वजन कम करना हो या ब्लड शुगर को नियंत्रित करना- विशेषज्ञ काफी अरसे से इसके लिए भोजन की कैलोरी को संयमित रखने की सलाह देते रहे हैं। उनका यह मानना रहा है कि भोजन की मात्रा कम करने से मेटाबोलिज्म (उपापचय) की प्रक्रिया में बदलाव लाकर उसका अधिकाधिक फायदा उठाया जा सकता है। लेकिन यूनिवर्सिटी आफ विस्कांसिन-मैडिसन के शोधकर्ताओं ने एक नए अध्ययन में पाया है कि भोजन में सिर्फ कैलोरी की मात्रा कम करना ही पर्याप्त नहीं है। बल्कि पूरा लाभ पाने के लिए उपवास भी जरूरी है। यह शोध निष्कर्ष नेचर मेटाबोलिज्म जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
बेहतर स्वास्थ्य के लिए सिर्फ इसका ध्यान रखना जरूरी नहीं कि क्या और कितना खाते हैं, बल्कि इस पर भी नियंत्रण होना चाहिए कि कब-कब खाया जाए। शोधकर्ताओं ने पाया कि कुछ-कुछ समय के लिए उपवास रखने से बुढ़ापे में कमजोरी कम होती है और जीवनकाल भी बढ़ता है। शोधकर्ताओं ने प्रयोग के दौरान यह भी पाया कि जिन चूहों ने कम कैलोरी ली लेकिन कभी उपवास नहीं किया, उनमें युवावस्था में मौत की दर उन चूहों की तुलना में अधिक रही, जिन्होंने भरपूर खाना खाया। शोध का नेतृत्व यूडब्ल्यू स्कूल आफ मेडिसिन एंड पब्लिक हेल्थ मेटाबोलिज्म के डुडले लैमिंग ने किया।
चूहों पर किया गया प्रयोग : लैमिंग की टीम ने डायट के हिसाब से चूहों को चार समूहों में बांटा। एक समूह के चूहों ने जितना चाहा और जब चाहा- खाया। दूसरे समूह में थोड़े समय में खूब खाया, जिससे वे कैलोरी कम किए बिना उपवास में भी रहे। दो अन्य समूहों में एक बार में या दिनभर में 30 प्रतिशत कैलोरी कम दिया गया। मतलब कुछ चूहों ने लंबा उपवास किया, जबकि अन्य ने कैलोरी तो कम ली, लेकिन उपवास कभी नहीं किया।
प्रयोगों में देखा गया कि ब्लड शुगर को बेहतर तरीके से कंट्रोल करने, फैट का इस्तेमाल ऊर्जा के लिए करने और बुढ़ापे में कमजोरी से बचने तथा लंबी आयु के लिए कैलोरी नियंत्रण के साथ उपवास भी जरूरी है। जिन चूहों ने बिना उपवास के कम खाना खाया, उनमें कोई खास बदलाव नहीं देखा गया। यह भी बताया कि भोजन की मात्र कम किए बगैर उपवास रखने का उतना ही फायदा होता है, जितना कि कैलोरी नियंत्रण से। उपवास के जरिये इंसुलिन की संवेदनशीलता बढ़ाई जा सकती है और मेटाबोलिज्म में भी बदलाव आता है। उपवास करने वाले चूहों का लिवर भी मेटाबोलिज्म के हिसाब से ज्यादा स्वस्थ था।