उनमें से एक है। बीते डेढ़ वर्षो के दौरान यह उद्योग कारें नहीं बिकने से त्रस्त रहा है। चूंकि लोगों के घर से बाहर निकलने पर प्रतिबंध था, ज्यादातर कामकाज घर बैठे आनलाइन निपटाने थे, इसलिए कारों से आवाजाही लगभग बंद हो गई थी। इस कारण भयानक सुस्ती की चपेट में आई यह इंडस्ट्री हाल में कार्यालयों, स्कूल-कालेजों आदि को आंशिक तौर पर खोले जाने की खबरों को उम्मीद भरी नजरों से देख रही थी। यह कहा जाने लगा था कि त्योहारी सीजन की आमद के साथ-साथ कारों की बिक्री में इजाफा होगा, लेकिन वाहन उद्योग की इन उम्मीदों को इधर एक तकनीकी कारण से झटका लगा है। यह पेच फंसाया है सेमीकंडक्टर (अर्धचालक) या चिप ने, जिसका इस्तेमाल तमाम इलेक्ट्रानिक उपकरणों के साथ-साथ लक्जरी कही जाने वाली प्राय: हर तरह की कारों में होने लगा है।

देखा जाए तो लड़ाकू विमानों से लेकर सोलर पैनल तक और वीडियो गेम्स से लेकर मेडिकल उपकरणों तक से जुड़े उद्योग सेमीकंडक्टर पर निर्भर हैं। इस समय कई कारणों से दुनिया में सेमीकंडक्टर की आपूर्ति प्रभावित हुई है, जिससे कारों सहित तमाम इलेक्ट्रानिक उपकरणों का निर्माण बाधित हो रहा है। हालत यह है कि लोगों द्वारा बुकिंग कराने के बाद भी अपनी कारें आसानी से नहीं मिल पा रही हैं। कार को घर लाने में उन्हें आठ-दस महीने या इससे भी ज्यादा वक्त लग रहा है। ऐसे में चिप की कमी से त्योहारी सीजन में पैसेंजर कारों के निर्माण और खुदरा बिक्री के पटरी से उतर जाने की आशंका जताई जा रही है।

चिप को लेकर किच-किच क्यों : चिप का नाम लेने से ही अंदाजा हो जाता है कि यह इलेक्ट्रानिक उपकरणों जैसे कि कंप्यूटर आदि में इस्तेमाल होने वाली कोई डिवाइस होगी। हालांकि एक दौर ऐसा भी था, जब इलेक्ट्रानिक उपकरणों में चिप नहीं लगी होती थी। आज से करीब पांच दशक पहले इलेक्ट्रानिक उपकरणों (जैसे कि कंप्यूटर, टेलीविजन इत्यादि) में चिप का इस्तेमाल नहीं होता था। इस वजह से ऐसे तकरीबन सभी उपकरण आकार में बड़े, वजनी और काफी जगह घेरते थे। घरों में मौजूद डेस्कटाप कंप्यूटर, रेडियो और कैथोड-रे ट्यूब वाले टेलीविजन इस श्रेणी में रखे जा सकते हैं। यही नहीं, सेमीकंडक्टर रहित इलेक्ट्रानिक उपकरण काफी बिजली की खपत भी करते थे, लेकिन जबसे इलेक्ट्रानिक उपकरणों का आकार घटाने, उन्हें संचालन और बिजली की खपत के मामले में दक्ष बनाने के प्रयास विज्ञान जगत ने शुरू किए तो सेमीकंडक्टर का उपयोग समझ में आया।

सेमीकंडक्टर को इसका श्रेय दिया जा सकता है कि इनकी वजह से इलेक्ट्रानिक उपकरणों को स्लिम-टिम करने में मदद मिली। चिप को आधुनिक कंप्यूटरीकरण के मामले में बिल्डिंग ब्लाक्स के रूप में जाना जाता है। मोबाइल, लैपटाप, कंप्यूटर, टीवी और यहां तक कि वे कारें भी सेमीकंडक्टर्स पर निर्भर हो गई हैं, जिनमें तमाम कार्यो का संचालन वन-टच यानी किसी बटन को छूने भर से होता है। हालांकि यह सही है कि दुनिया में पहले से ही इलेक्ट्रानिक उपकरण बनते रहे हैं, लेकिन उनमें चिप का इस्तेमाल नहीं होता था, पर अब यह दृश्य बदल गया है। आधुनिक किस्म की इलेक्ट्रानिक सहूलियतें देने वाले वाहन यानी फीचर युक्त कारों में अब सेमीकंडक्टर या चिप होना जरूरी है।

क्यों होने लगी कमी : सेमीकंडक्टर की कमी का दौर पिछले वर्ष 2020 में कोरोना वायरस के प्रकोप की अवधि में ही शुरू हो चुका था। ध्यान रहे कि यह चिप आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम कंप्यूटिंग, एडवांस्ड वायरलेस नेटवर्क्‍स, ब्लाकचेन एप्लिकेशंस, 5जी, इंटरनेट आफ थिंग्स (आइओटी), ड्रोन, रोबोटिक्स, गेमिंग और वियरेबल गैजेट्स (फिटबिट या स्मार्ट वाच आदि) जैसी तमाम तकनीकों का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यही नहीं, बीते कुछ वर्षो में पूरी दुनिया में इलेक्ट्रानिक उपकरणों की मांग में कई गुना बढ़ोतरी हुई है। कोरोना काल में ही कामकाज आनलाइन हो जाने से स्मार्टफोन, लैपटाप और टेलीविजन की मांग में भारी इजाफा हुआ है। इसी बीच कोरोना महामारी का प्रसार थामने के लिए कई देशों ने लोगों और सामानों की आवाजाही रोक दी, जिसका असर सेमीकंडक्टर के निर्माण और सप्लाई चेन पर भी पड़ा।

ऐसे में चंद डालर की कीमत वाले सेमीकंडक्टर के नहीं मिलने से दुनिया की कई कंपनियों को अरबों डालर का नुकसान हो रहा है, क्योंकि वे अपने जरूरी उत्पादों का निर्माण तक नहीं कर पा रही हैं। इंटेल, सैमसंग आदि प्रमुख कंपनियों तक कच्चे माल की आपूíत बाधित होने से ये पर्याप्त मात्र में चिप नहीं बना पा रही हैं। एक तरफ इलेक्ट्रानिक उपकरणों की मांग बढ़ना और दूसरी तरफ सेमीकंडक्टर के उत्पादन में कमी आना-इन दोनों कारणों ने इस छोटी सी डिवाइस के मामले में अकाल जैसे हालात पैदा कर दिए हैं। माना जा रहा है कि इलेक्ट्रानिक सामान और उपकरण बनाने वाले कम से कम 170 किस्म के उद्योगों को सेमीकंडक्टर या चिप की आपूर्ति में कमी ने काफी ज्यादा प्रभावित किया है। इस बीच अफगानिस्तान के संकट ने हालात और बिगाड़ दिए हैं, क्योंकि कच्चे माल की आपूíत में इस देश की एक भूमिका रही है।

सेमीकंडक्टर को जिन उत्पादों का दिल कहा जाता है, उनमें स्मार्टफोन, कंप्यूटर, लैपटाप, टैबलेट, स्मार्ट डिवाइसेज, आधुनिक वाहन, घरेलू इलेक्ट्रानिक उपकरण, जीवनरक्षक फार्मा उपकरण, एटीएम, डाटा सेंटर आदि प्रमुख हैं। चूंकि सेमीकंडक्टर की सप्लाई बाधित है, लिहाजा कंपनियों को इसके लिए या तो ज्यादा कीमतें चुकानी पड़ रही हैं या देरी के चलते सामानों के उत्पादन में विलंब हो रहा है। इस कारण कंपनियों ने अपने उत्पादों की कीमतें भी बढ़ा दी हैं। कारों की कीमतों के बढ़ने के लिए भी सेमीकंडक्टर की कमी को एक प्रमुख कारण माना जा रहा है। ज्यादातर कार कंपनियां इसका बोझ उपभोक्ताओं यानी खरीदारों पर डाल रही हैं। हालांकि ग्राहक ज्यादा कीमत चुकाने को तैयार हैं, लेकिन सेमीकंडक्टर की आपूíत का संकट इतना गहरा है कि यह आने वाले वक्त में कार इंडस्ट्री के वैश्विक कारोबार को 110 अरब डालर यानी करीब आठ हजार करोड़ रुपये की चपत लगा सकता है। फैक्टियों में सेमीकंडक्टर के इंतजार में खड़ी कारों से यह नुकसान और भी बढ़ सकता है।

कैसे खत्म होगा संकट : आज चूंकि प्रत्येक इलेक्ट्रानिक उपकरण में सेमीकंडक्टर की मौजूदगी अनिवार्य है और मांग के मुकाबले इसकी आपूíत कम है, ऐसे में कहा जा रहा है कि 2022 के अंत से पहले सेमीकंडक्टर की सामान्य उपलब्धता संभव नहीं होगी। फिर भी उम्मीद है कि कोरोना से जुड़ी पाबंदियों में ढील मिलने के साथ जल्द ही सेमीकंडक्टर निर्माण के लिए कच्चे माल की उपलब्धता बढ़ जाएगी, जिससे हालात सामान्य हो जाएंगे। इधर अफगानिस्तान में जो राजनीतिक उथल-पुथल हुई है, अगले कुछ महीनों में उसके थम जाने से भी स्थितियों में सुधार हो सकता है। इसके अलावा ताइवान से चीन का विवाद रुका तो हालात बेहतर हो सकते हैं।

बताया जाता है कि चीन धमकियां देने के बाद ताइवान पर कोई सैन्य आक्रमण इसलिए नहीं कर पाता है, क्योंकि ताइवान के सेमीकंडक्टर उद्योग ने उसके हाथ बांध रखे हैं। ताइवान दुनिया भर में उन्नत सेमीकंडक्टर चिप का अग्रणी उत्पादक है। इसी वजह से चीन की सेना उसके खिलाफ हमला नहीं कर पाती है। यही वजह है कि ताइवान के संदर्भ में सेमीकंडक्टर को ‘सिलिकान शील्ड’ की तरह देखा जाता है। उल्लेखनीय है कि सेमीकंडक्टर बनाने की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि कोई नया देश इसे रातोंरात नहीं बना सकता है। यदि कोई ऐसा प्रयास करता है तो उसकी लागत काफी ज्यादा होगी। चीन को इसका अहसास है कि ताइवान पर हमले की स्थिति में उसे सेमीकंडक्टर की आपूर्ति रुक जाएगी। इससे उसकी इलेक्ट्रानिक्स इंडस्ट्री बैठ सकती है। यानी चीन ने अगर ताइवान को तबाह किया तो उसकी आंच में वह कहीं ज्यादा झुलस जाएगा। चीन ही नहीं, ताइवान को किसी राजनीतिक उठापटक से बचाए रखने की कोशिश दुनिया के अन्य प्रभुत्वशाली देश भी करते हैं। इसकी वजह यह है कि ताइवान की सेमीकंडक्टर निर्माता कंपनी ‘ताइवान सेमीकंडक्टर मैनुफैक्चरिंग कंपनी’ (टीएसएमसी) दुनिया भर में सेमीकंडक्टर चिप की मांग के एक चौथाई हिस्से की पूíत करती है।

सेमीकंडक्टर या चिप को सिलिकान चिप के नाम भी जाना जाता है। अमेरिकी की सिलिकान वैली को इस संदर्भ से जोड़ा जा सकता है, क्योंकि यह इलाका कंप्यूटर या कहें कि सेमीकंडक्टर की बदौलत चलने वाले इलेक्ट्रानिक कारोबार के केंद्र में है। जहां तक विज्ञान की बात है तो सिलिकान से बनने वाली सेमीकंडक्टर में बिजली का एक अच्छा सुचालक होने की खासियत होती है। इस गुण के चलते इसे ऐसे बेहद सूक्ष्म कंप्यूटरीकृत सíकटों में फिट किया जा सकता है, जिससे इलेक्ट्रानिक उपकरणों को चलने के लिए जरूरी ऊर्जा मिलती है।

सेमीकंडक्टर असल में कंडक्टर (चालक) और नान-कंडक्टर या इंसुलेटर्स के बीच की एक कड़ी है। यानी यह न तो पूरी तरह से कंडक्टर होता है और न ही पूरी तरह से इंसुलेटर। सेमीकंडक्टर किसी शुद्ध तत्व जैसे कि सिलिकान या जरमेनियम का बना हो सकता है। इसे गैलियम अर्सेनाइड या कैडमियम सेलेनाइड से भी बनाया जा सकता है। सेमीकंडक्टर में कई खास गुणों होते हैं। ये इसे इलेक्ट्रानिक उपकरणों का सबसे जरूरी अवयव बना दिए हैं। जैसे-ताप बढ़ने पर आम उपकरण गर्म होकर काम करना बंद कर देते हैं, लेकिन सेमीकंडक्टर या चिप युक्त उपकरणों की क्षमता बढ़ जाती है। दरअसल ताप बढ़ाने पर सेमीकंडक्टर की विद्युत चालकता बढ़ जाती है। इसके अलावा सेमीकंडक्टर की एक खासियत यह भी है कि इसके जरिये किसी एक दिशा में दूसरी दिशा की अपेक्षा आसानी से बिजली का प्रवाह हो सकता है। अर्थात भिन्न-भिन्न दिशाओं में विद्युत चालकता भिन्न-भिन्न हो सकती है। इसके अलावा नियंत्रित मात्र में अशुद्धियां डालकर अर्धचालकों की चालकता को कम या अधिक किया जा सकता है। इस तरह पदार्थ की कंडक्टिविटी में बदलाव किया जाता है। अशुद्धियों को मिलाने की प्रक्रिया को ही डोपिंग कहा जाता है।