कांग्रेस की दिल्ली इकाई में वरिष्ठ नेता ही अलग-थलग नहीं पड़े बल्कि उपाध्यक्ष भी उपेक्षा के शिकार हैं। प्रदेश अध्यक्ष अनिल चौधरी के साथ ज्यादातर उपाध्यक्षों का कोई तालमेल नहीं है। कहने को इनकी नियुक्ति भी पार्टी हाइकमान ने ही की है, लेकिन इन्हें पार्टी की गतिविधियों के बारे में कुछ पता नहीं होता। प्रदेश कार्यालय की सियासत से दूर कोई नगर निगम की राजनीति कर रहा है तो कोई दलित समाज का झंडा उठाए हुए है और कोई अपने संसदीय क्षेत्र के कार्यकर्ताओं से संपर्क साधने में लगा है। भरोसे की डोर भी इतनी कच्ची है कि आमतौर पर उपाध्यक्षों की किसी भी गतिविधि में अध्यक्ष नहीं रहते तो अध्यक्ष की अनुपस्थिति में प्रदेश की बागडोर भी उपाध्यक्ष नहीं बल्कि अध्यक्ष महोदय के कुछ वफादार पूर्व विधायक संभालते हैं। स्थिति यह हो गई है कि उपाध्यक्षों को यह तक पता नहीं होता कि पार्टी में चल क्या रहा है।
बाहरी चिंतित, घरवाले निश्चिंत
नगर निगम चुनाव में छह माह का समय भी नहीं रह गया है, लेकिन कांग्रेसियों की ब्रेफिक्री देखते ही बनती है। जहां आम आदमी पार्टी और भाजपा कार्यालय में रौनक लगी रहती है वहीं कांग्रेस कार्यालय में सन्नाटा पसरा रहता है। बहुत बार तो ऐसा लगता है कि टिकटार्थियों में भी कांग्रेस की टिकट को लेकर कोई उत्साह नहीं है। संभवतया इसीलिए पार्टी ने भी अभी तक न कोई कमेटी बनाई है और न ही टिकटार्थियों से आवेदन ही मंगाए हैं। दिलचस्प यह कि एआइसीसी ने हरियाणा के जिन 14 विधायकों को दिल्ली के 14 जिलों का पर्यवेक्षक बनाया है, वे तो कमोबेश हर सप्ताह बैठकें कर रहे हैं, लेकिन दिल्ली के कर्णधार ऐसे चूल्हा ठंडा करके बैठे हैं मानों अपनी हार या जीत के प्रति पूर्णतया निश्चित हों। सक्रियता है तो बस इतनी कि प्रदेश कार्यालय से भाजपा या आप को कोसने वाला कोई बयान रोज जारी हो जाए, बस।
दूसरे के घर में संभावनाएं तलाश रहे कांग्रेस के दिग्गज
दिल्ली में कांग्रेस की हालत इतनी खस्ता होती गई है कि अब तो दिग्गज भी दूसरे के घर में संभावनाएं तलाश रहे हैं। हाल ही में एक प्रदेश उपाध्यक्ष ने आम आदमी पार्टी के नेता से लंबा संवाद किया और वर्ग विशेष से जुड़े मुददों पर चर्चा की। इन नेताजी ने आप के प्रतिनिधि से जो कुछ जानकारी हासिल की, उसे साफ पता चलता है कि वह भविष्य में अपने लिए ही संभावनाएं तलाश रहे हैं। हालांकि कांग्रेसी नेता ने यह बात किसी से साझा नहीं की, लेकिन आप नेता ने कांग्रेस के भी कई नेताओं को बता दी। तब से छोटे बड़े तमाम कांग्रेसियों में यही चर्चा हो रही है कि जिन नेताओं को हाइकमान ने पार्टी चलाने का दायित्व सौंपा है, अगर वही भागने की फिराक में हों तो पार्टी का भगवान ही मालिक है। बावजूद इस स्थिति के पार्टी की मजबूती के कसीदे पढ़े जा रहे हैं।
वायु प्रदूषण का पता नहीं, सियासत पकड़ रही जोर
दिल्ली में अभी वायु प्रदूषण संतोषजनक श्रेणी में चल रहा है, लेकिन इस पर सियासत जोर पकड़ने लगी है। मुख्यमंत्री अर¨वद केजरीवाल और पर्यावरण मंत्री गोपाल राय पराली के धुएं को लेकर लगातार केंद्र सरकार और पड़ोसी राज्यों को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। हरियाणा सरकार ने भी एहतियात के तौर पर अनेक सख्त कदम उठा लिए हैं। केंद्रीय वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग एक के बाद एक दिशा निर्देश जारी कर रहा है तो यथासंभव बैठकें भी रख रहा है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने भी बृहस्पतिवार को संबंधित राज्यों की बैठक बुला ली है। दिल्ली में दीवाली पर पटाखे जलाने पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया है। कांग्रेस और भाजपा ने भी बीच बीच में प्रदूषण पर बयानबाजी शुरू कर दी है। राजनीतिक जानकार चुटकी ले रहे हैं कि प्रदूषण तो जब बढ़ेगा, तब बढ़ेगा। फिलहाल तो वही कहावत चरितार्थ हो रही है कि सूत न कपास, जुलाहों में लठ्ठम लठ्ठा।