Kisan Andolan News: संयुक्त किसान मोर्चा के दिल्ली कूच के ऐलान से फिर आशंकित हुए लोग, बार्डर के खुला रहने पर भी बना संशय

तीन कृषि कानूनाें के खिलाफ चल रहे आंदोलन के बीच संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े संगठनों के नेताओं के अलग-अलग ऐलान के बाद अब प्रदर्शकारियों के बीच असमंजस की स्थिति बन गई है। साथ ही दिल्ली के टीकरी बार्डर से आवाजाही जारी रहने पर भी संशय बन गया है। संयुक्त मोर्चा की ओर से दिल्ली कूच का ऐलान किया गया है। उसी दिन से संसद का सत्र भी शुरू हो रहा है।

जाहिर है कि बिना किसी अनुमति के किसानों का ट्रैक्टर-ट्रालियों के साथ दिल्ली में प्रवेश पुलिस-प्रशासन नहीं होने देगा और इस तरह से दिल्ली जाने की अनुमति मिलने की संभावना भी नहीं है। इस बार तो कहा जा रहा है कि जहां पर पुलिस-प्रशासन द्वारा उन्हें रोका जाएगा, तो वे सड़क पर वहीं बैठ जाएंगे। इधर, सिंघु बार्डर पर मंगलवार को हुई बैठक के बाद से आंदोलन में गुटबाजी बढ़ चुकी है। इस बैठक में चंदे का हिसाब मांगने बाद से तकरार हो गई।

हरियाणा संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं द्वारा कुछ दिन पहले संयुक्त किसान मोर्चा के पास आए करोड़ों के चंदे के खर्च का हिसाब किताब मांगा गया तो, दो गुट एक-दूसरे पर ऐलनाबाद में विपक्ष की पार्टियों से 25 लाख व 60 लाख रुपये लेकर प्रचार करने के आरोप लगाते नजर आए। कहा यह भी जा रहा है कि नौबत गाली गलौच से आगे बढ़कर गिरेबान पकड़ने तक भी पहुंची। हरियाणा के किसान नेता जगबीर घसौला का कहना है कि जिन दो नेताओं के बीच में मोर्चे की मीटिंग के दौरान आपस में खींचतान और तनाव बढ़ा उसकी वजह से संयुक्त किसान मोर्चा की गरिमा को ठेस पहुंची है।

जिन दो नेताओं में चंदे को लेकर तकरार हुई, उसकी वजह से पूरे देश के किसानों के बीच गलत संकेत गए हैं। इसका सीधा असर किसान आंदोलन पर पड़ने वाला है। एक गुट द्वारा 26 नवंबर को दिल्ली जाने की बात कही जा रही है वहीं दूसरेे गुट द्वारा 29 नवंबर को संसद घेराव की काल दी गई है। ऐसी स्थिति में अब देश का किसान क्या निर्णय ले पाएगा। दो गुटों के नेता किसानों की मांगों और मुद्दों से भटक कर चंदा जुटाने और अपनी मूछों को ऊंचा रखने की लड़ाई पर उतारू हो गए हैं।

इससे आंदोलन पर आंच आती दिखाई दे रही है। इसलिए हरियाणा के अन्य किसान संगठनों और खाप पंचायतों व टोल कमेटियों को आगे आकर इस आंदोलन की बागडोर अपने हाथों में लेनी होगी। अब जल्द ही पूरे हरियाणा से शेष बचे किसान संगठन, खाप पंचायतें व टोल कमेटियां स्थान व तारीख निर्धारित करके कोई बड़ा फैसला लेने के लिए आगे आएंगी। इसकी रणनीति बनाकर जानकारी सार्वजनिक कर दी जाएगी।