Kisan Andolan: निलंबन से ​​​​​योगेंद्र यादव क्षुब्ध, चढ़ूनी मुखर तो राकेश टिकैत मौन

Kisan Andolan तीनों कृषि सुधार कानूनों के विरोध में चल रहा आंदोलन, आंदोलनकारी और उनके नेता आरंभ से ही विवादों में रहे हैं। आंदोलन का संचालन करने के लिए संयुक्त किसान मोर्चे की तरफ से बनाई गई सात सदस्यों वाली कोर कमेटी के प्रमुख सदस्य योगेंद्र यादव को एक महीने के लिए निलंबित किए जाने के बाद अब हरियाणा के लोगों को लगने लगा है कि पंजाब के संगठन आंदोलन को अपनी शर्तो पर चलाना चाहते हैं और उनके दबाव के कारण ही संयुक्त किसान मोर्चे से योगेंद्र का निलंबन हुआ है।

यह बात अलग है कि हरियाणा की किसान यूनियन के नेता गुरनाम चढ़ूनी योगेंद्र के निलंबन से प्रसन्न हैं। उनकी प्रतिक्रिया थी कि योगेंद्र यादव यदि माफी नहीं मांगते हैं तो उन्हें संयुक्त किसान मोर्चे से निष्कासित कर दिया जाना चाहिए।

चढ़ूनी की योगेंद्र और राकेश टिकैत दोनों से नहीं बनती है। टिकैत के विरोध में वह पहले भी कई बार बोल चुके हैं। योगेंद्र से वह इसलिए खफा रहते हैं कि जब मोर्चे से उनका निलंबन हुआ था तब योगेंद्र ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हरियाणा के आंदोलनकारियों के बीच सबसे चर्चित नेता राकेश टिकैत भी योगेंद्र के निलंबन पर मौन हैं। दूसरी तरफ चढ़ूनी और टिकैत समर्थकों से इतर हरियाणा के आंदोलनकारियों का एक बड़ा वर्ग योगेंद्र यादव के निलंबन को गलत मानता है और आंदोलन का विरोध भले न कर रहा हो, लेकिन उससे दूरी बना चुका है। वैसे यह वर्ग योगेंद्र यादव का अनुयायी नहीं है, किसी अन्य आंदोलनकारी नेता का भी नहीं। यह वर्ग हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का है।

इस वर्ग से जुड़े हरियाणा के बहुत से किसानों का प्रश्न है कि क्या योगेंद्र का मानवीय दृष्टिकोण ही उनका अपराध है? योगेंद्र लखीमपुर खीरी में जीप से कुचले गए आंदोलनकारियों की अंतिम अरदास में गए तो पीट पीटकर मारे गए तीन भाजपा कार्यकर्ताओं में से एक के घर भी सांत्वना देने चले गए। इसमें क्या गलत था? लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण प्रश्न उनका दूसरा है। वे पूछ रहे हैं कि अनुसूचित जाति के जिस मजदूर युवक को निहंगों ने काट डाला, उसके घर पंजाब के आंदोलन के नेता क्यों नहीं गए? पंजाब के संगठनों के नेताओं ने इस वीभत्स अपकृत्य की सार्वजनिक निंदा के बजाय हत्या करने वाले निहंगों की इस बात को क्यों महत्व दिया कि हत्प्राण युवक ने गुरु ग्रंथ साहिब के स्वरूप की बेअदबी की थी।

गौरतलब है कि इस आंदोलन में हुड्डा समर्थकों के अतिरिक्त कुछ लोग इंडियन नेशनल लोकदल के समर्थक हैं। वैसे आरंभ में सभी गुरनाम चढ़ूनी के झंडे की नीचे थे, चाहे हुड्डा समर्थक हों, चाहे चौटाला समर्थक, क्योंकि हरियाणा में आंदोलन का आरंभ ही चढ़ूनी ने किया था, लेकिन जैसे ही चढ़ूनी के कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला से मिलने की खबरें आईं। हुड्डा समर्थक चढ़ूनी से कट गए। आंदोलन में जब राकेश टिकैत का अभ्युदय हुआ तो हुड्डा और ओमप्रकाश चौटाला दोनों के समर्थकों के हीरो टिकैत हो गए। टिकैत एक दिन चौटाला के घर चले गए और चौटाला एक बार धरनास्थल पर पहुंचे तो टिकैत ने जो सम्मान दिया, तब हुड्डा समर्थक उनसे दूर हो गए। इधर निहंगों ने जो किया, उसके बाद तो हुड्डा समर्थक आंदोलन के समर्थन पर पुनर्विचार करने लगे हैं।

इंटरनेट मीडिया की चर्चित हस्ती हेमंत सिंह फौगाट और उनके साथियों ने तो इंटरनेट मीडिया पर खुलकर आंदोलन का विरोध करना प्रारंभ कर दिया है। रेखांकित करने वाली बात यह भी है कि हुड्डा समर्थक तो अब आंदोलन से दूर हो ही रहे हैं, हरियाणा का सामान्य किसान भी अब आंदोलन से दूर होता जा रहा है। यह बात अलग है कि लोग मुखर होकर विरोध नहीं कर रहे हैं, लेकिन पंजाब के कुछ संगठनों का खालिस्तानी और अलगाववादी तत्वों से प्रेम सबको अखरने लगा है। उनको लगता है कि पंजाब के संगठन अपने एजेंडे पर काम कर रहे हैं। इसीलिए वे कभी चढ़ूनी को निलंबित करते हैं तो कभी जोगेंद्र नैन को।

योगेंद्र यादव का निलंबन भी उसी कड़ी का हिस्सा है। एक बात और कांग्रेस इस आंदोलन के समर्थन में थी। उसके कार्यकर्ता राकेश टिकैत के फैन थे, लेकिन अब नहीं हैं। कारण यह कि टिकैत आंदोलन में भिंडरांवाले की तस्वीरों और झंडों का यह कहकर बचाव कर चुके हैं कि कुछ लोग भिंडरांवाले को संत मानते हैं, कुछ आतंकी। कांग्रेसियों का कहना है कि हम तो भिंडरांवाले को आतंकी ही मानते हैं। राकेश टिकैत चाहें तो उसे संत मान सकते हैं। टिकैत को लगता है कि यह बयान उनके गले की फांस बन सकता है। योगेंद्र के निलंबन पर कुछ बोलेंगे तो इसपर भी प्रश्न उठेगा। शायद इसीलिए वह मौन हैं।