हरियाणा कांग्रेस में बदलाव की पटकथा तैयार, नेतृत्व व असंतुष्ट नेताओं के बीच राजनीतिक सेतु काम कर रहे हुड्डा

कांग्रेस में सामूहिक नेतृत्व पर सहमति बनने की संभावनाओं के बीच हरियाणा के पार्टी संगठन में बदलाव की पटकथा तैयार हो गई है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा जहां कांग्रेस नेतृत्व व पार्टी के असंतुष्ट नेताओं के बीच सेतु का काम कर रहे हैं, वहीं उन्होंने राज्य में नेतृत्व परिवर्तन के मसले पर कांग्रेस हाईकमान को राजी कर लिया है।

कांग्रेस के संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया पूरी होने से पहले प्रदेश में अध्यक्ष पद पर हुड्डा की पसंद का कोई नेता काबिज हो सकता है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा एकमात्र ऐसे नेता हैं, जिन्हें कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं का भरोसा हासिल है और साथ ही वह कांग्रेस नेतृत्व के भी बेहद करीब हैं।

पांच राज्यों में कांग्रेस की करारी हार के बाद जिस तरह पार्टी के असंतुष्ट नेताओं ने राष्ट्रीय नेतृत्व के विरुद्ध मोर्चा खोला, उसे देखकर हाईकमान ने भी अब लचीला रुख अपना लिया है। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को दरकिनार करने का हश्र हाईकमान ने इस बार के विधानसभा चुनाव में देख लिया है।

फिलहाल राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है। आने वाले चुनाव में यदि यह दोनों राज्य भी कांग्रेस के हाथ से चले गए तो भाजपा के सामने कांग्रेस नेतृत्व का खड़े रह पाना मुश्किल हो जाएगा।

इस हालात में कांग्रेस नेतृत्व चाहकर भी असंतुष्ट नेताओं की नाराजगी बढ़ाने के कतई मूड में नहीं हैं। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी और आनंद शर्मा की दोस्ती से कांग्रेस नेतृत्व पूरी तरह वाकिफ है।

बीच में हुड्डा ने हालांकि खुद को असंतुष्ट खेमे से अलग कर लिया था, लेकिन पांच राज्यों में कांग्रेस की हार के बाद जिस तरह प्रदेश अध्यक्षों के इस्तीफे लिए गए और कांग्रेस के असंतुष्टों ने पार्टी नेतृत्व के खिलाफ मोर्चा खोला, उसमें हुड्डा ऐसे सर्वमान्य नेता के रूप में उभरकर सामने आए, जो असंतुष्टों की भावना को पार्टी नेतृत्व तक और पार्टी नेतृत्व की इच्छा असंतुष्टों तक पहुंचाने में बड़ा जरिया बने हैं।

हरियाणा में कांग्रेस पिछले नौ साल से संगठन नहीं खड़ा कर पाई है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष फूलचंद मुलाना और डा. अशोक तंवर के बाद जब पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा के हाथों में प्रदेश की बागडोर आई तो लग रहा था कि अब सब कुछ ठीक हो जाएगा, मगर ऐसा हो न सका। पार्टी पदाधिकारियों के नाम पर सर्वसम्मति नहीं बन पाने की वजह से ऐसा हुआ है।

राज्य में कांग्रेस के 30 विधायक हैं। इनमें 24 विधायक हुड्डा समर्थक हैं। हुड्डा खेमा चाहता है कि संगठन की बागडोर पूरी तरह से उनके नेता को सौंपी जाए। इसके प्रयास लंबे समय से चल रहे हैं, लेकिन असंतुष्टों की बात कांग्रेस नेतृत्व तक पहुंचाने की कड़ी के रूप में हुड्डा कांग्रेस नेतृत्व को प्रदेश कांग्रेस में बदलाव के लिए राजी करने को तैयार हो गए हैं। कांग्रेस विधायक कुलदीप वत्स और नीरज शर्मा तो यहां तक कह चुके कि यदि संगठन तैयार नहीं हुआ तो पार्टी के सामने राजनीतिक मुश्किलें आना तय हैं।

हरियाणा में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पद पर हुड्डा खेमे से अलग चलने वाले कुलदीप बिश्नोई की भी निगाह है, लेकिन हुड्डा खेमा चाहता है कि प्रदेश अध्यक्ष पद की बागडोर सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा को सौंपी जाए। दीपेंद्र को कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के बेहद करीब माना जाता है।

उत्तर प्रदेश के चुनाव में प्रियंका ने दीपेंद्र का काम भी बेहद नजदीक से देख लिया। ऐसे में दीपेंद्र को राज्य कांग्रेस की बागडोर मिलने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। जातीय समीकरण यदि आड़े आए तो पूर्व विधानसभा स्पीकर कुलदीप शर्मा और पूर्व मंत्री गीता भुक्कल के नाम भी कांग्रेस नेतृत्व की ओर बढ़ाए जा सकते हैं।

हुड्डा खेमे के नजदीकियों में आफताब अहमद का नाम बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है। हुड्डा खेमा उनके नाम को भी आगे बढ़ाकर नया दांव खेल सकता है। चर्चा के मुताबिक दीपेंद्र यदि अध्यक्ष बने तो हुड्डा का विपक्ष का नेता बने रहना मुश्किल होगा। ऐसे में विपक्ष के नेता के रूप में आफताब अहमद, डा. रघुबीर कादियान और बीबी बत्रा के नाम आगे बढ़ाए जा सकते हैं। कुमारी सैलजा को राष्ट्रीय संगठन में प्रमुखता के साथ अहमियत दी जा सकती है।