सहकारी बैंकों में सुधार की राह कठिन, इन राज्यों से मिल रही चुनौती

वर्ष 2019 में पंजाब एंड महाराष्ट्र कापरेटिव बैंक (पीएमसी) में हुए घोटाले के बाद आरबीआइ व केंद्र सरकार ने सहकारी बैंकों के कामकाज में सुधार की कोशिश शुरू की थी। यह सुधार फिलहाल अटक गया लगता है। सहकारी बैंकों पर नियंत्रण मजबूत करने को लेकर बैंकिंग नियामक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) की कोशिशों को कई राज्यों ने विभिन्न न्यायिक मंचों पर चुनौती दे दी है। इन राज्यों में मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु प्रमुख हैं। इनकी अदालतों में मामला दायर होने से शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) की हालत सुधारने को लेकर आरबआइ द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के भी फिलहाल लागू होने की गुंजाइश कम है।

जानकारों का कहना है कि लंबी कानूनी लड़ाई में पूरा मामला फंसता दिख रहा है।पीएमसी बैंक में हुए फ्राड के बाद केंद्र सरकार ने आरबीआइ के साथ विमर्श करने के बाद सभी तरह के सहकारी बैंकों, खासतौर पर शहरी सहकारी बैंकों में सुधार की कोशिश शुरू की। सहकारी बैंकों पर दोहरी नियंत्रण व्यवस्था को खत्म करने की सबसे पहले कोशिश की गई। इसके तहत सरकार ने बैं¨कग नियमन कानून में संशोधन विधेयक, 2020 पारित कराया। उसके बाद आरबीआइ की तरफ से कुछ अधिसूचनाएं जारी की गई, ताकि सहकारी बैंकों के कामकाज की बेहतर निगरानी हो सके।

आरबीआइ ने इस वर्ष जून में सहकारी बैंकों में शीर्ष पदों और प्रबंधन समिति के सदस्यों की नियुक्ति को लेकर जो अधिसूचना जारी की थी, उससे समूची सहकारी व्यवस्था में खलबली मच गई। उस अधिसूचना में सभी सहकारी बैंकों के शीर्ष पदों पर नियुक्ति की अवधि और योग्यताएं निर्धारित कर दी गई। साथ ही राजनीतिक व्यक्तियों को इन पदों से दूर कर दिया गया। इसी वजह से इस अधिसूचना को एक साथ कई न्यायालयों में चुनौती दी गई और इस पर रोक लग गई