ओमिक्रोन वायरस का संक्रमण भारत सहित पूरी दुनिया में तेजी से फैल रहा है। हालांकि, डेल्टा वैरिएंट की तुलना में इस वायरस से लोगों की मौत कम हो रही है। इसकी वजह जानने के लिए लगातार वैज्ञानिक इस वायरस पर अध्ययन कर रहे हैं। पिछले कुछ दिनों में वैज्ञानिकों ने अलग – अलग छह रिसर्च में ये बताया है कि ओमिक्रोन वायरस फेफड़ों को डेल्टा या कोरोना के किसी अन्य वायरस जितना नुकसान नहीं पहुंचाता है। ओमिक्रोन वायरस का सबसे अधिक असर गले में होता है। आइये जानते हैं ओमिक्रोन पर क्या है वैज्ञानिकों की राय।
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में वायरोलॉजी के प्रोफेसर दीनन पिल्ले के मुताबिक, कोरोना के पिछले वैरिएंट्स की तुलना में ओमिक्रोन की कोशिकाओं को संक्रमित करने की क्षमता अलग है। हम कह सकते हैं कि ये गले की कोशिकाओं को तेजी से संक्रमित करने की क्षमता रखता है। वहीं फेफड़े की कोशिकाओं पर इसका असर उतना नहीं होता है। ओमिक्रोन वायरस गले में तेजी से संक्रमण करता है, इसी के चलते इसके फैलने की संभावना अधिक रहती है। जबकि जो वायरस फेफड़े की कोशिकाओं में तेजी से संक्रमण करते हैं, उनके फैलने की संभावना कम रहती है।
यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपूल के मॉलिक्यूलर वायरोलॉजी रिसर्च ग्रुप के शोधकर्ताओं की ओर से ओमिक्रोन वायरस के संक्रमण का असर चूहे पर देखा गया। प्रोफेसर जेम्स स्टीवर्ट के मुताबिक, अध्ययन में ये पाया गया कि ओमिक्रोन वायरस चूहों को डेल्टा वायरस की तुलना में कम बीमार करता है। इस वायरस के संक्रमण का असर कम दिखता है। चूहे के वजन पर भी कम असर पड़ता है। वहीं इस वायरस का असर चूहे के श्वसनतंत्र पर भी कम ही पड़ता है। चूहे पर किया गया ये अध्ययन साफ तौर पर दिखाता है कि डेल्टा या चीन की वुहान लैब से निकलने वायरस की तुलना में ओमिक्रोन वायरस कम घातक है। हालांकि, वैज्ञानिकों ने कहा कि आपको इस बात को नहीं भूलना चाहिए की ओमिक्रोन वायरस से भी मौतें हो रही हैं। ऐसे में आपको कोविड प्रोटोकॉल का पालन करना ही है।
बेल्जियम में ल्यूवेन विश्वविद्यालय की नेट्स लैब ने किए किए गए अध्ययन में भी यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपूल की तरह ही परिणाम मिले। यहां अध्ययन में शामिल प्रो जोहान नेट्स ने कहा कि ये वायरस अपर रेसपिटिरी ट्रैक को ज्यादा प्रभावित करता है। इसके चलते फेफड़ों को कम नुकसान पहुंचता है, जिससे ये ज्यादा घातक नहीं रहता।
अमेरिका के शोधकर्ताओं की ओर से नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक रिसर्च में दावा किया गया है कि चूहे पर ओमिक्रोन वायरस के असर के चलते उसके वजन में ज्यादा गिरावट नहीं देखी गई। यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लासगो के सेंटर फॉर वायरस रिसर्च के शोधकर्ताओं ने इस बात के प्रमाण पाए हैं कि ओमिक्रोन ने शरीर में प्रवेश करने के तरीके को बदल दिया है। ओमिक्रोन के उन लोगों की प्रतिरक्षा से बचने की काफी संभावना थी, जिनके पास टीके की दो खुराकें थीं। लेकिन जिन लोगों ने बूस्टर डोज ली थी उन पर वायरस का असर कम हुआ।
यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज के रवि गुप्ता की ओर से ओमिक्रोन वायरस के पीड़ित मरीजों के खून की जांच करने पर पाया गया कि जिन लोगों को वैक्सीन पहले से लगी हुई है उन्हें भी ओमिक्रोन वायरस का संक्रमण हुआ। ये वायरस वेक्सीन को चकमा देने में सक्षम है। हालांकि, इस वायरस से फेफड़ों को बहुत अधिक नुकसान नहीं किया। यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन की प्रो जेनिफर रोहन के मुताबिक, ओमिक्रोन की जांच के लिए नाक से सैंपल लेने की बजाए गले से सैंपल लेना ज्यादा कारगर साबित होगा। ये अनुभव किया गया है कि नाक से सैंपल लेने पर रिपोर्ट नेगेटिव आ जाती है। वहीं, गले से सैंपल लेने पर रिपोर्ट पॉजिटिव आती है।