तीन कृषि कानूनों को प्रधानमंत्री की ओर से वापस लिए जाने की घोषणा के बावजूद आंदोलनकारियों की ओर से जिस तरह से बार्डरों को खाली करने को लेकर ना-नुकूर की जा रही है उससे आम आदमी अब और ज्यादा उलझन में है। अब तक तो यह उम्मीद की जा रही थी कि जैसी ही सरकार द्वारा तीन कृषि कानूनों काे वापस लिए जाने की मांग पूरी की जाती है तो किसानों की ओर से भी आंदोलन को वापस लेकर बार्डराें को तुरंत खाली कर दिया जाएगा, लेकिन कल तक निराशा और ना उम्मीद में डूबे आंदोलनकारी अब अचानक से सरकार पर और ज्यादा हावी होने की कोशिश में जुटे हैं।
कहां तो यह आंदोलन लगातार कमजोर पड़ रहा था और कहा अब आंदोलनकारी एमएसपी की कानूनी गारंटी समेत अन्य मांगों को पूरा होने तक इस आंदोलन को जारी रखने का दावा ठोक रहे हैं। इस आंदोलन से बहादुरगढ़ के उद्यमियों, व्यापारियों और आम आदमी को एक साल के अंदर काफी नुकसान पहुंचाया है। दिल्ली में आने-जाने से लेकर दूसरे कामकज तक ठप होकर रह गए। हजाराें लोगों की नौकरी छूट गई। पहले तो कोरोना की मार पड़ी और उसके बाद एक साल से आंदोलन ने उद्योग और व्यापार को मिलाकर 20 हजार करोड़ से ज्यादा का नुकसान पहुंचा है।
अब भी आंदोलनकारियों की ओर से जिस तरह से प्रधानमंत्री की बात का विश्वास नहीं किया जा रहा है, उससे आंदोलनकारियों के प्रति लोगों में गुस्सा बढ़ रहा है। लोग यह सोच रहे हैं कि आखिरकार आंदोलनकारी चाह क्या रहे हैं। जब प्रधानमंत्री ने ही कानून वापसी की घोषणा कर दी है तो जाहिर तौर पर बाकी संसदीय प्रक्रिया भी पूरी होनी ही है, मगर आंदोलनकारियों द्वारा इधर-उधर की बातें करके आंदोलन को बेवजह और लंबा खींचने की कोशिश की जा रही है। अब तक तो आंदोलन के मंच से वक्ताओं द्वारा यह कहा जाता था कि जैसे ही सरकार तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा करती है तो हम सब भी बार्डर खाली करके घर को लौट जाएंगे, लेकिन अब ऐसा नहीं किया जा रहा है।