कांग्रेस के पराभव और उसमें पार्टी हाईकमान की भूमिका पर जब भी ईमानदारी से चर्चा होगी तो उसमें राहुल गांधी और उनके कुत्ते पिडी का उल्लेख जरूर होगा। राहुल और उनके कुत्ते के अलावा इस घटना में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा भी शामिल थे। तब वे कांग्रेस के बड़े नेता हुआ करते थे और राच्य में पार्टी की खराब स्थिति पर चर्चा के लिए राहुल से दिल्ली में उनके तुगलक रोड के आवास पर मिलने गए थे।
इस मुलाकात में राहुल अपने कुत्ते से खेलते रहे और जब हिमंत और सीपी जोशी में किसी बात पर तेज बहस हो गई तो कांग्रेस के प्रथम परिवार के उत्तराधिकारी यह कहते हुए उठ कर चल दिए कि आप जो करना चाहते हैं करें, मुझे इससे कोई मतलब नहीं है। उसके बाद हिमंत भाजपा में शामिल हुए और फिर जो हुआ, वह इतिहास का हिस्सा बन चुका है। भाजपा ने न सिर्फ असम बल्कि उत्तर पूर्व के राच्यों में अपनी सत्ता स्थापित की और इसके शिल्पकार बने हिमंत। इन्हीं हिमंत के बहुमुखी व्यक्तित्व और बहुआयामी कृतित्व को राजनीतिक विश्लेषक अजित दत्ता ने अपनी पुस्तक ‘हिमंत बिस्वा सरमा : फ्राम ब्याय वंडर टु सीएम’ का विषय बनाया है।
हिमंत भले ही असम के मुख्यमंत्री हों, लेकिन उनकी राष्ट्रीय छवि बन चुकी है। राजनीतिक पंडित उन्हें नितिन गडकरी और प्रमोद महाजन का मिश्रण मानते हैं। केंद्र सरकार के सबसे प्रभावशाली मंत्री गडकरी की तरह उनमें भी प्रशासनिक क्षमता कूट-कूट कर भरी है। दूसरी तरफ वे महाजन की तरह पर्दे के पीछे के राजनीतिक जोड़-तोड़ में भी सिद्धहस्त हैं। इन्हीं गुणों के कारण उन्हें नार्थ ईस्ट डेवलपमेंट अथारिटी (नेडा) का चेयरमैन बनाया गया। राजनीतिक और प्रशासनिक क्षमता के साथ-साथ हिमंत में एक दार्शनिक की भी छवि मिलती है। मृणालिनी देवी और कैलाश नाथ सरमा के रूप में उन्हें ऐसे माता-पिता मिले जो असमिया साहित्य के शीर्ष पर विराजमान थे। इस पारिवारिक पृष्ठभूमि में हिमंत को बचपन से ही घर में वाद-विवाद का ऐसा स्वतंत्र और स्वस्थ वातावरण मिला कि उनके अंदर राष्ट्र और उसके प्रति प्रेम एवं प्रतिबद्धता का स्तर निरंतर बढ़ता ही गया।
हिमंत पहले ऐसा नेता हैं, जो कांग्रेस में लंबे समय तक रहने के बाद भी भाजपा में काफी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। उनके अलावा च्योतिरादित्य सिंधिया का नाम लिया जा सकता है, लेकिन करिश्माई व्यक्तित्व की बात की जाए तो हिमंत उनसे आगे नजर आते हैं, क्योंकि यह नहीं भूलना चाहिए कि च्योतिरादित्य को राजनीति विरासत में मिली है। हिमंत के उत्कर्ष को दरअसल भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण संक्रमण के रूप में देखा जाना चाहिए। यही वह समय है, जब देश की राजनीति कांग्रेस केंद्रित के बजाय भाजपा केंद्रित हुई। इसके अलावा, हिमंत इस बात के उदाहरण भी हैं कि अब राजनीति में विरासत नहीं, बल्कि योग्यता का सिक्का चलेगा।
राहुल और उनके कुत्ते की घटना के बाद हिमंत फिर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पर अपनी टिप्पणी को लेकर चर्चा में हैं। 14 फरवरी को पुलवामा आतंकी हमले की बरसी पर सर्जिकल स्ट्राइक का प्रमाण मांगे जाने पर हिमंत ने कहा था कि क्या कभी राहुल से राजीव गांधी का बेटा होने का सुबूत मांगा गया है? आप भले ही उनकी इस टिप्पणी को ओछा करार दें, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि कांग्रेस और भाजपा विरोधी दूसरे दल जिस तरह से व्यवहार कर रहे हैं, उनका सामना करने के लिए उनके जैसे नेताओं की जरूरत है। वे बहुत आगे जाएंगे और भविष्य में राजनीतिक यात्रा के शीर्ष पर भी पहुंच सकते हैं।
पुस्तक का नाम : हिमंत बिस्वा सरमा : फ्राम ब्याय वंडर टु सीएम
लेखक : अजित दत्ता
प्रकाशक : रूपा पब्लिकेशंस
मूल्य : 595 रुपये