राजनीतिक टकराव के बाद हरियाणा के चौटाला परिवार की बदली सोच, सशर्त पारिवारिक एकजुटता का संकेत

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के पारिवारिक सदस्यों के करीब आने की संभावनाएं बन रही हैं। चौटाला के बड़े बेटे अजय सिंह ने खुद इसके लिए माहौल तैयार किया है। करीब तीन साल पहले ओमप्रकाश चौटाला का परिवार राजनीतिक रूप से टूट गया था। तब उनके बड़े बेटे अजय सिंह चौटाला और पोते दुष्यंत चौटाला ने जननायक जनता पार्टी बना ली थी और छोटे बेटे अभय सिंह चौटाला ने पिता के नेतृत्व वाली इनेलो पार्टी की बागडोर संभाल ली थी। इन तीन सालों में कई बार ऐसे मौके आए, जब लगने लगा था कि अब चौटाला परिवार के एकजुट होने की बिल्कुल भी संभावना नहीं है।

ऐलनाबाद उपचुनाव के नतीजों के बाद जजपा अध्यक्ष डा. अजय सिंह चौटाला की ओर से संकेत दिया गया है कि राजनीति में कभी कुछ भी स्थाई नहीं होता। इसलिए परिवार के एक होने की संभावना से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। अजय सिंह ने अपने इस संकेत में पिता ओमप्रकाश चौटाला के लिए एक शर्त लगा दी है। शर्त यह है कि यदि बड़े चौटाला उन्हें (अजय सिंह) और उनके बेटों दुष्यंत चौटाला व दिग्विजय चौटाला को इनेलो पार्टी से निकालने के अपने फैसले पर पश्चाताप करें तो परिवार में फिर से एकजुटता हो सकती है।

अजय सिंह चौटाला के इस संकेत के बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चा चल पड़ी है कि हरियाणा की राजनीति में पांच दशक तक अपना सिक्का जमाने वाला यह परिवार फिर एकजुट हो सकता है। इसकी पहल खुद अजय सिंह की ओर से की गई है, लेकिन सशर्त पहल पर सवाल भी उठाए जा रहे हैं। परिवार को एकजुट करने के काम में ओमप्रकाश चौटाला के छोटे भाई रणजीत सिंह चौटाला (भाजपा-जजपा गठबंधन की सरकार में बिजली मंत्री) और बड़े चौटाला की बेटियां अहम भूमिका निभा सकती हैं।

अजय सिंह का पारिवारिक एकजुटता का यह बयान उस समय आया है, जब पंजाब और उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हैं। जननायक जनता पार्टी नौ दिसंबर को पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के गढ़ झज्जर में अपने तीसरे स्थापना दिवस पर बड़ी रैली करने जा रही है। इस रैली के जरिए अजय सिंह, दुष्यंत और दिग्विजय अपने पिता ओमप्रकाश चौटाला, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और अपनी सहयोगी पार्टी भाजपा को दिखाना चाहते हैं कि इनेलो का काडर बेस कार्यकर्ता उनके पास ही है। अजय सिंह यह रैली जाट बाहुल्य बेल्ट में कर रहे हैं।

अजय सिंह के पारिवारिक एकजुटता के बयान के बाद उनके छोटे भाई अभय सिंह चौटाला के समर्थकों में चर्चा कम नहीं है। इनेलो का जब विघटन हुआ था, उस समय पार्टी के पास 20 विधायक थे। पार्टी टूटने के बाद जननायक जनता पार्टी के 10 विधायक जीतकर आए और इनेलो के एकमात्र अभय सिंह चौटाला ही चुनाव जीत सके। परिवार की टूटना का सबसे बड़ा पहला झटका दोनों दलों को उसी समय लग गया था। ऐलनाबाद उपचुनाव में अभय सिंह चौटाला ने जजपा-भाजपा गठबंधन के उम्मीदवार गोबिंद कांडा (पूर्व मंत्री गोपाल कांडा के भाई) को पराजित कर यह संदेश दिया कि भले ही उनके पास विधायकों की फौज नहीं है, लेकिन उनमें दमखम बरकरार है। इस चुनाव के बाद ही इनेलो व जजपा के पुराने कार्यकर्ताओं को लगने लगा था कि यदि चौटाला परिवार एकजुट हो जाए तो प्रदेश की सियासत में वह दूसरे दलों पर फिर भारी पड़ सकता है।

अभय सिंह चौटाला खेमे के नेताओं को अजय सिंह के इस सांकेतिक बयान में अभी सिर्फ राजनीति ज्यादा नजर आ रही है। यह खेमा भी हालांकि पूरी तरह से पारिवारिक एकजुटता के हक में है, लेकिन उन्हें लगता है कि जजपा से छिटकने वाले कार्यकर्ताओं को रोकने के लिए यह बयान दिया गया है। ऐसे बहुत से कारण हैं, जिनकी वजह से जजपा में टूटन पैदा हो सकती है। भाजपा सरकार में साझीदार होने के बावजूद जजपा के विधायक और कार्यकर्ता उतने खुश नहीं हैं, जितना उन्हें अपनी सरकार में होना चाहिए। जजपा में जितने कार्यकर्ता हैं, वह इनेलो का ही अंग हैं। ऐसे में पारिवारिक एकजुटता की संभावनाएं पैदा होने की वजह से जजपा या इनेलो का मायूस कार्यकर्ता किसी दूसरे दल यानी भाजपा या कांग्रेस में जाने की बजाय चौटाला परिवार के साथ ही जुड़े रहना अधिक फायदे का सौदा मान रहा है। उन्हें यह भी लगता है कि यदि वास्तव में पारिवारिक एकजुटता के गंभीरता से प्रयास हों तो यह हर लिहाज से फायदेमंद है, लेकिन 87 साल के बुजुर्ग ओमप्रकाश चौटाला से किसी तरह की माफी या पश्चाताप भरे शब्द कहलवाना वाजिब नहीं लगता।