तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर चल रहा आंदोलन अब लगातार कमजोर पड़ता जा रहा है। इसको तेज करने की कोशिशें हो रही है लेकिन हरियाणा और पंजाब से किसान पहले की तरह यहां नहीं जुट पा रहे हैं। तंबू तो 15 किलोमीटर तक लगे हुए हैं लेकिन उनके अंदर किसानों की संख्या बेहद कम रह गई है। इस बीच अब टीकरी बार्डर से दुपहिया वाहनों और पैदल राहगीरों के लिए रास्ता खुल चुका है। इससे भी आंदोलन के बीच मायूसी का माहौल बना है।
किसानों के यहां पहुंचने से पहले 26 नवंबर 2020 को यह बार्डर बंद हो गया था और 27 नवंबर की सुबह आंदोलनकारी यहां पहुंच गए थे, क्योंकि यहां से सीधा रास्ता पूरी तरह बंद था। पैदल राहगीर आसपास की गलियों या फिर खाली प्लाटों से होते हुए किसी तरह दिल्ली की पीवीसी मार्केट तक पहुंचते थे और वहां से आकर वाहनों के जरिये गंतव्यों तक पहुंंचते थे। करीब एक किलोमीटर का सफर पैदल तय करना पड़ता था। जबकि बाइक सवार किसी तरह टेढ़े-मेढ़े रास्तों से दिल्ली पहुंचते थे। वाहन चालकों के लिए तो झाड़ौदा बार्डर या निजामपुर बार्डर से ही आवाजाही संभव थी।
इस बीच दिल्ली और हरियाणा पुलिस की कवायद के बाद टीकरी बार्डर से ढाई-ढाई फीट का रास्ता आवाजाही के लिए खुल गया। इसमें से बाइक और पैदल राहगीर ही निकल सकते है। वैसे तो साइड से एंबुलेंस के निकलने की जगह रखी गई है, लेकिन उसके लिए बैरिकेड हटाने पड़ते हैं। इसके लिए यहां पर एक तरफ किसान निगरानी कर रहे हैं और दूसरी तरफ पुलिस व सुरक्षा बल के जवान तैनात हैं आंदोलन आगे क्या दिशा लेगा यह तो तय नहीं है, लेकिन फिलहाल सभी की नजर छह नवंबर को सिंघु बार्डर पर होने वाली संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक पर टिकी हुई है। इसमें आंदोलनकारी क्या फैसला लेते हैं यह सबसे अहम रहेगा