Himachal Chief Minister interview ः जो बहुत सख्त थे, वे सरकारें क्यों रिपीट न करवा सके

उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मिली हार को पूरे दायित्व के साथ स्वीकार करते हुए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर परिदृश्य को भांप रहे हैं और मानते हैं कि अगले एक साल में सरकार और संगठन के स्तर पर बेहद सख्ती की आवश्यकता है। साथ देने वाले और साथ न देने वाले उनकी नजर में हैं किंतु जब आलाकमान के साथ बैठक होगी, वास्तविक मंथन उसी समय होगा। बेशक वह दृढ़ हैं कि उपचुनाव परिणाम सरकार की लोकप्रियता का पैमाना नहीं हैं और सत्तारूढ़ दल उपचुनाव हारते रहे हैं। उनकी नजर में कांग्रेस को सहानुभूति का वोट मिला पर वह संगठित भी दिखी लेकिन अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में ऐसा नहीं होगा। उपचुनाव के बाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने दैनिक जागरण के राज्य संपादक के साथ जो बातचीत की, उसके कुछ अंश:

-कई बातें ध्यान में आई हैं। अभी प्रभारी और प्रमुख रपट बना रहे हैं। कुछ समय के बाद आलाकमान के साथ भी विस्तृत चर्चा होगी। इस मंथन से क्या निकलता है, वह सामने आएगा। मैं समझता हूं कि यही समय है कि सरकार और संगठन को लेकर हम लोगों को सख्त होना चाहिए और हम सख्त होंगे भी।

-(मुस्कराते हुए) देखिए, चर्चाएं स्वाभाविक हैं। हम सबकी भूमिका थी लेकिन क्योंकि मेरी भूमिका कुछ बड़ी थी, इसलिए मैं तो हार को पूरी गरिमा के साथ स्वीकार करता हूं। किंतु ऐसा सोचना कि उपचुनाव के नतीजे अंतिम परिणाम हैं, यह उचित नहीं है। किसी भी दल की सरकार रही हो, उपचुनाव में सत्तारूढ़ दल को भी हार मिलती रही है। कुछ साल पहले हमारी ही सरकार थी पर हम नालागढ़ और फतेहपुर हारे थे। वीरभद्र सिंह की सरकार थी तो कांग्रेस को भी कतिपय उपचुनावों में पराजय मिली। हमारी मौजूदा सरकार में हमने धर्मशाला और पच्छाद में जीत हासिल की। यह भी देखें कि हार का अंतर कितना कम है। अगर यह लहर कांग्रेस की होती तो उनकी जीत का अंतर बढ़ता। अर्की, फतेहपुर और मंडी में अंतर बेहद कम है। मंडी में तो एक प्रतिशत अंतर है। फिर भी हम विश्लेषण करेंगे और कर भी रहे हैं।

-(सोचते हुए) आत्ममंथन या विश्लेषण एक दिन या रात की प्रक्रिया नहीं है। एक तो हमारी सरकार के चार साल पूरे हो रहे हैं। कांग्रेस ने वीरभद्र सिंह के लिए श्रद्धांजलि भी मांगी थी। बाकी कई बातें ऐसी हैं जिन पर टिप्पणी करना उचित नहीं है। यह भी था कि कुछ लोग साथ होकर भी साथ नहीं थे।

– (मुस्कराते हुए) परिणाम देख कर तो यही लगा। सहानुभूति के साथ उनके लोग मतदाता को अपने पक्ष में करने में सफल रहे। उन्होंने जमीन पर काम किया। उनका अभियान बेशक हमसे बेहतर नहीं था। कांग्रेस ने इस चुनाव के लिए अपने सभी धड़े एकजुट कर लिए ऐसा लगा… किंतु हर चुनाव की नदी को कांग्रेस सहानुभूति की नाव में बैठ कर पार कर लेगी, ऐसा नहीं है। देखिए, राजनीतिक दलों में ये स्वाभाविक रूप से होता है कि हार के बाद कुछ मायूसी आती है और जीत के बाद उत्साह। कांग्रेस भी इस समय उत्साह में है। उन्होंने श्रद्धांजलि के रूप में वोट मांगा। मंडी का बड़ा क्षेत्र वीरभद्र सिंह की रियासत था। कांग्रेस ने लोगों को भावुक किया और वोट लिए। यह अगली बार नहीं होगा क्योंकि असली चुनाव बाकी हैं। यह अंतिम परिणाम नहीं है।

आपको क्या लगता है कि सरकार और संगठन में तालमेल की कमी थी या संगठन सरकार पर हावी था?

-ऐसा कतई नहीं है। सरकार और संगठन ने मिल कर काम किया। यह और बात है कि हम अच्छा करने के बावजूद मतदाता को बता नहीं पाए कि इतना कुछ अच्छा भी हुआ है। मैं दोहरा रहा हूं कि दायित्व सबका था, सामूहिक जिम्मेदारी थी। मेरी भूमिका अधिक थी, मैं तो स्वीकार कर रहा हूं लेकिन सामूहिक दायित्व भी सत्य है।

ऐसा प्रभाव दिया जा रहा है कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर इतने विनम्र हैं कि काम न करने वाले अधिकारियों या पदाधिकारियों को कुछ नहीं कहते, क्या यह सच है?

-(हंसते हुए) मैं स्वयं को जानता हूं। और यह चाहता हूं कि मैं शालीन और विनम्र बना रहूं। अधिकारी हों या दूसरे लोग, मैं एक सीमा तक बर्दाश्त करता हूं, सुधरने का अवसर देता हूं। किसी का भविष्य खराब करने या बदले की भावना मुझमें कतई नहीं है। (अचानक गंभीर होते हुए…) जिन लोगों ने अपनी छवि सख्त प्रशासक की रखी, वे भी बताएं कि उनकी सरकारें क्यों रिपीट नहीं हुई? हां, जब कोई बात सीमा के अतिक्रमण तक पहुंच जाए तो मेरे लिए भी झेलना कठिन होता है। सुधरना तो पड़ेगा… आखिर सरकार काम के पैसे देती है।

आप तो सभी मंत्रियों की कार्यशैली जानते हैं, क्या कुछ फेरबदल या उठापटक का वातावरण बन रहा है?

-मैं मंत्रियों की ही नहीं, विधायकों की कार्यशैली के बारे में भी जानता हूं। एक-एक व्यक्ति की रपट मेरे पास है। ये सभी पक्ष 24, 25, 26 को शिमला में होने वाली कार्यसमिति की बैठक में भी उठेंगे। फिर वरिष्ठ नेतृत्व के साथ चर्चा होगी। उसमें सरकार और संगठन के विषय भी रहेंगे।

उपचुनाव क्या सीख दे कर गया?

-हम सतर्क हुए हैं। काम तो कर ही रहे हैं, वह जनता तक पहुंचे इसके लिए कमियों को दूर करेंगे। बहुत परिश्रम करेंगे, जी जान लगाएंगे और भाजपा सरकार को जारी रखेंगे।

टिकट आवंटन में परिवारवाद के खिलाफ जो रुख भारतीय जनता पार्टी ने अपनाया, क्या आपको लगता है कि उससे कुछ हानि हुई?

-यह आलाकमान का बहुत साहसी निर्णय था। कांग्रेस में तो यह परंपरा दशकों से चली आ रही है कि पार्टी का अर्थ है एक ही परिवार। हिमाचल प्रदेश में भी ऐसा कई स्थानों पर देखने में आया है। ऐसा भी लगता था कि सब कुछ परिवार में ही रहे। इस समय को छोड़ें लेकिन भारतीय जनता पार्टी का यह निर्णय राजनीति को आम कार्यकर्ता तक ले जाने में दीर्घकालीन लाभ देगा।

अगले माह आपकी सरकार चार वर्ष पूरे लेगी, एक साल और बचा है, उसके लिए क्या लक्ष्य हैं?

-लक्ष्य पानी की तरह साफ है। काम करेंगे। कमियां सरकार में हों या संगठन में, उन्हें दूर करेंगे। हिमाचल को आत्म निर्भर बनाने के लिए जो बन पड़ेगा, करेंगे। मतदाता के पास जाएंगे, उसे बताएंगे कि हम हर व्यक्ति की सरकार हैं।