डाग लवर (पशु/कुत्ता प्रेमियों) को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। दरअल, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें उसने आवारा कुत्तों को खिलाने के लिए गाइडलाइंस जारी की थीं और कहा था कि आवारा कुत्तों को भोजन का अधिकार है व नागरिकों को आवारा कुत्तों को खिलाने का अधिकार है, लेकिन इस अधिकार का प्रयोग करते हुए उन्हें दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा, ‘विशेष अनुमति याचिका दाखिल करने की अनुमति प्रदान की जाती है। नोटिस जारी कीजिए, जिसका जवाब छह हफ्ते में दिया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश गैरसरकारी संगठन ‘ह्यूमन फाउंडेशन फार पीपुल एंड एनिमल’ की याचिका दिया। याचिका में हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई है। पीठ ने पशु कल्याण बोर्ड, दिल्ली सरकार और निजी प्रतिवादियों को भी नोटिस जारी किए हैं। एनजीओ की दलील है कि हाई कोर्ट के निर्देश सुप्रीम कोर्ट द्वारा 18 नवंबर, 2015 को जारी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ हैं। बता दें कि ह्यूमन फाउंडेशन फ़ार पीपल एंड एनिमल्स नाम की संस्था की याचिका पर दिया है। इसके अलावा कोर्ट ने नोएडा की रहने वाली 8 महिलाओं की याचिका पर भी नोटिस जारी किया है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने कुछ साल पहले आवारा कुत्तों के आतंक से निपटने के लिए ठोस उपाय नहीं करने पर दिल्ली सरकार, नगर निगम व अन्य स्थानीय निकायों को आड़े हाथ लिया था। इस बाबत दिल्ली हाई कोर्ट ने सरकार, तीनों दिल्ली नगर निगम व नई दिल्ली पालिका परिषद को नोटिस जारी कर जवाब मागा था।
याची ने कहा था कि दिल्ली की आबादी के हिसाब से हर 50 लोगों पर एक आवारा कुत्ता है। रिकार्ड के अनुसार 12 अस्पताल से आरटीआइ के जवाब से पता चला था कि इन अस्पतालों में प्रति दिन कुत्तों के काटने के करीब 300 मामले आ रहे हैं। यदि 50 अस्पतालों की बात करे तो यह आकड़ा 800 बैठता है। इसके साथ ही रैबीज वैक्सीन पर 140 रुपये का खर्च आता है यानी प्रति माह 33 लाख 60 हजार रुपये का खर्च बिना कारण वहन किया जाता है। यदि कुत्तों को पकड़ कर एक स्थान पर रखा जाए व उनकेखाने के लिए होटल व ढाबों इत्यादि से बचा हुआ खाना एकत्रित कर प्रदान किया जाए तो इस बीमारी के अलावा आवारा कुत्तों से बचा जा सकता है।