2006-19 के बीच भारत, चीन, कोरिया, थाईलैंड और वियतनाम के साथ एशिया और प्रशांत क्षेत्र के देशों में सबसे ज्यादा वेतन वृद्धि हुई। यह दावा किया गया है इंटरनेशनल लेबर आर्गनाइजेशन (आईएलओ) की नई रिपोर्ट में। रिपोर्ट में बताया गया है कि कोविड-19 के चलते भारत समेत दुनियाभर के देशों में वेतन पर दबाव है। ज्यादातर देशों में वेतन बढ़ने की रफ्तार धीमी हुई या फिर नकारात्मक हो गई है।
भारत की न्यूनतम मजदूरी प्रणाली से फायदा
आईएलओ ने बताया है कि कैसे भारत ने न्यूनतम मजदूरी प्रणाली के जरिए न्यूनतम मजदूरी का कवरेज बढ़ाया है। न्यूनतम मजदूरी प्रणाली के जरिए भारत के राज्यों ने 1,915 से अधिक व्यावसायिक न्यूनतम मजदूरी तय की। इसके साथ ही केंद्रीय क्षेत्र की 48 न्यूनतम मजदूरी भी तय की गई। इसके तहत सभी वेतन भोगियों के दो-तिहाई हिस्से को कवर किया गया। भारत में 2010 से 2019 के बीच 3.9 प्रतिशत की रफ्तार से न्यूनतम मजदूरी बढ़ी है।
कोविड का असर
रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड काल में लॉकडाउन के दौरान भारत में संगठित क्षेत्र के कर्मियों का वेतन 3.6 प्रतिशत तक कम हुआ, जबकि असंगठित क्षेत्र के कर्मियों का वेतन 22.6 फीसद तक गिरा है (ये आंकड़े लॉकडाउन के दौरान के हैं)।
वैक्सीन आने के बाद भी जारी रहेगा वेतन पर असर, महिलाएं और छोटे कामगर ज्यादा प्रभावित
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नजर डालें तो रिपोर्ट कहती है कि कोविड-19 के चलते दुनिया भर में लोगों के वेतन पर दबाव है और यह वैक्सीन आने पर भी जारी रहेगा।आईएलओ हर दूसरे साल यह रिपोर्ट जारी करता है। रिपोर्ट के मुताबिक इस संकट से महिलाएं और कम-वेतन वाले ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, जापान, दक्षिण कोरिया और यूके में औसत वेतन वर्ष की पहली छमाही में दबाव में आ गया। ब्राजील, कनाडा, फ्रांस, इटली और अमेरिका में औसत वेतन संतुलित रहा, क्योंकि ज्यादा नुकसान उन लोगों को हुआ, जिनका वेतन सबसे कम था। रिपोर्ट के मुताबिक, उन देशों में जहां रोजगार को संरक्षित करने के लिए मजबूत उपाय किए गए थे, वहां लोगों की नौकरी नहीं गई, लेकिन वेतन कम हुआ। प्रबंधकीय और पेशेवर नौकरियों की तुलना में कम कुशल व्यवसायों में काम के घंटे कम हुए।
सिर्फ चीन में नुकसान नहीं
आईएलओ के महानिदेशक गॉए राइडर कहते हैं कि यह एक लंबी प्रक्रिया है और मुझे लगता है कि यह अशांत करने वाली है। यह और कठिन होने जा रहा है।
रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के ज्यादातर देशों में यह संकट है। सिर्फ चीन इससे बचा है, क्योंकि वहां तेजी से चीजें पटरी पर आ गईं। इसलिए दुनिया के बाकी देशों में महामारी से पहले की स्थिति में आने में अभी काफी वक्त लगेगा। गॉए राइडर का कहना है कि हमें सच्चाई का सामना करना होगा। ज्यादा संभावना है कि तनख्वाह सब्सिडी और सरकारी हस्तक्षेप कम हो जाएंगे। वेतन पर लगातार दबाव बना रहेगा। पिछले चार साल से विकसित जी-20 अर्थव्यवस्थाओं में आय 4-.9 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रही थी। वहीं विकासशील जी-20 अर्थव्यवस्थाओं में 3.4-3.5 का इजाफा हो रहा था। वहीं अब दो-तिहाई देशों में वेतन बढ़ने की यह प्रक्रिया या तो धीमी हो गई है या फिर उल्टी हो गई है।
क्या है वापसी का रास्ता
रिपोर्ट के मुताबिक, अर्थव्यवस्थाओं को निरंतर और संतुलित विकास की ओर लौटने के लिए आय और मांग का समर्थन करना होगा और उद्यमों को सफल और टिकाऊ बने रहना होगा। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए रचनात्मक सामाजिक बातचीत सफलता की कुंजी होगी। आईएलओ के महानिदेशक गॉए राइडर कहते हैं कि यह असंभव नहीं है। हमें कोविड-19 से पहले की दुनिया बनानी होगी। हमें हर मौके का इस्तेमाल करना होगा। यह मौका है जिसमें हम वैश्विक अर्थव्यवस्था के कुछ मूल सिद्धांतों के बारे में सोच सकते हैं और देख सकते हैं कि हम कैसे वापस इसे उछाल सकते हैं। गॉए राइडर के अनुसार, हमारी वापसी की रणनीति मानव केंद्रित होनी चाहिए। हमें पर्याप्त वेतन नीतियों की आवश्यकता है जो नौकरियों और उद्यमों की स्थिरता को ध्यान में रखे, असमानताओं पर ध्यान दे और मांग को बनाए रखने की आवश्यकता पर भी जोर दे।
रिपोर्ट की बड़ी बातें
-कम वेतन वालों पर ज्यादा प्रभाव का अर्थ है कि असमानता बढ़ी है।
-मनोरंजन, खेल और पर्यटन और हॉस्पिटैलिटी जैसे क्षेत्र जो सबसे बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं, आमतौर पर अधिक महिलाओं को रोजगार देते हैं।
-आमदनी के निचले आधे हिस्से वाले श्रमिकों को अपनी मजदूरी का 17.3% नुकसान हुआ है।
-वैश्विक वास्तविक वेतन वृद्धि में 1.6 से 2.2 प्रतिशत के बीच उतार-चढ़ाव हुआ।-2020 की दूसरी तिमाही में 28 यूरोपीय देशों में बिना सब्सिडी के महिलाओं को वेतन में 8.1 प्रतिशत का नुकसान हुआ। वहीं पुरुषों को 5.4 प्रतिशत का नुकसान हुआ।