तोमर, चौहान, मुगल हों या फिर अंग्रेज। सबको दिल्ली इतनी क्यों भायी। इतिहासकारों में इसके अलग-अलग मत हैं लेकिन एक नजर में जो बात समझ में आती है, वो व्यावहारिक है और प्रमाणित भी कि सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारे हुआ। दिल्ली के साथ भी यही संयोग रहा कि एक तो देश का दिल और दूसरे उसकी धमनियों में बहती यमुना और उसकी सहायक नदियां जो किसी को भी आकर्षित कर लेती थीं। एक वक्त था जब यमुना तट पर बसी दिल्ली के पहाड़ों, चट्टानों और जंगलों से जलस्नोत स्वत: फूट उठते थे। और वर्तमान जब इतिहास बनेगा तो उसमें मशक्कत के साथ जलस्रोत बनाने की बात होगी। दिल्ली में जल की कल आज और कल की कहानी से रूबरू करा रही हैं
कभी सूख गई थी सदानीरा रहने वाली नदियां
नहरें और नदियों की सहायक नदियां आज कहानियां बनकर रह गई हैं। बार-बार घायल होती दिल्ली के दिल पर लगातार मिलते जख्मों के रिसाव से यहां की प्राकृतिक छटा भी कुम्हला गई। समय के साथ जलमार्ग अवरुद्ध हो गए, जलस्नोत सूख गए। टूटती-बनती दिल्ली को आक्रांताओं ने इस स्थिति में पहुंचा दिया कि कभी सदानीरा रहने वाली नदियां सूख गईं, यहां भयंकर सूखा और अकाल पड़ गया।
कोशिशें से फिर दिल्ली में आ सकता है पुराना दौर
विभिन्न शासनकालों में जल संचयन को लेकर काम तो हुआ लेकिन दिल्ली फिर कभी उस तरह से जलमयी नहीं हो सकी। अब बायोडाइवर्सिटी पाकोर्ं में जल संचयन की स्थिति में इजाफा बता रहा है कि ध्यान दिया गया तो दिल्ली एक बार फिर अपनी उसी अवस्था की ओर बढ़ती नजर आ जाएगी जो हजारों वर्ष पहले थी। जल संचयन का बढ़ता स्तर संकेत है कि प्रकृति को जरा से दुलार दिखाया जाए तो वह अपनी शाखें फैलाकर एक मां की तरह अपना आंचल पसार देगी।
फलीभूत हुई योजनाएं
वन अधिकारी सुंदर लाल का कहना है कि बायोडाइवर्सिटी पाकोर्ं में कई तरह के उपक्रम हुए और वर्षा के जल संचयन को लेकर बड़ी योजनाएं बनीं जो अब फलीभूत हो रही है। अरावली परियोजना के तहत 1990 से जल संचयन प्रक्रिया की शुरुआत जोर शोर से हुई थी। इसके तहत बाढ़ वाले इलाकों में सिंचाई विभाग, गांवों में धरा संरक्षण विभाग और पहाड़ी और चट्टानी इलाकों में वन विभाग जल संचयन और संरक्षण पर काम करता आ रहा है। पर्यावरणविद् फैयाज खुदसर का कहना है कि बायोडाइवर्सिटी पार्कों के रूप में जो वृक्ष लगाए थे वे अब फल फूल रहे हैं। इससे दिल्ली को बेहतर आबोहवा के साथ-साथ पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों और इंसान को बेहतर अनुकूलन भी मिल सकेगा। इस मानसून दिल्ली में बायोडाइवर्सिटी पार्क अपने असल उद्देश्य में पहुंचने में कामयाब होते नजर आ रहे हैं। सर्वेक्षण में मिला है कि जुलाई से लेकर सितंबर माह तक दिल्ली के सातों बायोडाइवर्सिटी पार्कों में अच्छी मात्रा में जल संचयन हुआ है।
ऐसे संभव हुआ जल संचयन
इन पार्कों में जल संचयन की सुधरी स्थिति बहुस्तरीय प्रयासों का नतीजा है। बायोडाइवर्सिटी पाकोर्ं के प्रभारी डा. फैयाज खुदसर का कहना है कि जल संचयन करने की वजह त्रिस्तरीय जगल हैं। इसमें पहली तो नम भूमि (वेटलैंड) बनाई गई हैं जो कि धरती से बह रहे बारिश के पानी को अवशोषित करती है। दूसरा पौधे बरसाती पानी को अवशोषित करते हैं और तीसरा है इन पार्कों में बनाए गए जल निकाय में जल संचयन करते हैं। अब सातों बायोडाइवर्सिटी पार्क क्रियाशील अवस्था में पहुंच चुके हैं। अरावली बायोडाइवर्सिटी में माइनिंग गड्ढों को वेटलैंड में तब्दील किया हुआ है। कमला नेहरू रिज में वाटर रिचार्ज या जल संरक्षण की विशेष व्यवस्था की हुई है। डा. फैयाज का कहना है कि कमला नेहरू रिज में तो इस बार मानसून में नजर आने लगा कि किस तरह से पानी संरक्षित होता है। कमला नेहरू रिज और तुगलकाबाद जैसे इलाकों में भविष्य के लिए जल का भंडारण कर रहे हैं।
जलदायी जलाशय, आज हैं वीरान
दिल्ली कई बार बसी, कभी रिज पर तो कभी समतल इलाकों में लेकिन जल संकट पीछा नहीं छोड़ रहा था। तोमर राजपूत साम्राज्य में वर्षा के जल को रोकने और संचित करने के लिए अनंगपुर बांध बनाया गया। बाद में इसी से कुछ दूरी पर गोलाकार टंकी के रूप में बना सूरजकुंड बना। एक हजार साल पुराने इस जल संचयन की संरचना आज भी ऐतिहासिक महत्व रखती है। वह बात अलग है कि मेले की जगमग के बाद भी इस कुंड पर केवल सियार घूमते नजर आते हैं। इसके बाद बना यमुना से कई सौ फीट ऊपर लाल कोट। जब कुतुबुद्दीन एबक ने अपनी राजधानी बनाई तो वहां पर आबादी बढ़ी और तब यमुना से ज्यादा दूरी पर स्थित होने के कारण इस कुंड के पानी से काम नहीं चल पाता था।
जल संकट से निपटने को बना हौज खास
उस दौर में हौज खास भी जल संचयन का एक बड़ा साधन था। जब अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी राजधानी सीरी बनाई (सात शहरों में से दिल्ली का तीसरा शहर) उस समय सूखा पड़ रहा था। बढ़ती आबादी और सूखे के साथ बड़े जलस्नोत या फिर जल संचयन के हौज की आवश्यकता बल पकड़ने लगी। इतिहासकार और पर्यावरणविद् अभिजीत बोस का कहना है कि आवश्यकता महसूस की जाने लगी कि कोई ऐसा हौज बनाया जाए जो कि रिज से हटकर यमुना नदी के पास हो। ऐसे में हौजखास का इलाका बेहतर विकल्प के रूप में नजर आने लगा। यह थोड़ा कम ऊंचाई पर और नवनिर्मित राजधानी के पास होने की वजह से उपयुक्त प्रतीत हो रहा था ऐसे में यहां विशालकाय हौज का निर्माण हुआ।
पेय जल के प्रयास
दिल्ली में पानी उतारने के लिए, खासतौर पर पेय जल की आपूर्ति के लिए कई प्रयास हुए। रोहतक से अली मर्दन नहर का रुख मोड़कर दिल्ली की की ओर किया गया। इससे दिल्लीवासियों को पीने का पानी सुगमता से उपलब्ध होने लगा और स्थितियां सुधरीं। अंग्रेजों को भी इस पानी का स्वाद नहीं पसंद आया। कालांतर में यह नहर सूख गई।