उड़ान’,’दिव्य दृष्टि’ और ‘बाल वीर रिटर्न’ टीवी धारावाहिकों से करियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री अमिका शेल कई वेब सीरीज़ और फिल्म ‘लक्ष्मी’ में भी अभिनय कर चुकी हैं। उन्होंने बताआ कि कैसे उन्होंने मेडिटेशन के ज़रिये अपने मन में छिपी नकारात्मक भावनाओं को दूर किया। वह कहती हैं, ‘बचपन से ही मैं बहुत
शांत और शर्मीले स्वभाव की थी। दोस्तों की संख्या सीमित थी। अकेले गुमसुम-सी बैठी रहती थी। इस वजह से छोटी-छोटी बातों के बारे में बहुत ज्य़ादा सोचा करती थी। हर बात पर पर बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता था। मन अशांत रहता था। व्यवहार में चिड़चिड़ापन आने के कारण मम्मी मुझे हमारे फैमिली डाक्टर के पास लेकर गईं।
उन्होंने मेडिटेशन सीखने की सलाह दी,जिससे तन-मन दोनों स्वस्थ रहते हैं।‘ उन दिनों अमिका आठवीं कक्षा में पढ़ती थीं। शुरुआत में ध्यान केंद्रित करने में घबराहट और दिक्कत होती थी। फिर भी मम्मी के निर्देशानुसार नियमित रूप से मन को शांत करके ध्यान की मुद्रा में बैठती थीं। धीरे-धीरे यह उनकी दिनचर्या में शामिल हो गया। जब भी गुस्सा आता, तो सचेत तरीके से उसी वक्त अपने मन को नियंत्रित करती। कहती हैं,‘कितनी भी व्यस्तता क्यों न हो, मैं प्रतिदिन एक घंटे
का समय ध्यान और प्राणायाम के लिए ज़रूर निकालती हूं। अपनी मज़बूत इच्छाशक्ति के बल पर हम मन में छिपी सभी बुराइयों पर विजय पा सकते हैं।‘
गलती का एहसास होना भी है जरूरी
पिछला वर्ष युवा उद्यमियों के लिए चुनौती भरा रहा है। जिसने हिम्मत नहीं हारी, वह बाजार में टिका रहा। युवा इनोवेटर एवं उद्यमी आकाश सिंह के सामने भी कई प्रकार की मुश्किलें आईं। लेकिन उन्होंने न खुद और न अपनी टीम के मनोबल को कम होने दिया। इसके विपरीत उन्होंने अनजाने में किए गए कुछेक व्यवहार को जरूर दुरुस्त करने की कोशिश की। बताते हैं आकाश, जब हम किसी काम में उलझे होते हैं, तो कई बार दूसरों से संपर्क रखना आसान नहीं रहता है। फिर वह अपने करीबी लोग ही क्यों न हों। कोरोना काल में मैं बहुत से लोगों के फोन अटेंड नहीं कर पाया।
उन्हें दोबारा से फोन करने का समय भी नहीं मिल पाया। यूं कहें कि मुझमें उनका सामना करने की हिम्मत नहीं थी। उनके प्रश्नों का कोई जवाब नहीं था। लेकिन एक दिन मुझे अपनी इस गलती का एहसास हुआ। मैंने एक सूची बनायी और उन सभी लोगों से बात की, जिनको जवाब नहीं दे सका था। सबने मेरी बात एवं विवशता को समझा। इससे बड़ा संतोष मिला। बीते कुछ समय में जो हालात रहे हैं, उसमें हम ही एक-दूसरे का संबल बन सकते हैं। संभव है कि संपर्क करने वाला किसी मुश्किल में हो। इसलिए अपनी गलती का एहसास होना और उसे समय रहते दुरुस्त करना जरूरी है।
निराशाजनक रवैये को किया दूर
’बुरी या नकारात्मक आदतें हमें अपने लक्ष्य तक पहुंचने में बाधा उत्पन्न करती हैं। इससे मूड खराब होता है और एकाग्रता भी नहीं रह पाती है।‘ यह कहना है शतरंज खिलाड़ी ध्याना पटेल का। वह बताती हैं कि एक खिलाड़ी के लिए प्रैक्टिस करना और टूर्नामेंट्स खेलना बहुत जरूरी होता है। अगर अचानक सब बंद हो जाए, तो बेचैनी के साथ अवसाद से घिरना आम बात है। अपनी बात कहूं, तो मेरे अंदर भी काफी चिड़चिड़ाहट आ गई थी। छोटी-सी बात पर प्रतिक्रिया देने लगती थी। किसी की टोका-टोकी या हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं हो रहा था। तब मैंने किताबें पढ़ना शुरू किया। वरिष्ठ खिलाड़ियों एवं शख्सियतों की आत्मकथाएं पढ़ीं। बहुत बल मिला अंदर से। मैंने खेल के अलावा अन्य गतिविधियों में रुचि लेनी शुरू की। पर्यावरण के लिए काम करने वाले संगठनों से जुड़ी।
सप्ताहंत में वालंटियरिंग करती हूं। पौधे लगाती हूं। इससे जो निराशा आ गई थी, वह दूर होने लगी। अब तो बाहर फिर से
टूर्नामेंट्स खेलना शुरू हो गया है। ध्याना की मानें, तो हमें कभी भी परिस्थितियों से घबराना नहीं चाहिए और न ही उसके सामने घुटने टेकने चाहिए। कठिन समय आया है, तो सामान्य दिन भी लौटेंगे। हमें सिर्फ धैर्य रखना है।