कोविड-19 महामारी को रोकने के लिए 24 मार्च को जब देश भर में लॉकडाउन लागू किया गया, तो उसके तुरंत बाद केंद्र व राज्यों की सरकारों ने स्कूली शिक्षा को ऑनलाइन करने का प्रावधान शुरू कर दिया। केंद्र व राज्य सरकारों सहित कई एनजीओ व निजी क्षेत्र की टेक्निकल एजुकेशन कंपनियों ने मिलकर शिक्षा प्रदान करने के लिए संवाद के सभी उपलब्ध माध्यमों का उपयोग शुरू किया। इसमें टीवी, डीटीएच चैनल, रेडियो प्रसारण, व्हाट्सऐप ग्रुप, प्रिंट मीडिया व कई तरह के मोबाइल एप्लीकेशन का भी सहारा लिया गया।
महामारी के संकट के दौर में छात्रों की पढ़ाई-लिखाई के तौर-तरीकों में बदलाव आया। स्कूल व कॉलेजों के छात्र- छात्राओं के बीच ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा दिया गया। केंद्र व राज्य की सरकारों द्वारा देश में डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा देने की एक नई मुहिम शुरू की गई। केंद्र सरकार ने लगातार डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को बढ़ावा दिया, ताकि कौशल विकास के साथ-साथ रोजगार को बढ़ावा मिल सके। कोरोना काल में इसका सकारात्मक असर भी दिखाई दिया है। अब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। ऑनलाइन शिक्षण को बढ़ावा देना कोरोना संकट की ही उपलब्धि है। भारत में कोरोना संक्रमण की शुरूआती दौर में ही केंद्र सरकार और तमाम राज्य सरकारों ने एहतियातन स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय व अन्य शिक्षण संस्थान बंद कर दिए थे। लॉकडाउन के लंबा खिंचते चले जाने से न सिर्फ सरकारों की चिंता बढ़ी, बल्कि पढ़ाई-लिखाई को लेकर शिक्षकों और अभिभावकों के साथ-साथ छात्रों की भी चिंता बढ़ने लगी। इसी चिंता के समाधान के रूप में ऑनलाइन एजुकेशन के विकल्प को अपनाया गया।
ऑनलाइन एजुकेशन से वंचित पिछड़े
विकास और परिवर्तन के तमाम प्रयासों और दावों के बावजूद अभी भी भारत एक अपेक्षाकृत अल्पविकसित और अभावग्रस्त देश ही है। यहां सुविधाओं और संसाधनों की सीमित उपलब्धता है। देश का एक बहुत बड़ा वर्ग अभी भी संचार-क्रांति और सूचना-तकनीक उपकरणों की सुविधाओं से वंचित है। ग्रामीण क्षेत्रों के वंचित तबकों से आने वाले छात्र-छात्राओं के पास स्मार्टफोन, लैपटॉप, टैबलेट, ईयरफोन आदि सुविधाएं नहीं हैं। उनके पास न तो ये उपकरण हैं, न इंटरनेट और न ही बिजली व न ही ऑनलाइन शिक्षण का लाभ उठाने की जगह है। भारत में एक बड़ी आबादी जो गांवों में रहती है, उनके पास स्मार्टफोन नहीं है। यदि किसी के पास स्मार्टफोन है भी तो इंटरनेट की पहुंच और स्पीड एक बड़ी समस्या है। शहरों में रहने वाले मध्यवर्गीय परिवारों में भी सभी के पास स्मार्टफोन नहीं होता है। ऐसे में यदि परिवार के दो बच्चों को एक ही समय पर ऑनलाइन क्लास करना हो तो वे क्या करेंगे?
विकल्प
इन आधारभूत कठिनाइयों के बाद गांवों में, खासकर वंचित तबकों में ऑनलाइन एजुकेशन की पैठ मजबूत करने के लिए संगठित प्रयास करने होंगे। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा को पहुंचाने के लिए सबसे पहले अध्ययन सामग्री को छात्रों तक पहुंचाना होगा। इसके बाद ऑनलाइन संपर्क के माध्यम से शिक्षकों के साथ पारस्परिक विचार-विमर्श किया जा सकता है। एक विकल्प यह भी है जिसमें कक्षा के पाठ्यक्रम को एक वास्तविक समय में रिकार्ड किया जा सकता है और इन कक्षाओं में शामिल नहीं होने वाले छात्रों को पढ़ाने के लिए उपयोग किया जा सकता है। ग्रामीण स्कूलों के शिक्षक अच्छी तरह से उपकरणों से सुसज्जित नहीं हैं। इसलिए, छात्रों को नोट्स और सूचना देने के लिए शिक्षकों को लैपटॉप और प्रिंटर दिए जाने चाहिए। इसके अलावा, देश में इंटरनेट और स्मार्टफोन की सुविधा का और अधिक विस्तार करना होगा। हर छात्र को लैपटॉप या टैबलेट देना होगा। छात्रों से भी पहले शिक्षकों को डिजिटल एजुकेशन के लिए तैयार करना होगा और उन्हें प्रशिक्षित करना होगा।
घर-घर शिक्षा पहुंचाने की मुहिम
देशव्यापी लॉकडाउन के कारण कई राज्यों में अधिकांश सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र शिक्षा से वंचित रहे। ऐसे में ऑफलाइन माध्यम से घर-घर शिक्षा पहुंचाने की कवायद भी चल पड़ी। कई राज्यों के शिक्षा विभाग ने सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों के लिए घर-घर शिक्षा पहुंचाने की मुहिम छेड़ी। घर बैठे छात्रों को नोट्स भी दिए जा रहे हैं, जिसमें प्रश्न हैं। उन्हें छात्रों द्वारा हल करने के बाद शिक्षकों द्वारा फिर से उसे घर से लेने जाने की व्यवस्था की गई है। साप्ताहिक तौर पर प्रति कक्षा, प्रति विषय वर्कशीट तैयार की गई। इस कार्य को करने के लिए शिक्षकों का चयन कर जिम्मेदारी सौंपी गई। तैयार वर्कशीट का प्रिंट निकाल कर या उत्तर-पुस्तिकाओं में लिखकर छात्रों तक पहुंचाया गया। प्रत्येक वर्कशीट पर संबंधित शिक्षक का मोबाइल नंबर अनिवार्य रूप से लिखा गया। ताकि, जरुरत पड़ने पर छात्र शिक्षक से संपर्क कर सकें। इसके अलावा, कई विश्वविद्यालयों ने अपने शिक्षकों से लेक्चर के पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन और नोट्स तैयार करवा कर विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर अपलोड किया, ताकि छात्र अपनी पढ़ाई जारी रख सकें।