आइए जानें, खुद पर भरोसे की राह पर चलते हुए कैसे चढ़ें तरक्की की सीढ़ियां…

सही विचार वाला इंसान समाज में हमेशा एक अलग नजर से देखा जाता है। लेकिन सही विचार को विकसित करना सबसे बड़ी चुनौती भी है, क्योंकि आपके विचार आपकी मान्यताओं पर निर्भर होते हैं। जैसी आपकी मान्यताएं होगी वैसे ही आपके विचार भी होंगे। आज के युवाओं के सामने भी यही सबसे बड़ी चुनौती है कि एक सही बिलीफ सिस्‍टम यानी खुद के ऊपर विश्वास को किस तरह विकसित कैसे किया जाए।

दूसरों की राय न होने दें हावी : आज के समय में देश के अधिकतर युवाओं के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे अपने बारे में कई गलत अनुभवों और रेफरेंस के साथ चल रहे होते हैं हैं। इससे न केवल उनका आत्मविश्वास कम रहता है, बल्कि सही दिशा में आगे बढ़ने को लेकर भी वे हर समय संशयग्रस्त रहते हैं। उदाहरण के लिए, अगर आप मैथ में फेल हो गये, तो तमाम लोग बोलते हैं कि तुम मैथ नहीं सीख पाओगे। ऐसी बातों और टिप्पणियों से एक रेफरेंस और एक्‍सपीरिएंस मिलता है, जिससे आप एक धारणा बना लेते हैं। ऐसी स्थिति में कुछ युवा तो यहां तक मान लेते हैं कि मैथ मेरे बस की बात नहीं है। मैं वास्तव में नहीं कर पाऊंगा। इसके उलट कुछ लोग दूसरों की बातों को अनसुना करते हुए पूरे विश्वास के साथ यह बोलते हैं कि मैथ तो मैं ही सीखूंगा और सिर्फ सीखूंगा ही नहीं, बल्कि टाप भी करूंगा।

अलीबाबा कंपनी के संस्थापक जैक मा अपने जीवन में इतनी बार रिजेक्ट हुए, उतनी बार शायद ही कोई दूसरा हुआ होगा। उन्होंने हार्वर्ड विश्‍वविद्यालय में 10 बार आवेदन किया, लेकिन एक भी बार उनका चयन नहीं हुआ। 30 बार नौकरी के लिए आवेदन किया। पुलिस फोर्स में नौकरी करनी चाही तो पांच लोगों ने आवेदन किया, जिसमें चार सफल हुए लेकिन वह नहीं हुए। केएफसी रेस्टोरेंट में नौकरी करनी चाही, तो 24 लोगों ने आवेदन किया, जिसमें 23 को नौकरी मिली लेकिन जैक मा को नहीं मिली। लेकिन क्या इन असफलताओं के बाद भी जैक मा ने सोचा कि उनका कुछ नहीं होगा। इसके विपरीत उन्होंने खुद को नकारे जाने को सकारात्मक नजरिए से देखा। हताश और निराश होने के बजाय उन्होंने हमेशा यही माना कि वह कुछ बड़ा करने के लिए बने हुए हैं। उन्‍होंने कभी हिम्मत नहीं हारी और आज आप सभी जानते हैं अलीबाबा दुनिया की टाप बड़ी कंपनियों में से एक है। इसी तरह जब तक आप अपने सोच और आसपास से सकारात्मक बातों को इकट्टा नहीं करेंगे, तब तक आप एक मजबूत और सही बिलीफ सिस्‍टम विकसित नहीं कर पाएंगे। अक्‍सर यह देखा जाता है कि एक आशावादी इंसान नकारात्मक महौल में भी सकारात्मक धारणा बनाकर चलता है, जबकि एक निराशावादी इंसान सकारात्मक महौल में भी नकारात्मक धारणा बना लेता है। आप किस तरह का इंसान बनना चाहते है, यह आपको सोचना है।

सामाजिक कहावतों की भूमिका: समाज में प्रचलित कहावतें भी आपके बिलीफ सिस्‍टम पर पकड़ बनाकर रखती हैं। उसे प्रभावित करती हैं। समाज में न जाने कितनी ऐसी कहावतें हैं जिन्हें आप सच मान बैठे हैं। इनके आगे आपका मन और दिमाग सोचने को तैयार ही नहीं होता है, क्योंकि आपको लगता है ऐसा कहना या होना सही ही है। जैसे कभी न कभी आपने सुना होगा कि, ‘अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गयी खेत’, अगर कोई निराशावादी व्यक्ति होगा तो वह इस कहावत को शब्दश: सही मानते हुए मेहनत करना छोड़ देगा। लेकिन अगर कोई आशावादी व्यक्ति होगा तो वह खुद को बोलेगा इस बार जो हुआ सो हुआ, अब आगे बिल्कुल ही नहीं होगा। मैं अब चिड़िया को खेत नहीं चुगने दूंगा। वह तुरंत ‘बाउंस बैक’ करेगा। इसके लिए वह अपनी कमजोरियों पर गंभीरता से गौर करेगा। जिन कारणों से उसे असफलता मिली, उन्हें दूर करने के लिए जी-जान लगा देगा। ऐसी ही एक कहावत है, ‘जितनी चादर उतना ही पैर पसारो’। इस पर आप क्या कहेंगे। अपने जज्बे और अपनी मेहनत से चादर को बड़ा करने का अनवरत प्रयास करेंगे या फिर इसे अपनी नियति मानकर जो है, उतने में ही संतोष करते हुए जीवन बिताएंगे।

आसपास से सीखें: डा. भीमराव आंबेडकर का ही उदाहरण ले लीजिए। अगर वह समाज में फैली कुछ कुरीतियों को अपना भाग्य बना लेते, तो क्या संविधान निर्माता बन पाते, क्या कभी भारत रत्न कहलाते। उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों का सामना किया, खुद पर भरोसा रखा और जीतोड़ मेहनत की। उनकी मेहनत के सामने समाज की वह सभी ऊंची-नीची बेड़ियां टूटती चली गईं, जिन्हें समाज में भाग्य और नियम का नाम दिया गया था। जब आपका एक सही और मजबूत बिलीफ सिस्‍टम बन जाता है, तो उस इंसान की सोचने-समझने की स्थिति आटोपायलट पर चली जाती है। अब उसके आसपास चाहे कितनी भी नकारात्मक स्थिति क्यों न हो, वह सोचेगा, वैसा ही जैसा उसका बिलीफ सिस्‍टम उसे सोचने को कहेगा। हमारे देश के युवाओं को भी आटोपायलट मोड पर आने की जरूरत है।

स्वाभिमान है, तो आगे जरूर बढ़ेंगे: यदि समुचित संस्कारों और मूल्यों के साथ आपकी परवरिश हुई है, आप अपने साथ-साथ दूसरे के अनुभवों से भी सीख लेते हुए अपने जीवन को आगे बढ़ाने का प्रयास करते हैं और इस प्रक्रिया में अपनी पहचान बनाने चाहते हैं, तो दूसरों की नकारात्मक टिप्पणियों को अनदेखा करते हुए आगे बढ़ने का प्रयास करेंगे। आप अपने मनोबल को ऊंचा रखेंगे। अपनी खूबियों को जानते हुए उन्हें और निखारने पर काम करेंगे। यह सब आपके स्वाभिमान का लक्षण है। इन सबकी मदद से ही आप न सिर्फ खुद स्वावलंबन की राह पर आगे बढ़ते रहेंगे, बल्कि दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करेंगे। याद रखें, समाज में कम ही लोग होते हैं, जो आपको आपके गुणों के लिए शाबाशी देंगे। इसलिए दूसरों से प्रोत्साहन की अपेक्षा किए बिना अंत:प्रेरणा को जगाएं और उसकी मदद से आगे बढ़ें।