गर्म होती धरती की कहानी, अहम है सीओपी 26; पेरिस समझौते ने खोली नई राह

संस्कृत की एक सूक्ति है ‘अति सर्वत्र वर्जयेत’ यानी अति से हमेशा बचना चाहिए। जब बात जलवायु परिवर्तन और गर्म होती धरती की हो, तो यह बात और भी प्रासंगिक हो जाती है। ब्रह्मांड के अनेकानेक ग्रहों में धरती पर ही जीवन होने में बहुत बड़ा योगदान ग्रीनहाउस गैसों का है। कार्बन डाई आक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसों के कारण ही सूर्यास्त के बाद भी सूर्य के प्रकाश की गर्मी वातावरण में बनी रहती है। ग्रीनहाउस गैसों का अस्तित्व न हो तो सूरज के छिपने के कुछ ही देर में यहां का तापमान शून्य से बहुत नीचे चला जाएगा, जो जीवन के अनुकूल नहीं होगा।

संतुलन से चलती है प्रकृति : प्रकृति ने ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन और अवशोषण की संतुलित व्यवस्था की है। जीवधारी कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन करते हैं, तो पेड़-पौधे उसी कार्बन डाई आक्साइड से भोजन और आक्सीजन बना देते हैं।

ग्रीन हाउस गैसों का रेड सिग्नल : मनुष्यों की लापरवाही से अब ग्रीनहाउस गैसें ही जानलेवा हो रही हैं। दरअसल 19वीं सदी में जैसे-जैसे मनुष्य ने औद्योगिक विकास की ओर कदम बढ़ाना शुरू किया, वैसे-वैसे प्रकृति का संतुलन भी बिगड़ने लगा। औद्योगिक विकास में कोयला और पेट्रोल जैसे जीवाश्म ईंधनों के जलने से बहुत अधिक मात्रा में कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन होता है। वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों का स्तर बढ़ने लगा और इसके प्रभाव से धरती के तापमान में भी वृद्धि होने लगी। 19वीं सदी के आखिर में जब से औसत वैश्विक तापमान मापने की शुरुआत हुई, तब से धरती का तापमान 1.2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ चुका है।

अहम है सीओपी 26 : सीओपी 26 में 200 देश वर्ष 2030 तक उत्सर्जन कम करने की दिशा में अपनी योजनाओं के बारे में बताएंगे। 25 हजार से ज्यादा लोगों की मौजूदगी का अनुमान है। 2015 में सहमति बनी थी कि तापमान वृद्धि दो डिग्री सेल्सियस तक रोका जाएगा।

आम लोगों पर असर : सम्मेलन में बनी सहमति तय होगा कि आने वाले वर्षो में आप पेट्रोल-डीजल की कार चला पाएंगे या नहीं। घर में गैस गीजर के इस्तेमाल से लेकर हर छोटे-बड़े सफर के लिए हवाई में जहाज में चलने जैसे कदमों पर भी प्रभाव पड़ सकता है।

इन बातों पर टिकी है सफलता : 

  • विकासशील देश चाहेंगे कि अगले पांच साल वित्तीय सहायता मिले, जिससे वे हरित प्रौद्योगिकी अपना सकें
  •  इनमें से किसी भी बात पर सहमति नहीं बनी तो 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य मुश्किल हो जाएगा। वैसे कई विशेषज्ञ दावा करते हैं कि बहुत देर हो चुकी है। किसी भी हाल में तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोक पाना संभव नहीं होगा

पेरिस समझौते ने खोली नई राह : 2015 में सीओपी की 21वीं बैठक पेरिस में हुई थी। इसे जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने की दिशा में बहुत अहम पड़ाव माना जाता है। सभी देशों ने अपने-अपने स्तर पर भी नीतियां बनाने की बात कही, जिसे नेशनल डिटरमाइंड कंट्रीब्यूशन (एनडीसी) कहा जाता है। हर पांच साल में देशों ने अपनी योजनाओं का अपडेट देने पर भी सहमति जताई थी। अब ग्लासगो में सीओपी26 में इस दिशा में नई प्रगति की उम्मीद है।

अहम रिपोर्ट : आइपीसीसी ने 27 सितंबर, 2013 को एक रिपोर्ट दी थी, जिसमें विज्ञानियों ने ग्लोबल वार्मिग एवं मनुष्य की गतिविधियों के बीच संबंध को मजबूती से सामने रखा था। 197 से ज्यादा वैश्विक वैज्ञानिक संस्थानों ने माना था कि ग्लोबल वार्मिग वास्तविक संकट है और यह मनुष्य की गतिविधियों से जुड़ा है।

पिछली सदी के आखिर में पहली बार : पिछली सदी के आखिर में जलवायु परिवर्तन और उसके खतरों को लेकर चिंता सामने आना शुरू हुई थी। 1992 में यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन आन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) के नाम से एक संधि हुई। इसमें जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने की दिशा में नियमों का खाका खींचा गया। तब से ही इस संधि को समय-समय पर संशोधित और परिमार्जित किया जाता रहा है। इसी के तहत 1995 से कांफ्रेंस आफ पार्टीज (सीओपी) के रूप में वार्षिक सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है।